अर्चना कुमारी। आपराधिक केस में पुलिस की ओर से मीडिया ब्रीफिंग के लिए दिशानिर्देश तय किये का मसला,जिसमे चीफ जस्टिस ने इसे अहम मसला बताते हुए सरकार से कहा है कि वो तीन महीने में मीडिया ब्रीफिंग के लिए पुलिस को प्रशिक्षित करने के लिये दिशानिर्देश तय करें।
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को गृह मंत्रालय को आपराधिक मामलों में पुलिस कर्मियों की मीडिया ब्रीफिंग के बारे में विस्तृत नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से लोगों को संदेह होता है कि आरोपी ने ही अपराध किया है।
पीठ ने कहा कि मीडिया की खबरें पीड़ित की निजता का भी उल्लंघन कर सकती हैं। पीठ ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को आपराधिक मामलों में पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के लिए नियमावली तैयार करने के संबंध में एक महीने में गृह मंत्रालय को सुझाव देने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा, ‘‘सभी डीजीपी दिशा-निर्देशों के लिए अपने सुझाव एक महीने में गृह मंत्रालय को दें और एनएचआरसी के सुझाव भी लिए जा सकते हैं।
शीर्ष अदालत उन मामलों में मीडिया ब्रीफिंग में पुलिस द्वारा अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी जांच जारी है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये बेहद अहम मामला है । एक तरफ़ लोगो को सूचना हासिल करने का अधिकार है।
लेकिन जांच के दौरान अहम सुबूतों का खुलासा होने पर जांच भी प्रभावित हो सकती है। हमे आरोपी के अधिकार का भी ध्यान रखना है। मीडिया ट्रायल से उनका हित प्रभावित होता है।
एएसजे ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि सरकार मीडिया ब्रीफिंग को लेकर दिशानिर्देश तय करेगी और कोर्ट को उससे अवगत कराएगी। ज्ञात हो सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उसने 2017 में सरकार से पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग के लिए मानदंड तय करने को कहा था, मामले के एमिक्स क्यूरी वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने भी कहा कि आरुषि मामले में मीडिया ऐसे ही कर रहा था।हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से नहीं रोक सकते लेकिन पुलिस को संवेदनशील होने की जरूरत है