
भ्रष्टाचार का भारी बोझ
हर कंस्ट्रक्शन के ढहने पर जो एक पहलू चर्चा में आता है, वह है भ्रष्टाचार। जन मानस में यह धारणा उचित ही घर करती गई है कि जो नए निर्माण भ्रष्टाचार के भारी बोझ को नहीं सह पाते, वे ध्वस्त हो जाते हैँ।
पुल या कोई भी नया निर्माण चाहे कोलकाता में टूटे या गुजरात के मोरबी में या फिर बिहार में- सब में एक कारण आम पाया जाता है। या ऐसे कहें कि हर जगह एक कारण की चर्चा जरूर होती है, भले बात चर्चा से आगे ना बढ़ती हो। जो पहलू चर्चा में आता है, वह है भ्रष्टाचार। जन मानस में यह धारणा उचित ही घर करती गई है कि जो नए निर्माण भ्रष्टाचार के भारी बोझ को नहीं सह पाते, वे ध्वस्त हो जाते हैँ।
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कुछ दिन पहले बेगूसराय जिले में गंडक नदी पर 13.5 करोड़ की लागत से बनाया गया पुल औपचारिक उद्घाटन से पहले ही बीच से ध्वस्त हो गया। जांच में पता चला है कि खराब निर्माण के कारण पुल अपने ही वजन का बोझ नहीं सह सका। इससे पहले इसी साल अप्रैल में भागलपुर जिले में गंगा नदी पर बनाए जा रहे पुल का एक हिस्सा तेज आंधी में गिर गया। इसी तरह जून में सहरसा जिले में ढलाई के एक दिन बाद ही पुल ध्वस्त हो गया।
अगस्त में कटिहार जिले में एक पुल उसी समय भरभरा कर ढह गया, जब क्रंकीट से ढलाई का काम चल रहा था। नवंबर में नालंदा जिले में एक निर्माणाधीन पुल का एक हिस्सा गिरने से एक मजदूर की मौत हो गई और कई मजदूर घायल हो गए।
जाहिर है, बार-बार पुलों का ढहना या टूटना उन्हें बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान और काम की गुणवत्ता को संदेह के घेरे में लाती है। इस तरफ भी बार-बार ध्यान खींचा गया है कि अधिकतर मामलों में पुल टूटने का मुख्य कारण दोषपूर्ण निर्माण प्रक्रिया भी होती है। यानी यह तय है कि पुल को अच्छे ढंग से डिजाइन किया जाए और मानक के अनुरूप उच्च क्वालिटी की सामग्रियों का इस्तेमाल हो, तो उनका टूटना इतनी आम बात नहीं बनी रहेगी।
लेकिन अफसोसनाक यह है कि इतने हादसों के बावजूद ठेका देने की प्रक्रिया को चुस्त-दुरुस्त नहीं किया गया है। जाहिर है, असल कारण भ्रष्टाचार है। राजनीति से नौकरशाही तक और ठेकेदार कंपनियों तक मिल-बांट कर खाने की जो संस्कृति फूल-फल रही है, उसकी कीमत यह देश चुका रहा है।
यह सभी उदाहरण किन सत्ताधारियों के राज के हैं? ऐसी निर्लज्ज लूट-खसोट, और घोर अयोग्यता, दर्शाती घटनाओं के लिए अब जाँच आयोग भी नहीं बनाया जाता। दोषियों को दंड देने के औपचारिक बयान भी नहीं आते। न राज्य, न केंद्र द्वारा। इस तरह, नियमित रूप से जहाँ-तहाँ अरबों रूपयों की लूट, और टैक्स देने वाली जनता का मनमाना दोहन, पूर्ण उत्तरदायित्व हीनता …
आखिर चर्चिल ने क्या गलत कहा था!?
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