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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > विश्व इतिहास > अपने ही मुल्क ईरान से कैसे बेदखल हुए पारसी!
विश्व इतिहास

अपने ही मुल्क ईरान से कैसे बेदखल हुए पारसी!

Courtesy Desk
Last updated: 2022/11/10 at 2:54 PM
By Courtesy Desk 41 Views 10 Min Read
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ईरान जहां कभी पारसी धर्म ने जन्म लिया था, अब उसी देश में उनके धर्म के तौर-तरीके कब्र में दफन होने के कगार पर हैं. पारसी अंतिम संस्कार के दौरान जुलूस निकालते हैं लेकिन उनकी शांति विस्फोट और गोलीबारी की आवाजों से भंग हो जाती है. उनके इस धार्मिक क्रियाकलाप के रास्ते में इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स का अभ्यास आड़े आता है. पारसियों के धार्मिक क्रियाकलाप के खातिर इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी के गार्ड्स अपनी ट्रेनिंग नहीं रोकते हैं. पारसी धर्म में 24 घंटे के अंदर शव का अंतिम संस्कार करने की परंपरा है लेकिन इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड ने उनका रास्ता अवरुद्ध कर दिया है. इस्लामिक राज्य में धार्मिक आजादी की बलि चढ़ने की ओर यह केवल एक इशारा भर है.

जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है. इसकी स्थापना पैगंबर ज़राथुस्ट्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी. एक हजार सालों तक जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के एक ताकतवर धर्म के रूप में रहा. 600 BCE से 650 CE तक इस ईरान का यह आधिकारिक धर्म रहा लेकिन आज की तारीख में पारसी धर्म दुनिया का सबसे छोटा धर्म है. सबसे दुखद यह है कि पारसी अपने ही देश में अल्पसंख्यक और उपेक्षित हो गए हैं.

पारसी या जोरास्ट्रियन का नाम इसके संस्थापक जरथुस्ट्र के नाम पर रखा गया है. 1800 से 1000 ईसा पूर्व के बीच में जुराद्रथ ने धार्मिक उपदेश दिए. पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्ट्र ने ईश्वरीय गुण वाले इंसान अहुरमज्दा की बात की. कुछ ही समय में ईसाई और इस्लाम में भी ऐसी अवधारणाएं शामिल कर ली गईं. पारसी धर्म की यह अवधारणा भी दूसरे धर्मों ने आत्मसात कर ली कि हर आत्मा को मृत्यु के बाद न्याय का सामना करना पड़ता है. स्वर्ग, नरक में जाने से पहले हर आत्मा को न्याय के दिन का सामना करना पड़ता है.

प्राचीन समय में साइरस और डेरियस जैसे पारसी राजाओं ने अपने धर्म के मूल तत्व के मुताबिक, परोपकार और अच्छे कर्मों को अपनाने की कोशिश की. पारसी राजाओं ने बेबीलोन से निर्वासित इजराइलियों को आजाद कर दिया. पारसी राजाओं ने जेरुसलम में सेंकड टेंपल के निर्माण को अपना समर्थन दिया. जब तक ईरान में अरबों ने प्रवेश नहीं किया, सातवीं शताब्दी तक पारसी, यहूदी और ईसाई धर्म के लोग अपनी-अपने परंपराओं और रिवाजों का पालन निर्बाध रूप से करते रहे. हालांकि अरबों के ईरान में प्रवेश के बाद पारसियों पर खूब अत्याचार शुरू हो गया और वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक बनकर रह गए. पारसी धर्म के लोगों का बड़े स्तर पर इस्लाम में धर्मांतरण कर दिया गया.

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1979 में जब इस्लामिक क्रान्ति हुई तो कट्टरवादी शियाओं ने तेहरान में पारसियों के फायर टेंपल पर धावा बोल दिया और जोरोऐस्टर की मूर्तियों को तोड़ दिया. फायर टेंपल में पारसी धर्म के लोग ईश्वर के प्रतीक रूप में अग्नि की पूजा करते हैं. जैसे ईसाई धर्म के लोग क्रॉस की तरफ चेहरा करके अपने ईश्वर को याद करते हैं और मुस्लिम काबा की दिशा की तरफ करके नमाज अदा करते हैं, वैसे ही पारसी अग्नि की तरफ मुंह करके पूजा करते हैं.

पारसियों के धर्मस्थलों से जरथुस्ट्र के चित्र को हटाकर नीचे फेंक दिया गया और उसकी जगह पर अयातुल्लाह अली खुमैनी की तस्वीरें लगा दी गईं. उग्र जनसमूह ने पारसियों को ईरान के नए नेता अयातुल्लाह की तस्वीरें नहीं हटाने की चेतावनी भी दे डाली. कुछ ही महीनों बाद पारसियों के पूजा स्थल के अंदर दूसरी दीवार पर पैगंबर मोहम्मद की तस्वीरें लगा दी गईं.

स्कूलों और कॉलेजों की दीवारें ईरान के नए नेताओं अयातुल्लाह खुमैनी और अयातुल्लाह अली खुमैनी की तस्वीरों और कुरआन की आयतों से पट गईं. कुरआन की इन आयतों में गैर-मुस्लिमों की कड़ी निंदा की गई थी. एकैडेमिक में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद राज्य नियंत्रित यूनिवर्सिटीज में गैर-मुस्लिमों की कोई जगह नहीं बची थी.

जब इराक के साथ 1980 से 1988 के बीच युद्ध चला तो युवा पारसियों को बिना उनकी मर्जी के ईरानी आर्मी में आत्मघाती मिशन के लिए भर्ती की योजना बनाई गई. शियाओं के सैन्य अभियान के दौरान शहादत से जन्नत और वर्जिन से भरा स्वर्ग दिलाने के सिद्धांत को नकारना भी उनके काम ना आया. युद्ध अभियान में शहादत के लिए तैयार नहीं होने का नतीजा राजद्रोह का आरोप हो सकता था.

नवंबर 2005 में काउंसिल ऑफ गार्जियन ऑफ कॉन्स्टिट्यूशन के चेयरमैन अयातुल्लाह अहमद जन्नती ने पारसियों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को नीचा दिखाना शुरू कर दिया. उन्होंने पारसियों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को ‘धरती पर घूमने वाले भ्रष्टाचार में लिप्त पापी जानवर’ करार दिया. जब संसद में पारसी धर्म के एकमात्र प्रतिनिधि ने इस पर विरोध जताया तो उन्हें रिवॉल्यूशनरी ट्राइबल के समक्ष पेश कर दिया गया. ट्राइब्यूनल में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ दिया कि दोबारा वह उनकी घोषणाओं को चुनौती पेश करने की हिमाकत नहीं करें. पारसी सांसद को दोबारा ऐसा करने पर मृत्युदंड की सजा की चेतावनी भी दी गई. इस घटना के बाद से डर-सहमे पारसी समुदाय ने उन्हें दोबारा चुनने में बिल्कुल उत्साह नहीं दिखाया.

पिछले कुछ सालों में कई मुस्लिम ईरानियों ने पारसी धर्म के प्रतीकों और त्योहारों को अपनाकर शियाओं के असहिष्णु तौर-तरीकों का विरोध करना शुरू किया. ईरानी मुसलमानों के इन तरीकों की अयातुल्लाह और जन्नैती ने नुकसानजनक और भ्रष्टाचारपूर्ण कहकर आलोचना की.

जब यह महसूस किया गया कि ईरान के बहुसंख्यक मुस्लिमों की भावनाएं कट्टर शिया मौलानाओं से दूर जा रही हैं तो राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद तक ने राजनीतिक लाभ उठाने के लिए पारसियों के अतीत को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. सितंबर 2010 में उन्होंने ब्रिटिश म्यूजियम से छठवीं शताब्दी के ग्रन्थ साइरस सिलिंडर को मंगाने की बात कही. इस ग्रन्थ में प्राचीन ईरान की गौरवगाथा और धार्मिक सहिष्णुता का उल्लेख किया गया था. तेहरान में एक सार्वजनिक सभा में अहमदीनेजाद ने ईरान की धरती की प्राचीन परंपराओं को अरब द्वारा थोपे गए इस्लाम से सर्वोच्च बताया. यहां तक कि एक निजी बैठक में उनके स्टाफ प्रमुख एसफानीदार रहीम मशेई ने पारसी राजा साइरस को भगवान का दूत तक बताया.

पारसियों के कमजोर होती राजनीतिक जमीन ने भी कट्टर शिया मौलानाओं के प्रभाव को और मजबूत किया है. ईसाई, यहूदी और बाहा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों और पारसी ऐक्टिविस्टों को कट्टर इस्लाम का विरोध करने पर राजद्रोह के मुकदमे में कुख्यात जेल में बंद कर दिया जाता है. अयातुल्लाह के उकसाने पर ईरानी मीडिया ईरान के प्राचीन धर्म के अनुयायियों को बहुईश्वरवादी और शैतान पूजने वाले लोगों के तौर पर दिखआने लगा. कट्टर मुल्लाओं ने ना केवल ईरान में पारसियों के खिलाफ आग उगली बल्कि टोरंटो की मस्जिद तक में पारसियों के खिलाफ प्रचार किया गया.

तेहरान के बाहर पारसियों के कब्रिस्तान के सामने अब एक और खतरा भी है. म्युनिसिपलिटी इस कब्रिस्तान पर एक हाईवे को गुजारना चाह रहा है. यहां पर इकठ्ठा होने वाली भीड़ को नियमित तौर से नियंत्रित किया जाता है. फंडामेंटलिस्ट मुस्लिम अधिकारी आरोप लगाते हैं कि पारसी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और ये इस्लामिक क्रान्ति को खत्म करना चाहते हैं.

इस्लामिक रिपब्लिक का संविधान वैसे तो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देता है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि अपने ही घर (मूलस्थान) में उन्हें हर रोज किसी बेगाने जैसा एहसास होता है.

7 करोड़ 40 लाख नागरिकों वाले ईरान में अब पारसियों की संख्या एक लाख से भी कम है. कई डरे सहमे पारसी अपनी पहचान छिपाने को मजबूर हो गए हैं.

देखें: अपने ही मुल्क ईरान से कैसे बेदखल हुए पारसी!

वैसे मानवता और धर्म के इतिहास में पारसी केवल एक फुटनोट नहीं हैं. ईरान में पारसी धर्म के पतन को रोका जा सकता था. अमेरिका और यूरोपीय संघ की विदेश नीति में अगर धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जाए तो शायद इस लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ा जा सकता है.

साभार

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TAGGED: history of iran, iran, iran history, iran islam
Courtesy Desk November 10, 2022
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