नई दिल्ली. यूरोप के एक शोध संस्थान ने दावा किया है कि भारत ने पिछले 13 महीनों में जी-सात के नेतृत्व वाले गठबंधन देशों को जो पेट्रोलियम निर्यात किया है उसमें एक-तिहाई हिस्सा रूस से आयातित कच्चे तेल के शोधन का रहा है. यूक्रेन पर रूस के हमले के विरोध में अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर कई तरह की बंदिशें लगा दी थीं. दिसंबर, 2022 में इन देशों ने रूसी कच्चे तेल के आयात का कीमत दायरा भी तय कर दिया था.
लेकिन रूस से अन्य देशों में आयात किए गए कच्चे तेल को शोधित कर पश्चिमी देशों को निर्यात किए जाने पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई थी. भारत ने बीते दो वर्षों में रूस से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात किया है. किफायती दरों पर रूसी कच्चा तेल मिलने से भारत को अपना आयात बिल भी कम करने में मदद मिली है. फिनलैंड स्थित शोध संस्थान ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ (सीआरईए) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत रूस से आयातित कच्चे तेल को शोधित कर जी-सात के देशों और यूरोपीय संघ एवं ऑस्ट्रेलिया को निर्यात कर रहा है.
6.65 अरब डॉलर का तेल
सीईआरए ने कहा, ‘‘तेल मूल्य की सीमा लगने के बाद के 13 माह में रूसी कच्चे तेल से शोधित पेट्रोलियम उत्पादों के भारतीय निर्यात में इन देशों का हिस्सा एक-तिहाई रहा है. इन देशों को भारत ने 6.65 अरब डॉलर का निर्यात रूसी तेल की मदद से किया है.’’दावा है कि इस निर्यात में एक बड़ा हिस्सा जामनगर स्थित रिलायंस रिफाइनरी का रहा है. सीआरईए ने कहा, ‘‘भारत ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों को ये उत्पाद भेजने के लिए 3.04 अरब यूरो मूल्य का कच्चा तेल रूस से आयात किया था.’’
भारत की मदद से घर हुए रोशन
यूरोप द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद अगर भारत की ओर से उन्हें पेट्रोलियम प्रोडक्ट न पहुंचाया गया होता तो जाहिर तौर पर वहां बड़े स्तर पर ऊर्जा संकट देखने को मिलता. ऐसे में भारत ने पेट्रोलियम प्रोडक्ट यूरोप को देकर वहां घरों में चिराग जलाने का काम किया.