आईएसडी नेटवर्क। केंद्र सरकार ने गौ-जातीय पशु मिथुन को ‘खाद्य पशु’ के रुप में मान्यता दे दी है। पूर्वोत्तर राज्यों में पाई जाने वाले बैलों की इस स्वदेशी प्रजाति को ‘खाद्य पशु’ के रुप में मान्यता देने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसके निर्यात के रास्ते खुल सकेंगे। ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में छपी खबर के अनुसार मिथुन को विशेष रुप से अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों के लिए तैयार किया जा रहा है। जबकि देश के कई राज्यों में गौवंश के मांस के इस्तेमाल और निर्यात पर पूर्ण रुप से रोक लगी हुई है।
एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के अनुसार भारत में देश में 10 करोड़ से ज्यादा भैंस, 15 करोड़ बकरियां और 7.5 करोड़ भेड़ हैं। इन्हीं का मांस दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। भारत सरकार ने गाय के मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है। विश्व में सबसे अधिक मांग भैंस के मांस की बनी हुई है और भारत से भी सबसे अधिक निर्यात भैंस के मांस का होता है। ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के समाचार के अनुसार 1 सितंबर 2023 से पूर्वोत्तर में पाया जाने वाला मिथुन ‘खाद्य पशु’ की श्रेणी में डाल दिया गया है। खबर के अनुसार ट्रेड विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने से मिथुन के मांस के लिए निर्यात के बड़े दरवाजे खुलेंगे।
उल्लेखनीय है कि भारत इस समय विश्व का सबसे बड़ा मांस निर्यातक बना हुआ है। जबकि सरकार में आने से पूर्व भाजपा के शीर्ष नेताओं ने ‘पिंक रिवोल्यूशन’ के नाम पर कांग्रेस सरकार को खूब घेरा था। अप्रैल 2014 में बिहार की एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘यह देश हरित क्रांति चाहता है लेकिन केंद्र में बैठे लोग गुलाबी क्रांति चाहते हैं। जब जानवरों का वध किया जाता है, तो उनके मांस का रंग गुलाबी होता है।’ जबकि भाजपा के सत्ता में आने के बाद मांस का निर्यात बंद या कम होने की अपेक्षा और बढ़ गया।
सरकारी आँकड़े बताते हैं कि भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 में केवल भैंसों (नर और मादा) का 10.86 लाख मीट्रिक टन मीट दुनिया भर में निर्यात किया, जिसकी कुल क़ीमत 23,460 करोड़ रुपये थी। वहीं बीफ (इसमें गाय, बैल, बछड़े जैसे गोवंश के साथ भैंस भी शामिल है) निर्यात 16 लाख टन से ज़्यादा किया है। माना जा रहा है कि यदि यही रफ्तार रही तो साल 2026 तक भारत 19.30 लाख टन बीफ का निर्यात करते हुए अव्वल नंबर पर बना रहेगा। मांस निर्यात पर सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि (भाजपा की सरकार केंद्र में आने के बाद) 2014 के बाद मांस का निर्यात बढ़ा है। सन् 2017 में मांस निर्यात को लेकर लोकसभा में सरकार की ओर से कहा गया था कि मांस निर्यात में 17,000 टन की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यही नहीं, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014-2017 के बीच तीन सालों में बूचड़खानों के लिए लगभग 68 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी । यह खुलासा एक आरटीआई के जवाब में मिली जानकारी से सामने आया था।
मिथुन के मांस में फैट कम होता है और इसी कारण इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इस मांग को देखते हुए संभवतः सरकार ने मिथुन को ‘खाद्य पशु’ के रुप में मान्यता दे दी है। विडंबना है कि ‘पिंक रिवोल्यूशन’ का विरोध कर वोट मांगने वाली सरकार स्वयं इस गुलाबी क्रांति को आगे बढ़ा रही है। आंकड़े बताते हैं कि भारत ने 2011 और 2014 के बीच भैंस के मांस के निर्यात में दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की। 2015 में, यह दुनिया का शीर्ष बीफ निर्यातक बन गया और 2016 में भी इसने अपना स्थान बरकरार रखा। इसका अर्थ है कि 2014 के बाद आई सरकार ने भी इस पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार को पशुधन और पशुधन उत्पाद (आयात और निर्यात) विधेयक, 2023 के मसौदे को वापस लेना पड़ा था। इस विधेयक को लेकर काफी विरोध हो रहा था। विरोध करने वाले लोगों का मानना था कि यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो इससे जीवित पशुओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यदि नागालैंड में मिथुन की प्रजाति को देखा जाए तो वहां इनकी जनसँख्या में गिरावट देखने को मिल रही है। यहाँ 2012 में मिथुन की संख्या 34,871 थी, जो 2019 में 23,123 रह गई। पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर, अन्य सभी तीन मिथुन-बहुल राज्यों में इनकी जनसँख्या प्रतिशत में गिरावट आई है। इसके अलावा मांस के लिए मिथुन का शिकार तो आम बात हो गई है।