श्वेता पुरोहित-
चित्र में हाथी रूपी पूर्व जन्म के कर्म है। कुएँ में साँप भविष्य के कर्म हैं। पेड़ की शाखा वर्तमान जीवन है। सफ़ेद चूहा दिन और काला चूहा रात बनकर शाखा को काट रहे हैं। शाखा पर लटका शहद का छत्ता सांसारिक मोह माया है। इस स्थिति में भगवान हाथ बढ़ाकर मनुष्य को बचाना चाह रहे है, परंतू मनुष्य टपकते हुए मोह रूपी शहद को चूसने में इतना मशगूल है कि आनेवाले संकट और भगवान को भी नज़रअंदाज़ कर रहा है।
मृत्यु और मुक्ति में क्या समानता है?
मुक्ति में वासना की मृत्यु है अहंकार की मृत्यु है मन की मृत्यु है। मृत्यु में वर्तमान स्थिति, वर्तमान शरीर, संबंधी आदि से मुक्ति है।
अहंकार की मृत्यु ही वास्तविक मुक्ति है।
जिस मरने से जग डरे मेरे मन आनंद।
मरने से ही पाइये पूर्ण परमानंद।।
ऐसा कबीर दास जी कहते हैं।
जैसे मृत्यु का समय निश्चित है क्या इस प्रकार मृत्यु के समय होने वाला कष्ट भी निश्चित है?
सब अपने पाप और पुण्य का फल भोगते हैं किसी को पाप भोग करना हो तो उसे अधिक कष्ट होता है। परंतु दुख उसे ही होता है जिसमें जीने की इच्छा है।
साधक जीने की इच्छा का भी आग्रह नहीं रखना सब कुछ भगवान पर छोड़ देता है।
जहां तक हो सके अपने काम स्वयं करना चाहिए दूसरों पर आश्रित नहीं होना चाहिए।
सच्चे संतों के दर्शन करने के लिए प्रयास अवश्य करना चाहिए आलस नहीं करना चाहिए।
ज्ञान के अनंतर मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
किसी को श्रवण करते-करते किसी को मनन अथवा निदिध्यासन करते-करते ज्ञान हो जाता है।
निष्काम उपासना और निष्काम सेवा निर्गुण उपासना के साधक के लिए सहयोगी साधन माने गए हैं।
ॐ नमो नारायण 🙏🪷