श्वेता पुरोहित-
श्रीसोझाजी-दम्पती भगवद्भक्त गृहस्थ थे। धीरे धीरे जगत्की असारता, सांसारिक सुखों की असत्यता और श्रीहरिभजनकी सत्यताका सम्यक् बोध हो जानेपर आपके मन में तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो गया। आपने अपनी धर्मपत्नी के समक्ष अपने गृहत्याग का प्रस्ताव रखा तो उस साध्वीने न केवल सहर्ष प्रस्तावका समर्थन किया, बल्कि स्वयं भी साथ चलनेको तैयार हो गयीं। इसपर आपने कहा कि यदि तुम्हारे हृदयसे समस्त सांसारिक आसक्तियाँ समाप्त हो गयी हों तो तुम भी अवश्य चल सकती हो। अर्धरात्रिके समय ये दोनों घर छोड़कर चल दिये। आपकी तो प्रभुकृपा पर अनन्य निष्ठा थी, इसलिये साथ कुछ नहीं लिया, परंतु आपकी पत्नी अपने दस माहके शिशुके प्रति वात्सल्यभावको न त्याग सकी और उसको भी अपनी गोद में लेते आयी। रातभर पैदल चलनेके उपरान्त प्रातः कालके उजालेमें आपने जब पत्नीकी गोदमें शिशुको देखा तो बहुत नाराज हुए और बोले- ‘अभी तुम्हारे मनमें संसारके प्रति बहुत राग है, यदि तुम मेरे साथ चलना चाहती हो तो इस शिशु को यहीं छोड़ दो।’ पत्नीने बड़े ही करुण स्वर में कहा- ‘नाथ! यहाँ इसका लालन-पालन कौन करेगा ?’ आपने पृथ्वी पर रेंगते हुए जीव-जन्तुओं को दिखाकर कहा- ‘जो इनका पालन करता है, वही इस बालकका भी पालन करेगा।’ आपकी आज्ञाका पालन करते हुए आपकी पत्नीने बालकको वहीं छोड़ दिया और दोनों लोग श्रीद्वारकापुरी की यात्रा पर चल दिये।
बारह वर्ष बाद अचानक एक दिन आपकी पत्नी को अपने उस दुधमुँहे शिशुकी याद आयी, जिसे वे आपके कहने पर रास्ते में ही छोड़कर चली आयी थीं। उन्होंने इस बातको आपसे कहा। प्रभुकृपासे आप तो सब जानते ही थे, फिर भी पत्नी को भगवत्कृपा के दर्शन कराने के लिये उन्हें लेकर अपने देश वापस लौटे।
वहाँ वे एक बाग में रुके और माली से पूछा- ‘यहाँ का राजा कौन है?’ माली ने बताया- ‘यहाँ के राजाको कोई संतान नहीं थी; अतः उन्होंने भक्त सोझाजी के पुत्रको गोद ले लिया था, जिसे उसके माता-पिता जंगल में छोड़ गये थे, अब वही लड़का यहाँका राजा है।’ सोझाजी की पत्नी इस भगवत्कृपा से गद्गद हो गयीं, उन्हें विश्वास हो गया कि जो अनन्य भावसे प्रभुकी शरण में जाते हैं, उनके योग-क्षेम का वहन स्वयं श्रीभगवान् करते हैं।
ॐ श्री परमात्मने नमः🙏