प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जयंती के अवसर पर ग्रामीण भारत के खुले में शौच की समस्या से मुक्त होने की घोषणा की. 2014 से शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अब तक भारत के गांवों में कुल 110 मिलियन शौचालयों का निर्माण हो चुका है. ये शौचालय भारत के गांवो की लगभग 600 मिलियन की आबादी के लिये मुहैया कराये गये हैं.
स्वच्छ भारत अभियान ने की शहरों के तथाकथित वामपंथियों की बोलती बंद
स्वच्छ भारत अभियान की नींव एन डी ए सरकार द्वारा 2014 में डाली गयी थी. और इस के अंतर्गत खुले में शौच की समस्या को जड़् से उखाड़ फेंकने का लक्ष्य निर्धारित किया गया. इसके तहत मोदी सरकार ने एक बहुत ही रांडिकल या क्रांतिकारी उदाहरण भी प्रस्तुत किया. उन्होने शौचालय जैसी वस्तु को जिसका नाम सुनते ही संपन्न बुद्धिजीवी नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं, उसे विकास की विचारधारा की मुख्य शाखा से जोड़ा. और उन करोडों भारतीयों के वजूद को महत्व दिया जो कि शौचालय न होने के अभाव में खुले में शौच करने के लिये मजबूर थे. दिल्ली जैसे शहरों का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग जो कि अपने आप को कम्यूनिस्ट विचारधारा का अनुयायी मानता है और सर्वहारा वर्ग के अधिकारों की बातें करते नहीं थकता, उस वर्ग को भी खुले में शौच की समस्या में कोई खासी दिक्कत नज़र नहीं आई. क्योंकि ये एक ऐसा मुद्दा था जिसमें जाति या धर्म के नाम पर तड़्का लगाने का उनके पास कोई स्कोप नहीं था. ये एक सीधी साधी समस्या थी जिसका संबंध करोड़ों देशवासियों से था, फिर चाहे वो हिंदू हों, मुसलमान हों या फिर दलित हों.
इस योजना के अंतर्गत देशभर में जब शौचालयों का निर्माण शुरू हुआ तो ये कोई लोगों पर थोपा गया सरकारी काम नहीं था. देश भर के दूर दराज के गांवों के सरपंचों ने खुद इस काम में बढ़ चढ़्कर हिस्सा लिये और इसके साथ ही इस काम के ज़रिये गांववालों को रोज़गार के अवसर भी मिले . शौचालय बनने एके लिये राजमिस्त्री का काम न सिर्फ पुरुषों ने संपन्न किया बल्कि अनेकों महिलायें भी राजमिस्त्री बनीं. तो इस तरह से इस अभियान ने ग्रामीण भारत में एक पूरा सामाजिक आंदोलन खड़ा कर दिया जहां लोग शौचालय होने के महत्व को धीरे धीरे समझने लगे और फिर खुद इसे लेकर अपने गली मोहल्लों में जागरूकता फैलाने लगे. क्योंकि खुले में शौच का कारण सिर्फ पैसे का अभाव नहीं है बल्कि एक ऐसी रूढ़िवादी सोच है जिसके अंतर्गत लोगों की शौचालय बनवाने क्की कोई आवश्यकता ही नहीं महसूस होती. और इस सोच को बदलने का मात्र एक ही तरीका है – लोगों के अंदर स्वच्छता के प्रति लगाव पैदा करना.
खुले में शौच की समस्या को मिली अंतराष्ट्रीय मंच पर आवाज़, बांलीवुड ने कराया शहर के लोगों को इस समस्या से अवगत
स्वच्छ भारत अभियान से एक बड़ा लाभ यह भी हुआ कि अंतराष्ट्रीय मंच पर खुले में शौच के मुद्दे को सशक्त आवाज़ मिली. अन्तराष्ट्रीय मीडिया ने स्वच्छ भारत अभियान के शौचालय निर्माण मिशन को पूरी दुनिया के लोगों के सामने प्रस्तुत किया. और इससे भारत की अंतराष्ट्रीय छवि में भी एक खासा परिवर्तन हुआ. जो अंतराष्ट्रीय मीडिया कल तक अधिकतर भारत की गरीबी, भुखमरी और रेल के पटरियों के किनारे खुले में शौच कर रहें लोगों की कहानियां व्यावसायिक तौर पर भुनाता था, वह अब भारत की विकास की कहानी पूरी दुनिया को सुनाने के लिये बाध्य था. इसके अलावा पांपुलर कल्चर के माध्यम से भी टांयलेट जैसा मुद्दा और इसके ईर्द गिर्द होने वाले संवाद भारत के युवा शहरी वर्ग के लिये कूल बने. 2017 में खुले में शौच की समस्या पर बनी प्रसिद्ध बालीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की उम्दा फिल्म टांयलेट एक प्रेम कथा न सिर्फ कमर्शियल तौर पर बेहद कामयाब रही बल्कि इसने सशक्त ब्रांन्डिंग के ज़रिये ग्रामीण भारत की समस्या के मर्म को उन शहरी भारतीयों तक पहुंचाया जो कि अब तक टांयलेट का नाम सुनते ही बिदकते थे. और ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन था.
पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का मुद्दा हुड़ा हुआ है संपूर्ण देश के आर्थिक और सामाजिक विकास से
पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा स्वच्छता के प्रति जागरूकता से जुड़ा हुआ है. और यही नहीं देश का आर्थिक विकास भी पर्यावरण संरकक्षण और लोगों के मन में स्वच्छता के प्रति जागरुकता के पहलुओं से जुड़ा हुआ है. सीधे तौर पर कहें तो किसी भी देश के विकास के विभिन्न आयाम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, फिर चाहे वह प्रदूषण हो या गरीबी य रोज़गार की समस्या या फूड सिक्यूरिटी की समस्या. देश के सर्वांगीण विकास के लिये किसी भी पांलिसी को इन सभी आयामों को साथ में लेकर चलना होगा और इनकी परस्परता को लेकर विकास का एक वृहत दृष्टिकोण अपनाना होगा. और ऐसा करने में भारत काफी हद तक सफल हो पाया है.
Sandeep ji..a Aap apne live session meI super chat aur kuch ek गिने चुने लोग जैसे निधि राजपुत और eti prasad ke comments ko ji padte hai।
Niraasha hoker mene live dekhnae band kar diya hai।