पद्मावत के बाद ही इस बात पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई थी कि राष्ट्रीय और पौराणिक नायकों पर जब फिल्म बनाई जाए, तो उनकी पहचान और नाम से छेड़खानी नहीं की जाए। हमने अतीत में देखा है कि वास्तविक नायकों का नाम और पहचान बदल दी जाती है। ऐसा कर्म जब एस.राजामौली जैसे निर्देशक करने लग पड़ेंगे तो हमें उनका नाम भी संजय लीला भंसाली के नीचे लिखने की विवशता बन जाएगी।
राजामौली की आने वाली फिल्म ‘आर आर आर’ को लेकर गुरुवार तक हिन्दी बेल्ट के दर्शकों में एक उत्साह था, वह अब नहीं रहा। इस फिल्म का नया प्रोमो प्रदर्शित होते ही राजामौली भी निशाने पर आ गए हैं। राजामौली की इस फिल्म के एक पात्र का नाम और पहचान बदल दी गई है।
ये किरदार महान स्वतंत्रता सेनानी कोमाराम भीम गुरु पर आधारित है। राजामौली ने एक आदिवासी नायक को मुस्लिम बनाकर पेश किया है। गुरुवार को इसका नया प्रोमो रिलीज होते ही दर्शक भड़क गए और राजामौली से सवाल करने लगे।
यूजर्स का यही प्रश्न था कि एक महान क्रांतिकारी को उनके मूल नाम से पेश करने में राजामौली को क्या समस्या थी। उल्लेखनीय है कि देश के राष्ट्रवादी दर्शकों में राजामौली बहुत लोकप्रिय हैं। बाहुबली सीरीज ने उन्हें देश का सबसे सफल डाइरेक्टर का तमगा दिलवाया था।
देश और हिन्दू धर्म को लेकर प्रभावी फ़िल्में बनाने वाले निर्देशकों में राजामौली का नाम सबसे ऊपर आता है। दर्शक ये समझ नहीं पा रहे हैं कि एक राष्ट्रीय नायक का धर्म बदलकर प्रस्तुत करने की राजामौली को क्या आवश्यकता आन पड़ी थी।
इसका जवाब खोजने की कोशिश में राजामौली का इस बारे में दिया गया बयान पढ़ने को मिला। बयान पढ़ने के बाद मुझे इस राष्ट्रवादी निर्देशक से बड़ी निराशा हुई है। राजामौली का तर्क है कि फिल्म बनाने से पहले उन्होंने कोमाराम भीम के इतिहास के बारे में पढ़ा।
इतिहास की जानकारियों में लिखा गया है कि कोमाराम एक हिन्दू वनवासी योद्धा थे और उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया था। राजामौली के शोध के मुताबिक़ कोमाराम का संघर्ष जल, जंगल और ज़मीन के लिए था न कि हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष था।
राजामौली ने कोमाराम को मुस्लिम बनाकर पेश किया है तो उसका कारण यही है कि दर्शक कोमाराम को हिन्दू हितों के लिए संघर्ष करने वाला सेनानी न मान बैठे। कोमाराम अपने और अपने लोगों के अधिकार के लिए लड़े थे। इस फिल्म का बजट 450 करोड़ का है और इतने महाबजट को लेकर राजामौली ने बड़ा जोखिम ले लिया है।
इस विवाद के आगे बढ़ने की पूर्ण आशंका है। कोमाराम भीम तेलंगाना क्षेत्र में बहुत विख्यात हैं और उनके इस क्षेत्र में लाखों समर्थक हैं। उनके नायक का धर्म फिल्म में बदल दिया जाना उन्हें कभी स्वीकार नहीं होगा। हैरानी की बात है कि राजामौली ने ये फिल्म कोमाराम को ही अर्पित की है।
और तो और इस फिल्म में आलिया भट्ट और अजय देवगन भी अभिनय कर रहे हैं। राजामौली ने बॉलीवुड के इन दोनों सितारों को जब अनुबंधित किया था, तब सुशांत सिंह राजपूत और ड्रग्स वाला मामला नहीं था। अब तस्वीर पलट चुकी है।
अजय देवगन के पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ उच्च न्यायालय जाने के बाद उनका भी विरोध शुरु हो चुका है। आलिया भट्ट को नेपो किड होने के कारण ट्रोल किया जा रहा है। हालांकि इस कास्टिंग में राजामौली को कोई गलती नहीं है। अब उनकी फिल्म के साथ तीन विवाद जुड़ चुके हैं।
कोमाराम का धर्म बदल देना, अजय देवगन और आलिया भट्ट को साइन करना फिल्म की सेहत पर बुरा असर डालेगा।कोमाराम के जल-जंगल-जमीन वाले नारे से राजामौली दर्शक को सुलभता से समझा सकते थे कि वनवासी कोमाराम का संघर्ष अपने जंगल बचाने के लिए था।
इसके लिए उनको एक स्वतंत्रता सेनानी का धर्म बदलने की जरूरत नहीं थी। राजामौली की रिसर्च टीम सबसे तगड़े अनुसंधान करने के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि उनकी टीम भारत के वनवासियों पर विस्तृत शोध नहीं कर सकी। कर पाती तो राजामौली को कोमाराम का नाम बदलने जैसा आत्मघाती कदम नहीं उठाना पड़ता।
राजामौली को ये मालूम होना चाहिए कि देश के वनवासी अपने बच्चों के नाम में राम, रमैया, रम्मो, सीता, लक्ष्मण, लच्छी आदि रखते हैं। ये इस बात का प्रमाण है कि वे भगवान राम के पूजक हैं। फिर आप उन्हें हिन्दू योद्धा मानने से इंकार कर देते हैं। आप ऐसा क्यों करते हैं राजामौली जी। क्या इस बात के लिए आपके पास कोई सशक्त तर्क है?