अर्चना कुमारी। सोमवार को दो याचिकाओं पर विचार करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकार कर दिया, जिनमें एक मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को बिना किसी कारण या पूर्व सूचना के किसी भी समय तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के पूर्ण अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका भी शामिल है।
अदालत ने कहा कि एक अन्य जनहित याचिका पर भी कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है, जिसमें मौजूदा पत्नी या पत्नियों की पूर्व अनुमति के बिना और उनके भरण-पोषण की व्यवस्था किए बिना, एक मुस्लिम पति द्वारा बहुविवाह करने को ‘असंवैधानिक और गैर-कानूनी’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
तलाक-उल-सुन्नत एक ऐसा रूप है, जिसमें तलाक के परिणाम एक बार में अंतिम नहीं होते हैं और पति-पत्नी के बीच समझौता और सुलह की संभावना होती है। हालांकि, केवल तीन बार तलाक शब्द बोलने से, एक मुस्लिम विवाह समाप्त हो जाता है। याचिकाकर्ता के वकील ने पहले कहा था कि तलाक की इस तत्काल घोषणा को ‘तीन तलाक’ कहा जाता है और इसे तलाक-ए-बिद्दत भी कहा जाता है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने एक विवाहित मुस्लिम महिला द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया। मामले को लेकर केंद्र की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा ने पीठ को सूचित किया कि दोनों मुद्दे उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।
पीठ ने कहा, केंद्र सरकार की स्थायी वकील ने बताया है कि इन रिट याचिकाओं का विषय उच्चतम न्यायालय के समक्ष भी लंबित है। उन्होंने बताया है कि मामला संविधान पीठ को भेजा हुआ है।
पीठ ने कहा, ‘उपरोक्त के आलोक में, चूंकि मामला पहले से ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है, इसलिए कोई और आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है.. रिट याचिकाओं का निपटारा किया जाता है।’ हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता को उच्चतम न्यायालय का रुख करने की स्वतंत्रता प्रदान की।