Sonali Misra .पिछले दिनों डासना मंदिर के महंत स्वामी यति नरसिंहानंद सरस्वती की गर्दन काटने की धमकी आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान द्वारा दी गयी थी। यद्यपि उनके खिलाफ गैर इरादतन हत्या की एफआईआर दर्ज हो गयी है, इसी के साथ इससे पहले भी यति नरसिम्हानंद सरस्वती के खिलाफ भी प्रेस क्लब में दिए उनके वक्तव्य को लेकर दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज कर चुकी है।
पिछले कुछ दिनों से हम असहिष्णुता का शोर सुन रहे हैं, पर यह असहिष्णुता का शोर गलत स्थान पर हो रहा है। शार्ली हेब्दो के कार्यालय पर हमले का दृश्य भी आँखों के सामने ताजा ही है, इसी के साथ फ्रांस में ही सैम्युअल पैटी की हत्या केवल इस बात पर कर दी गयी थी क्योंकि उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद का कार्टून दिखाया था। जबकि इसी वर्ष मार्च में बीबीसी के एक समाचार के अनुसार उस लड़की ने झूठ बोला था कि सैम्युअल पैटी ने पैगम्बर साहब का कार्टून दिखाया था।
यदि इससे भी पीछे जाते हैं तो यह पाते हैं कि असहिष्णुता का यह इतिहास आज का नहीं है, शिकार केवल सैम्युअल पैटी या यति नरसिंहानंद न होकर और भी कई हैं और यह कहानी वर्ष 1929 में लाहौर में ले जाती है। जहां पर 6 अप्रेल को महाशय राजपाल जी को चाकुओं से गोदकर मार डाला गया था, और वह भी इल्म-उद्दीन द्वारा जो एक जिहादी या कहें इस्लामी चरमपंथी था।
ट्वीट में थ्रेड है रंगीला रसूल किताब और उसके बाद की घटनाओं पर। 1900 की शताब्दी के आरम्भ में आर्यसमाज और इस्लाम के मध्य एक संघर्ष हुआ, और यह संघर्ष खूनी था क्योंकि इसमें इस्लाम संलग्न था। इस्लाम के मानने वालों ने कुछ किताबें लिखीं “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी।” और “सीता का छिनाल”।
फिर उसके बाद इसके प्रतिरोध में पंडित कृष्ण प्रसाद प्रताब (चामुपति) ने यह छोटी पुस्तक लिखी “रंगीला रसूल”, और उन्होंने यह कुरआन, सीरा, हदीस आदि के आधार पर लिखी, जिसमें उन्होंने मुहम्मद साहब की शादियों और उनके यौन जीवन के बारे में लिखा था।
बहुत ही सरल शब्दों में, जिनमें कई स्थानों पर मोहम्मद साहब की प्रशंसा भी है। हालांकि इस पुस्तक में कुछ आलोचना भी है, पर सीताजी का इस्लाम मतावलंबियों ने जो अपमान किया था उतना नहीं! इस किताब का प्रकाशन महाशय राजपाल जी ने किया था। और फिर जाहिर था इस पुस्तक की प्रतिक्रिया में न केवल दंगे हुए बल्कि राजपाल जी के जीवन पर हमले भी हुए।
वर्ष 1927 में हिंदी में रंगीला रसूल: अरब के पैगम्बर का एक शिक्षाप्रद इतिहास नाम से इसका अनुवाद हुआ था। इस पुस्तक पर सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था, परन्तु राजपाल जी ने न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ी और वह जीते। वर्ष 1927 में उन्हें न्यायालय ने ससम्मान रिहा कर दिया था। परन्तु उसके बाद ही जिहादी ताकतें उनसे रुष्ट हो गयीं और उनसे प्रतिशोध लेने का विचार करने लगीं।

इन सबमें महात्मा गांधी जी की भी कहीं न कहीं कुछ भूमिका रही क्योंकि उन्होंने अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली रंगीला रसूल पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग की। उन्होंने यंग इंडिया में 19 जून 1924 को हिन्दू मुस्लिम एकता पर बात करते हुए लिखा कि उन्होंने खुद से पूछा कि ऐसी पुस्तक लिखने के पीछे समाज में वैमनस्य पैदा करना ही उद्देश्य हो सकता है।
इसी के साथ जब राजपाल जी को रिहा कर दिया गया तो महात्मा गाँधी के बहुत प्रिय मौलाना मोहम्मद अली ने चेतावनी दी थी “सरकार चाहती है कि मुसलमान अपने हाथों में क़ानून ले ले और यदि ऐसे मामलों में गंभीरता नहीं दिखायी गयी तो भयानक नरसंहार होगा जिसे कोई भी सेना नहीं रोक सकेगी।”

राजपाल जी पर कई हमले हुए और अंतत: 6 अप्रेल 1929 को उनकी चाकू मार कर हत्या कर दी गयी। मगर उन्होंने अंतिम दिन तक इस पुस्तक के लेखक का नाम नहीं बताया। हालांकि उनके कातिल को अक्टूबर 1929 में फांसी की सजा दे दी गयी। मगर जाहिर था कि उसे शहीद का दर्जा दिया गया और उसे गाजी कहा गया। रंगीला रसूल के बाद ही भारतीय दंड विधान में धारा 295 को सम्मिलित किया गया, जिसमें धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर दंड का प्रावधान किया गया
फिर भी यह सत्य है कि रंगीला रसूल प्रतिबंधित हुई, राजपाल जी की हत्या हुई और अंत में यह क़ानून आया। पर यह भी सत्य है कि सीता का छिनाल” आज तक भारत में प्रतिबंधित नहीं है। यह मामला और हाल ही में डासना के महंत को दी गयी धमकी उस मजहब की सहिष्णुता के विषय पर प्रश्न चिन्ह उत्पन्न करती है।