इन दिनों छद्म किसान आंदोलन के नाम से एक घोर राष्ट्रद्रोही और हिन्दू द्रोही आंदोलन चल रहा है । कहने को तो इनका भारत सरकार द्वारा पारित किए गए एक लंबित फार्मर बिल 2020 का विरोध है और इनका मानना है कि ये बिल किसान विरोधी है । और आश्चर्य की बात ये है कि इस आंदोलन का मुख्य मुद्दा बिल होना चाहिए था ।
जो कि ये न होकर ये आंदोलन धुर हिन्दू विरोध की ओर मुड़ गया। और इसमें पँजाब की एक कौम विशेष बढ़ चढ़कर भाग ले रही है जो कि अपनी लाल, पीली, नीली पगड़ियों से पहचाने जा सकते हैं ।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि इसी पँजाब की कौम ने 2020 के CAA विरोध में भी बड़े सहायक की भूमिका निभाई थी और शाहीन बाग़ में बैठी दादियों और ख़ातूनों के लिए लंगर की व्यवस्थाएँ की थीं ।
इस आंदोलन को हमें हिन्दू विरोधी कहने पर इसी लिए विवश होना पड़ा है क्योंकि हमें तथाकथित किसानों के मंचों से ये स्लोगन सुनने को मिले :-
● हिन्दू कायर होते हैं मैदान से भाग जाते हैं
● हिन्दू नपुंसक होते हैं अपनी औरतों को बचा नहीं पाते
● हिन्दू पाखंडी होते हैं केवल पाखंड करते हैं
● हिन्दू दोगले होते हैं विश्वास के लायक नहीं होते
● हिन्दू डरपोक होते हैं और लड़ने का मादा नहीं रखते
● हिन्दू एहसानफरामोश होते हैं, एहसान लेकर मुकर जाते हैं
● हिन्दू धोखेबाज होते हैं, पीठ पीछे छुरा मारते हैं
● हिन्दू गद्दार होते हैं, इन्होंने सदा गद्दारी ही की है
● हिन्दू गाय का मूत्र पीते रहते हैं इसलिए हिन्दू मूत पीनी जात है
● हिंदुओं में कोई वीर नहीं हुआ ये तो शुरू से मुसलमानों के गुलाम रहे हैं
● हिन्दू साले चोर हैं
● हिन्दू औरतें टके टके में अफगानिस्तान में बिकती थीं
● पूरी दुनिया में हिन्दू बदनाम है
● सारे मंदीरों के पंडितों को धरकर मारो पीटो क्योंकि ये आंदोलन में लंगर नहीं लगा रहे
● यहाँ केवल मुसलमानों का अल्लाह हु अकबर, सिखों का बोले सो निहाल, ईसाइयों का आले लुइया ही
चलेंगे। भारत माता की जय, वन्दे मातरम, राम-राम आदि नहीं बोले जाएँगे ।
● जैसे इंदिरा मारी थी वैसे ही मोदी जाएगा
● मोदी कुत्ता हाय हाय !!
ऐसे ही अनगिनत घृणास्पद और अत्यन्त निंदायुक्त वाक्य हिन्दू समुदाय को बोले गए । जिनको सुनकर किसी भी सनातनी हिन्दू भाई बहन का दिमाग फट जाएगा और वो आत्मग्लानि से सोचने लगेगा कि आखिर उन्होंने ऐसा भी क्या कर दिया है जो उनसे ये पँजाब से आई ये कौम विशेष की टोली इतनी नफरत करती है ? इनकी मोदी से इतनी दुश्मनी क्या है ?
आखिर क्या कारण है कि ये पँजाब में रहने वाला हर पगड़ी वाला सिख मोदी के बारे में गन्दी गन्दी गालीयाँ ही देता रहता है ? मोदी तो मोदी लेकिन योगी आदित्यनाथ, बाबा रामदेव, जग्गी वासुदेव आदि के खिलाफ भी ये लोग इतना जहर किसलिये उगलते हैं ?
इसका कोई राजनैतिक कारण तो हमें दिखाई नहीं देता। क्योंकि मोदी ने इनके लिए बहुत से काम किए जैसे कि
● CAA के द्वारा अफगानिस्तान के प्रताड़ित 700 सिख परिवारों की भारत वापसी करवाना
● सिखों के लिए करतारपुर कॉरिडोर खुलवाना ( जिसके लिए ये एहसानफरामोश इमरान खान को एकतरफा धन्यवाद देते हैं )
● सिखों के गुरूपर्वों पर संसद भवन में गुरुबाणी कीर्तन करवाना
● पँजाब को अच्छे अच्छे आर्थिक पैकेज देना
ऐसे अनेकों काम करने पर भी मोदी से इतनी नफरत का कारण क्या है ? इसका एकमात्र कारण है मोदी एक ऐसा सशक्त हिन्दू चेहरा है जो भारत की सत्ता पर हिंदुओं की सुध लेने के लिए बैठा है ।
इन लोगों का हिंदुओं के प्रति शुरू से ही घृणात्मक रवैया रहा है । ये हिंदुओं को एक बिना रीढ़ की हड्डी का प्राणी समझते हैं । ये समझते हैं कि ये लोग हिंदुओं की बहन बेटीयाँ मुसलमानों से छुड़ाकर लाते थे ।
और सही इतिहास न जानने के कारण हिन्दू भी यही तोतारट लगाते हैं । और इन लोगों को अपने सिर पर बिठाकर इनको अपना बड़ा भाई सिद्ध करते रहते हैं ।हिंदुओं ने इन लोगों को आवश्यकता से अधिक सम्मान दे डाला जबकि इसका विपरीत असर हुआ और ये लोग हिंदुओं के सिर पर चढ़कर मूतने लगे ।
जैसे उस जीव विशेष को घी नहीं पचता ठीक वैसे ही इनको हिंदुओं द्वारा दिया गया सम्मान नहीं पचा । परन्तु क्या कभी हिंदुओं ने इनके इतिहास की परतें खोलने का यत्न भी किया है? उत्तर है नहीं !
ये लोग अपना स्वयं निर्मित जैसा तैसा इतिहास बताते गए हिन्दू वैसे ही मानते चले गए । हिन्दू इनको अपने समाज का अंग मानते हुए इनसे नरमी से व्यवहार करता रहा और ये बदले में अहंकार में आकर सिर पर चढ़कर नाचते रहे ।
हिन्दू समाज ने पूरा जोर लगा लिया इनको सनातन धर्म का हिस्सा सिद्ध करने में लेकिन इन्होंने सदा हिंदुओं के मूँह पर थूकते हुए अपने को ‘वखरी (अलग)कौम’ ही बताया ।
आइए विचार करें कि हिंदुओं से इनको समझने में कहाँ गलती हुई और क्या ये वाकई हिन्दू समाज का अंग हैं? क्या वाकई इस काम विशेष की स्थापना हिंदुओं की रक्षा के लिए हुई थी जैसे कि गोबिंद जी के खालसा पंथ की दुहाई देकर बोला जाता है ? चलिए क्रम से शुरू करते हैं :-
आरम्भ करते हैं नानकदेव जी से जिनको हिन्दू समाज बड़ी ही श्रद्धा की दृष्टि से देखता है और कुछ लोग तो उनके जन्मदिवस पर मन्दिरों में कीर्तन तक करवाते हैं, हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी उनके दिवस पर संसद भवन में ग्रन्थियों को बुलाकर नानक देव जी के शब्द गायन करवाये हैं ।
पर जैसे कि हिंदुओं की अपार श्रद्धा वेद, दर्शन, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, पुराणों आदि पर है, मूर्तिपूजा, तिलक, जनेऊ, कलावा, यज्ञ, सूर्य को अर्घ देना, कण्ठी, माला आदि धारण करना आदि
कर्मों का सनातन धर्म में अपना एक विशेष महत्व है और हर सनातनी हिन्दू इनको श्रद्धापूर्वक मानता है । परन्तु क्या आप जानते हैं कि सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने इन सबकी निंदा की है ।
नानक देव जी ने कहा है ” ਵੇਦ ਪੜ੍ਹੇ ਬ੍ਰਹਮਾ ਮਰਤ, ਕਹੇ ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਕਹਾਣੀ ” ( वेद पढ़े ब्रह्मा मरत, कहे चारे वेद कहानी ) यानी कि चारों वेद कहानी मात्र हैं , अब इससे हिंदुओं को क्या समझना चाहिए ? यदि कोई वेद की निंदा करता है तो उसे महापाप हमारे शास्त्रों में बोला गया है । जिन वेदों में भरपूर ज्ञान भरा हुआ है,
ऐसा कोई मानव जीवन का विषय नहीं जिसे चारों वेदों ने न छुआ हो तो उसे कहानी बता देना कहाँ की बुद्धिमता है?
नानक जी की जन्म साखी में स्पष्ट लिखा हुआ है कि वे मक्का शरीफ होकर आए थे या सरल भाषा में कहें कि हज करके आये थे और ईराक के गवर्नर ने उनको उनकी इस्लाम परस्ती के लिए अरबी आयतों वाला एक चोला भी उपहार में दिया
और नानक जी के अंत समय तक वो चोला उनके पास रहा था इसलिए उसके नाम पर एक गुरुद्वारा चोला साहिब भी बना हुआ है जिसे आप इस वीडियो लिंक
Link पर जाकर देख और समझ सकते हैं ।
15 सदी से पहले तक तो पूरे अरब टापू पर काफिरों गैर मुस्लिमों का जाना वहाँ निषेध था ये तो अब जाकर वैश्वीकरण के कारण मक्का तक सीमित हुआ है तो प्रश्न उठता है कि कोई हाजी बिना खतना किये मक्का शहर के जेद्दाह के आगे प्रवेश नहीं कर सकता है तो नानक देव जी को वहाँ कैसे प्रवेश मिला वो भी बिना इस्लाम स्वीकार किये?
इससे तो यही सिद्ध होता है कि नानक जी एक हाजी थे । और अब इससे समझा जा सकता है कि एक हाजी के लिए वेद आदि शास्त्रों की निंदा करना, हिन्दू परम्पराओं को पाखण्ड बताना कोई बड़ी बात नहीं है । पाठकगण स्वयं विचार करें ।
◆ सबको ये बात पता है कि सिखों के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी को तपती हुई बड़ी सारी तवी पर बिठाकर सिर में गर्म रेत डालकर बादशाह जहाँगीर के द्वारा शहीद कर दिया गया था ।
जी हाँ ये वही जहांगीर है जो बनारस में सैकड़ों मन्दिर एक एक दिन में तुड़वा दिया करता था और इसके हरम लूटी हुई सुन्दर सुंदर महिलाओं से भरे रहते थे । इसी के दरबार का एक लाहौर का एक काज़ी जिसका नाम साईं मियाँ मीर मुहम्मद मोइनुद्दीन इस्लाम ने
सन 1589 अगस्त में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नीँव रखता है । यहाँ देखने वाली बात है कि मन्दिर तुड़वाने वाला यहाँ किसी मंदिर की नींव रख रहा है । यानी कि कोई स्वार्थ पूर्ति का कारण अवश्य है ।
अब आगे चलते हैं सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी इसी जहाँगीर के साथ शिकार खेलते हुए पाए जाते हैं जैसा कि आप इस सिख साईट पर भी देख सकते हैं
एक गुरु को जहाँगीर शहीद कर रहा है और दूसरे उनके बाद वाले गुरु हरगोबिंद जी ही अपने सिख पंथ के दुश्मन जहाँगीर के साथ शिकार खेलते हैं । ये बात समझ से परे है ।
◆ अब आते हैं हम गुरु तेग बहादुर जी पर जिनको पूरा हिन्दू समाज और ये पँजाब की कौम विशेष भी ‘हिन्द की चादर’ कहकर संबोधित करते हैं । इनका मानना है कि औरंगजेब ने हिंदुओं को मुसलमान बनाने की अती की हुई थी ।
जिसकी सेनाओं से पूरा हिन्दू समाज आतंकित था । इसी से दुखित होकर कश्मीरी पंडित सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर जी के पास प्रार्थना लेकर गए कि “हमें औरंगजेब के धर्म परिवर्तन से बचाइए” ।
तो कश्मीरी पंडितों की विनय सुनकर तेग बहादुर जी ने कहा कि इसके लिए किसी के बलिदान की आवश्यकता है जिसे सुनकर झट से बाल गोबिंद राय ( गुरु गोबिंद सिंह जी ) बोले कि “पिताजी आपसे महान इस बलिदान के लिए और कौन हो सकता है ?”
तो ये सुनकर गुरु तेग बहादुर जी दिल्ली के चाँदनी चौंक में औरंगजेब की सेनाओं द्वारा अपना शीश कटवाकर शहीद हो गए । इसलिए वे हिन्द की चादर कहलाए,
क्योंकि उन्होंने भारत के हिंदुओं के लिए अपना बलिदान दे दिया था । परन्तु जैसा कि हिन्दू समाज की पुरानी आदत है बिना जांच पड़ताल किये ही किसी भी बात को तुरन्त मान लेते हैं यहाँ उनके लिए सोचने वाली कुछ बातें हैं :-
(1) तेग बहादुर जी के पास ऐसी कौनसी राजनैतिक शक्ति थी जिसके आधार पर कश्मीरी पंडित उनसे सहायता मांगने के लिए चले गए ? न तो वे किसी रियासत के राजा थे या सैनिक ताकत से सम्पन्न थे जो पंडितों की सहायता कर पाते ।
(2) तेग बहादुर जी के पास केवल कश्मीरी पंडित ही क्यों परेशान होकर गए ? जो कि उनसे लगभग 1000 किलोमीटर दूरी पर थे लेकिन वहीं औरँगजेब की जड़ों में यानी कि दिल्ली में बैठने वाले पण्डित एक बार भी तेग बहादुर जी उर्फ त्याग मल सोढ़ी जी के पास नहीं गए ।
यानी कि ये माना जाए कि औरँगजेब केवल कश्मीर के पंडितों को ही तंग करता था और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि के पंडितों से प्यार करता था ।
(3) तेग बहादुर जी न तो हिंदुओं के कोई बड़े नेता थे जिसके पास पंडितों को जाने की कोई आवश्यकता पड़ती । क्योंकि उत्तर और दक्षिण भर में बहुत बड़े बड़े विद्वान योगी रहा करते थे जो हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करते थे तो कश्मीर ,
उज्जैन, काशी आदि सभी ब्राह्मण इन योगियों के पास ही धर्म सभा करने जाया करते थे। और शिवाजी के पास भी पेशवा ब्राह्मण उनको औरँगजेब के खिलाफ युद्धनीति समझाया करते थे ।
सभी ब्राह्मण मराठाओं के पास जाया करते थे क्योंकि मराठा सत्ता बहुत ही शक्तिशाली और निर्णायक स्थीति में थी । तो तेग बहादुर जी के पास जाने का कोई औचित्य ही नहीं था
(4) जो औरँगजेब अपने बाप और भाई दाराशिकोह का कत्ल करके भी न माना तो आखिर वो तेग बहादुर जी का गला काट कर उनके निधन पर पंडितों के धर्म परिवर्तन पर ही क्यों रुक गया ?
या यों कहें कि तेग बहादुर के बलिदान से उसको ऐसा कौनसा सदमा या धक्का लगा कि इतनी ताकतवर सेना ( कहते हैं कि औरँगजेब के पास 40 लाख की सेना थी , किसी देश के पास भी आज के समय में इतनी सेना नहीं है ) होने के बावजूद वो तेग बहादुर जी के बलिदान से डरकर पंडितों का धर्म परिवर्तन रोक देता ?
ये बातें हर हिन्दू विचार करे । अब आगे तेग बहादुर जी के असम दौरे की बात करते हैं । कहते हैं औरंगजेब ने असम के राजा चक्रध्वज के विद्रोह को दबाने के लिए अपने खास राजा राम सिंह को नियुक्त किया हुआ था
और यही राजा रामसिंह असम में औरंगजेब के लिए सुंदर सुंदर बोडो जाती की तांत्रिक लड़कियों की तस्करी करता होता था । इस निम्नलिखित साईट में असम के धुबरी के गुरुद्वारा के इतिहास में लिखा है
कि गुरु तेग बहादुर जी भी इस राम सिंह के साथ असम में आध्यात्मिक प्रचार के लिए जाते थे । लेकिन खेद है कि राम सिंह जैसे व्यक्ति के साथ तेग बहादुर जी का असम में जाना समझ से परे है । अब इससे क्या निष्कर्ष निकलता है ? ये निर्णय हम पाठकों पर छोड़ते हैं ।
◆ अब आगे हम सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी पर चर्चा करते हैं । तो पाते हैं कि उनके जीवन में काफी उतार चढ़ाव आये हैं पहली बात ये है कि गुरु गोबिंद सिंह जी के पूरे परिवार को समाप्त करवाने वाले बादशाह औरंगजेब के प्रति उनके मन में भयंकर प्रतिशोध की भावना होनी चाहिए थी ।
परन्तु इसके विपरीत हम गुरु गोबिंद सिंह जी के द्वारा फ़ारसी में लिखित जफरनामा में ये पाते हैं कि गुरु जी उस पापी औरंगजेब के सुंदर रूप की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे हैं, उनको सहिष्णु, धार्मिक आदि अलंकारों से सम्बोधित कर रहे हैं ये आप इस साईट में देख सकते हैं
जिन मित्रों को फ़ारसी, अंग्रेज़ी और पँजाबी में हाथ तंग हो उनके लिए इन श्लोकों का हिंदी अनुवाद ये गुरु गोबिंद जी के जफरनामा के 89 से लेकर 96 श्लोक हैं:- “खुशश शाहे शहान औरंगज़ेब, कि चालक दस्त अस्त चबक रकेब ।।” (89)
●बादशाह औरंगज़ेब राजाओं के राजा हैं, वे बहुत ही नेकदिल अच्छे तलवारबाज और घुड़सवार हैं ।
“कि हुस्न अल जमाल अस्तो रौशन ज़मीर,
खुदावंद मुल्क अस्तो साहिब अमीर ।।” (90)
●औरंगज़ेब बहुत ही खूबसूरत और दिलकश हैं, वे तेज़ दिमाग के हैं और अपनी सल्तनत के खुदा हैं ।
“ब तरतिश दानिश ब तरतिश तेग,
खुदावंद देगो खुदावंद तेग ।।”(91)
●औरंगज़ेब बहुत ही दानी और बुद्धिमान तलवार चलाने वाले हैं, वो दुनिया को सारी जरूरतमंद वस्तुओं का सामान पहुंचने वाले हैं अपनी सेना के द्वारा ।
“कि रौशन ज़मीर अस्त हुस्न अल जमाल,
खुदावंद बख्शिन्द ए मुल्कों माल ।।” (92)
●औरंगज़ेब बहुत ही खूबसूरत और तेज दिमाग हैं, वो अपने सल्तनत की जागीरों को बांटने में माहिर हैं ।
“कि बक्शश कबीर अस्त जंग को,
मलायक सिफ़त चूँ सुर्र्या शकोह ।।” (93)
●औरंगज़ेब का जलवा महान है, लड़ाई में वे पहाड़ जैसे हैं, सब फ़रिश्ते उनको सजदा करते हैं ।
“शहनशाहो औरंगज़ेब आलमी,
कि दाराई दौर अस्त दूर अस्त दीं ।।” (94)
●औरंगज़ेब राजाओं के राजा हैं, वो दुनिया के खुदा हैं और सारी अमीरी उनके पास है, पर वो अपने दीन (मज़हब) से दूर हैं ।
“मनम कुश्तह अम् कोहीयाँ बुतपरस्त,
कि ओ बुत परस्तन्द मन बुत शिकस्त ।।(95)
●मैं भी पहाड़ी राजाओं का कातिल हूँ, जो मूर्तिपूजक (बुतपरस्त) हैं, और यदि वे बुतपरस्त हैं तो मैं भी बुत तोड़ने वाला हूँ ।
“बबीं गर्दिशे बेवफाईए जमां,
पसे पुश्त ऊफ़तद रसानद जियां ।।”(96)
●देखो इस बेवफा दुनिया को, जो इसके सामने अपने को पेश करता है तो यही दुनिया उसे नुकसान पहुंचाती है ।
ये सारे श्लोक पढ़कर कोई भी हैरान हो जाएगा और कहेगा कि ये गोबिंद जी जिनके बाप को औरंगज़ेब ने गला काट दिया हो, बच्चे दीवार में चिनवा दिए हों, मां को ठंड में मार दिया हो, बजाए का औरंगज़ेब का विरोध करने और उसके खिलाफ काम करने के उसे ये लैटर किसलिए लिख रहे हैं ?
जिसमें औरंगज़ेब की सुंदरता के कसीदे पढ़ रहे हैं, उस जालिम को रहमदिल बता रहे हैं, पहाड़ी हिन्दू राजाओं के देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ने की बातें कह रहे हैं । क्या ये सब पढ़कर भी किसी को लगता कि ऐसा लिखने वाले किसी ने हिंदुओं की रक्षा की होगी ?
गुरु गोबिंद जी अपनी सेना में लगभग 400 पठानों को रखते थे । और इसी कारण शायद उन पठानों को साथ लेकर मंदीरों की मूर्तियों को तोड़ा हो जिसके कारण उन्होंने जफरनामा में अपने को बुतशिकन बोला है।
हमारे जितने भी हिन्दू योद्धा हुए हैं उन्होंने मुसलमानों को अपनी सेना में नहीं रखा क्योंकि वे सब इस कौम की मज़हबपरस्ती को जानते थे क्योंकि वो चौकीदार जो चोरों से दोस्ती रखता हो उसे कभी काम पर नहीं रखा जा सकता । लेकिन शायद इसी कारण गोबिंद जी कभी कोई निर्णायक युद्ध जीत नहीं पाए ।
कुल मिलाकर इनके 10 गुरुओं के इतिहास की समीक्षा से ये निकलता है कि जितना ये इतिहास में इनका योगदान हिन्दू समाज के लिए बढ़ चढ़कर बताते हैं वास्तव में वह 10% भी नहीं है।
एक बात पर और विचार कीजिये हमारे जितने भी हिन्दू योद्धा शिवाजी, राणा प्रताप, बप्पा रावल, छत्रसाल, गोकुल वीर, माधवदास वैरागी, बाजीराव पेशवा, देवपाण्ड्य कटाबोमन, कृष्ण देव राय आदि हुए हैं क्या अपने सुना कि इनमें से किसी ने सनातन हिन्दू धर्म से अलग हटकर अपना कोई नया अलग से वेद विरोधी धर्म ग्रन्थ लिखा हो ?
या गुरु पीर परम्परा के अनुसार गुरु गद्दियों की कोई रीत चलाकर कोई नया धर्म बनाया हो ? उत्तर होगा नहीं !! ये सब अपने ही पूर्वजों के हिन्दू धर्म में रहकर ही लड़े । और आपसे ये पँजाबी कौम कहती है कि हमने 85% योगदान तुम्हारे लिए दिया ?
भाई प्रश्न उठता है कि तुमने हमारे लिए योगदान कैसे और कब कब दिया ज़रा वह सूची भी हमको दिखाओ । कैसे मान लें कि तुमने हिंदुओं को बचाया है ?
● तुम अपने नानक के गुरुद्वारे ननकाना, करतारपुर, पंजा साहिब आदि तो मुसलमानों से बचा नहीं पाए जो पाकिस्तान में चले गए हैं ।
● तुम पाकिस्तान में 6000 से भी कम, अफगानिस्तान में 173 सिख परिवार ही बचे हो । भारत में हिंदुओं की दया के कारण 3 करोड़ हो और कहते हो हिंदुओं को बचाया ? खुद को क्यों नहीं बचा पाए ?
● तुम कहते हो कि तुम न होते तो हिन्दू नमाज़ पढ़ रहा होता, लेकिन तुम्हारा दो तिहाई पँजाब तो खुद नमाज़ पढ़ रहा है और तुम्हारे सारे जट्ट जो पश्चिमी पँजाब में थे सब मुसलमान जट्ट बन गए और तुम हमारा धर्म बचाने की डींग मारते हो ?
● तुम कहते हो कि तुमने हिन्दू औरतें बचाईं, लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपनी औरतें क्यों नहीं बचा पाए ? क्या इतनी ही चिंता थी हिन्दू औरतें बचाने की? कि अपनी औरतें मुसलमानों को देते रहे और हिंदुओं की बचाते रहे ?
● तुम्हारे कोई भी गुरु मुग़लों के खिलाफ कोई निर्णायक लड़ाई न जीत पाए और तुम बोलते हो कि गुरुओं ने हिन्दू बचाए ?
● तुम्हारे गुरुओं और अन्य सिखों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि तुम्हारी सिखों की लाशों के अंतिम संस्कार कर सकते ये तो टोडर मल जैसे हिन्दू बनियों के कारण तुम्हारी लाशों के दाह संस्कार हो पाए । और तुम कहते हो कि तुमने हिंदुओं को सहारा दिया ।
● क्या तुम्हारे सिख लड़ाकू इतने मूर्ख थे जो अपना पँजाब छोड़कर यूपी, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र आदि में हिंदुओं को बचाने निकल जाते थे और अपना पँजाब तक मुग़लों से नहीं बचा पाते थे ? जो जहाँ होता है वो अपनी लड़ाई खुद लड़ता है, कोई अपना खेत जलते हुए छोड़कर दूसरे के खेत की आग बुझाने किसलिये भागेगा ?
● जितने खूनी हमले थे वो तुम्हारे पँजाब के जरिये हुए, इसका मतलब तुम इतने कायर थे कि तुमसे एक भी हमला नहीं रोका गया और दुश्मन तुमको अपने जूते की नोक बराबर समझते थे । फिर भी तुम कहते हो कि हमने हिन्दू बचाए ?
● तुम कहते हो कि 85% कुर्बानियाँ तुमने ही दीं, जबकि हम 1857 से लेकर 1947 तक का आंकड़ा उठाएं उसमें असंख्य हिन्दू नाम मिलते हैं और अंगुलियों पर गिनने लायक सिख नाम हैं, तो कैसे मान लें कि तुमने 85% योगदान दिया ?
ये सारे प्रश्न अब इस पँजाब की कौम विशेष के बारे में हिन्दू समाज को भी करने चाहियें । आखिर पता तो चले कि इन लोगों को मीठा बोलकर इनको अपने सिर माथे पर बिठाने वाले हिन्दू ने कहाँ कमी छोड़ी थी जो ये हिंदुओं से इतनी नफरत करते हैं ।
और सोशल साइटों पर बड़ी ही बेशर्मी से हिन्दू आस्थाओं के बारे में बेहद घटिया और गन्दी बातें करके विष वमन करते हैं ? हिन्दू समाज ने इनको सदा अपना अंग मानकर इनसे नरमी से व्यवहार किया
परन्तु इन्होंने सदा ही हिंदुओं के मूँह पर थूकते हुए अपने को अलग बताया है । परन्तु वे हिन्दू जो इनको अपने समाज का अंग मानते हैं वे बताएँ कि :- ये सिख आपको किस दृष्टि से हिन्दू लगते हैं ?
● बिंदी, माँगसिंदूर, टिका, कलावा, मंगलसूत्र, काँटे आदि न पहनने वाली,विधवाओं और मुस्लमानियों के जैसे मनहूस दिखने वाली, मुस्लिम औरतों जैसे हिजाब और लम्बे कट वाले सलवार सूट पहनने वाली ये सिख औरतें किस दृष्टि से आपको हिन्दू दिखाई देती हैं ?
● अफगानियों के जैसे पग्ग बांधने वाले, लम्बे और पठानी कुर्ते पजामे पहनने वाले, जानवरों जैसे बाल और दाढ़ी रखने वाले ये पँजाबी किस दृष्टि से आपको हिन्दू लगते हैं ?
● सात्विक, प्याज लहसुन रहित भोजन करने के बजाए, तीखे मिर्च मसाले वाले, मास मदिरा का सेवन करने वाले ये कौम विशेष वाले किस दृष्टि से आपको हिन्दू लेते हैं ?
● पवित्र अग्नि के बजाए मुसलमानों के जैसे एक किताब के सामने शादी करने वाले ये पँजाबी कौम वाले किस दृष्टि से आपको हिन्दू लगते हैं ?
● संस्कृत से युक्त शब्दों के बजाए, फ़ारसी अरबी मिश्रित अक्खड़ पँजाबी भाषा बोलने वाले और बात बात पर माँ बहन की गालीयाँ देने वाले ये सिख किस दृष्टि से आपको हिन्दू लगते हैं ?
● जिनके सारे गुरुओं के सम्बंध मुग़ल खानदानों से रहे और पहले गुरु ने ही मक्का में हज किया हो तो किस दृष्टि से ये लोग हिन्दू सिद्ध हुए ?
● जो ये लोग हिंदी भाषा, हिन्दू सभ्यता, और भारत से इतनी नफरत करते हैं और हर देशद्रोही के समर्थन में खड़े दिखते हैं तो कैसे ये आपको हिन्दू लगते हैं ?
हिन्दू भाईयों ! फालतू में इनको सनातनी हिन्दू सिद्ध करने में ऊर्जा और समय नष्ट करना छोड़ो ।
अविश्वसनीय मगर कुछ हद तक सत्य। नयी जानकारी,