अर्चना कुमारी। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार को देश में धोखे से किए जाने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सवाल किया, ‘‘अदालत को इन सबमें क्यों पड़ना चाहिए? अदालत सरकार को परमादेश कैसे जारी कर सकती है।’’
कर्नाटक के रहने वाले याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता जेरोम एंटो ने कहा किं हिंदुओं और नाबालिगों को निशाना बनाया जा रहा है तथा उनका ‘धोखे से धर्मांतरण किया जा रहा है। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘अगर कोई ताजा मामला है और किसी पर मुकदमा चल रहा है, तो हम उस पर विचार कर सकते हैं।
उसने कहा, ‘‘यह कैसी जनहित याचिका है? जनहित याचिका एक जरिया बन गई है और हर कोई इस तरह की याचिकाएं लेकर आ रहा है।’’ यह दलील दिए जाने पर कि याचिकाकर्ता को इस तरह की शिकायत लेकर कहां जाना चाहिए, पीठ ने कहा, ‘‘सलाह देना हमारा क्षेत्राधिकार नहीं है। (याचिका) खारिज की जाती है।’’
अधिवक्ता भारती त्यागी के माध्यम से दाखिल जनहित याचिका में केंद्र और सभी राज्यों को पक्षकार बनाया गया था और धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए शीर्ष अदालत से निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था, ‘धोखे से या डरा-धमकाकर और उपहार या आर्थिक लाभ का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा) और 25 (धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।
याचिका में ऐसे धर्मांतरण पर लगाम लगाने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की अपील की गई थी। इसमें कहा गया था, ‘‘वैकल्पिक रूप से, न्यायालय भारत के विधि आयोग को अनुच्छेद 14, 21 और 25 की भावना के अनुसार तीन महीने के भीतर ‘धोखे से किए जाने वाले धर्मांतरण‘ को रोकने के लिए एक रिपोर्ट और एक विधेयक तैयार करने का निर्देश दे सकता है