अरविंद केजरीवाल, मायावती, लालू यादव और कांग्रेसी-कम्युनिस्ट नेता पूरी तरह से लोकतंत्र विरोधी हैं। ये नेता लोकतंत्र को तभी तक मानते हैं, जब तक ये जीत रहे हों। ज्यों ही जनता इन्हें ठुकराना शुरू करती है, ये लोकतंत्र की ही हत्या पर उतारू हो जाते हैं! वैसे भी ये लोग किसी एक जाति और किसी एक मजहब के पॉकेट नेता हैं, इसलिए देश के संपूर्ण लोकतंत्र में इनका भरोसा वैसे भी नहीं रहा है! जब तक ये जीतते रहे देश की चुनाव प्रणाली सही थी, लेकिन ज्यों ही 11 मार्च 2017 को इनके प्रतिकूल परिणाम आया ये लोग देश के चुनाव प्रणाली और जनता की समझदारी पर ही सवाल उठाने लगे!
पहले अरविंद केजरीवाल की बात करते हैं, क्योंकि सबसे अधिक राजनीति स्वच्छता का नारा देते हुए यही महाशय राजनीति में आए थे और आज गंदी राजनीति के सबसे बड़े झंडबदार ये बन चुके हैं। केंद्र में जब यूपीए सरकार थी तब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 27 सीटें जीती थी और जब केंद्र में एडीए की सरकार बनी तो इनकी पार्टी 70 में से 67 सीट जीतने में सफल रही थी। तब ये लोकतंत्र को मजबूत बता रहे थे, लेकिन ज्यों ही पंजाब और गोवा में इनकी हार हुई इन्होंने ईवीएम मशीन में ही गड़बड़ी का आरोप लगा कर लोकतंत्रात्मक प्रक्रिया पर ही सवाल उठा दिया। वैसे तो किसी शिकायती बच्चे की तरह ये नोटबंदी और पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का भी सबूत मांग चुके हैं, अब ईवीएम के सही होने का सबूत मांग रहे हैं। जनता इन्हें कब का सीरियस लेना बंद कर चुकी है, जिसका नतीजा पंजाब और गोवा में आ चुका है।
केजरीवाल का तर्क है कि पंजाब में अकाली-भाजपा को 31 फीसदी वोट कैसे आ सकता है, जबकि विशेषज्ञों का अनुमान आम आदमी पार्टी की जीत का था? इनके विशेषज्ञ मीडिया में बैठे इनके क्रांतिकारी पत्रकार हैं, जिनके मुंह और चैनल से ये जैसे चाहें उस तरह का न्यूज सेट करते रहे हैं, जनता ने अपनी आंखों से इसे देखा है। फर्जीवाड़ा सर्वेक्षण छापने और दिखाने में माहिर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी उन एग्जिट पोल पर पर सवाल उठा देती है, जिसमें उन्हें हारता दिखाया जाता है। हर चीज पर सवाल उठाना और खुद किसी सवाल का जवाब नहीं देना, यही इनकी फितरत है।
एक दिल्ली के मतदाता के नाते मेरा अरविंद केजरीवाल से यही कहना है कि वह इतने ही ईमानदार और लोकतंत्र को बचाने के लिए सीरियस हैं तो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें और विधानसभा भंग करें और चुनाव आयोग से कहें कि दिल्ली नगर निगम चुनाव के साथ ही दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी वह मतपत्र से कराएं। यदि चुनाव आयोग नहीं माने तो सुप्रीम कोर्ट जाएं और यही मांग दोहराएं। चूंकि पंजाब और गोवा की जनता ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया है, इसलिए कह रहे हैं कि लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता है। जब लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जात है तो वह भी उसी ईवीएम मशीन और उसी लोकतंत्र की प्रक्रिया से जनता द्वारा चुने गए हैं। तुरंत इस्तीफा दें। जनतंत्र में ऐसे नेता का कोई स्थान नहीं है, जो जनमत का सम्मान न करे और अपनी हार के लिए तरह-तरह के बहाने बनाए। वैसे भी 40 सीट वाली गोवा में इनके 38 और पंजाब में 25 उम्मीदवार जमानत गंवा चुके हैं! यही इस नेता की विश्वसनीयता जनता की नजर में है! इसे जितना जल्दी वो समझ लेंगे, उतना भला उनका ही होगा।
ऐसा ही आरोप मायावती ने लगाया है। बौखलाई मायावती का कहना है कि भाजपा की जीत लोकतंत्र की हत्या है, बेईमानी है, मुसलमान इनको वोट कैसे दे सकता है? ईवीएम में गड़बड़ी हुई है वगैरह। मुझे याद है जब उप्र का पिछला विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने जीता था, उस वक्त मायावती ने मीडिया के समक्ष आकर कहा था कि जनता समाजवादी पार्टी को चुनकर पछताएगी। आज भाजपा जीती है तो यह उस जनादेश को ही धांधली बता रही है।
मतलब जब तक मायावती जीतती रहती है तभी तक जनता का हित है। ज्यों ही दूसरी पार्टी जीतती है वह जनता पर दोषारोपन शुरू कर देती हैं।
मायावती भी 2007 में उप्र की मुख्यमंत्री ईवीएम मशीन में पड़े मत के आधार पर ही बनी थी। क्या तब भी ईवीएम की धांधली के कारण बनी थी? वास्तव में मायावती एक कुंद दिमाग राजनीति की पहचान है, जो दलित और मुसलमान कांबिनेशन के नाम पर सत्ता कब्जाए रखना चाहती है। ज्यों ही इनमें से एक भी वर्ग हटता है, इनकी सत्ता चली जाती है। सौ से अधिक मुसलमानों को टिकट देकर मायावती ने उप्र विधानसभा को मजहबी विधानसभा में तब्दील करना चाहा था, जिसके जवाब में जनता ने उन्हें 20 सीट में समेट दिया। वह कह रही है कि मुसलमान के लिए मजहब पहले है, फिर भाजपा को वोट कैसे दे सकती है? यानी वह केवल मजहब की राजनीति साध रही थी, जिसे उप्र की जनता ने नकार दिया है। अब ईवीएम के लिए वह चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जाएं या चाहें तो बड़बड़ाती रहें, जनता ने उन्हें व उनकी पार्टी को विभाजक मानते हुए रसातल में पहुंचा दिया है।
लालू तो अपनी मूर्खता के लिए मशहूर हैं हीं। कह रहे हैं कि चूंकि ईवीएम मशीन गुजरात में बनता है इसलिए गड़बड़ होती है। उनका इशारा गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की ओर है। लेकिन लालू यह भूल रहे हैं कि अब जनता उनकी मूर्खता के जाल में फंसने वाली नहीं है। चुनाव आयोग के वेबसाइट पर जाइए, ईवीएम मशीन के बारे में पता चलेगा कि वह बेंगलूर व हैदराबाद में बनती है न कि गुजरात में। यह मूर्ख जातिवादी राजनेता भी यादव-मुसलमान राजनीति के बदौलत शासन करते रहे हैं, इसलिए इन्हें न देश समझ में आ सकता है न ही देश का लोकतंत्र। यह लालू ही थे, जो मतपेटी की कैप्चरिंग कर मुख्यमंत्री बनते रहे थे और कहते थे मतपेटी से जिन्न निकलेगा! अब फिर से लालू, मायावती, शहरी नक्सली केजरीवाल मतपेटी को बंदूक के बल पर कैप्चर करने के सपने देख रहे हैं, शायद!
दरअसल ईवीएम की गड़बड़ी की बात यूपीए शासन में लालकृष्ण आडवाणी व डॉ सुब्रहमनियन स्वामी ने उठाया था, लेकिन वह कुछ उदाहरणों और तथ्यों को लेकर उठाया और उसे सुप्रीम कोर्ट ले गए। डॉ स्वामी ने एक सीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट मंे चुनौती दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सुझाव दिया था, जिसे लागू किया गया। ईवीएम में पर्ची निकलना भी स्वामी के सुप्रीम कोर्ट जाने के कारण ही संभव हुआ, जिसका हर चुनाव में कुछ सीटों पर ट्रायल होता है।
केजरीवाल, मायावती, राहुल गांधी, अखिलेश यादव आदि ईवीएम के खिलाफ चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ऐसे कोई तथ्य पेश नहीं कर पाए हैं। यदि उन्हें देश व संविधान पर जरा भी भरोसा है तो तथ्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएं न कि विधवा विलाप करें। वास्तव में ये लोग जनता द्वारा इनके मुंह पर पोती गई कालिख को पोंछने के प्रयास में ईवीएम पर ठीकरा फोड़ रहे हैं और जनमत का अपमान कर रहे हैं। इन्होंने जता दिया है कि जनता पर इन्हें भरोसा नहीं है, लेकिन इनसे पहले ही जनता ने यह जता दिया कि उसे इन पाखंडी और दोहरे चरित्र वाले नेताओं पर भरोसा नहीं है। यही लोकतंत्र है। आपको खूब चिल्लाने का अधिकार देता है, खूब चिल्लाइए…। कुछ है तो सुप्रीम कोर्ट में ले जाइए, अन्यथा जनता पूरी तरह से पैक कर चुकी है, अब अगले चुनाव में पूरी तरह से दफना भी देगी।