सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को ये सवाल किया कि पिछड़ी जातियों में मौजूद संपन्न उप जातियों को आरक्षण की सूची से ‘बाहर’ क्यों नहीं किया जाना चाहिए और वो सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करें.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ ने सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर एक ख़ास रिपोर्ट प्रकाशित की है.
अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ में शामिल जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा था कि ‘इन्हें आरक्षण सूची से निकाला क्यों नहीं जाना चाहिए?’
उन्होंने कहा, “इनमें से कुछ उप-जातियों ने बेहतर किया है और संपन्नता बढ़ी है. उन्हें आरक्षण से बाहर आना चाहिए और सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए.”
जस्टिस नाथ ने कहा कि ये संपन्न उप-जातियां आरक्षण के दायरे से बाहर निकलकर उन उप-जातियों के लिए अधिक जगह बना सकती हैं जो अधिक हाशिये पर या बेहद पिछड़ी हुई हैं.
उन्होंने कहा, “बाक़ी की उप-जातियां जो अब भी पिछड़ी हैं, उन्हें आरक्षण दिया जाए.”
चीफ़ जस्टिस ने आरक्षण पर क्या कहा
बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने कहा, “एक शख़्स जब आईएएस या आईपीएस बन जाता है तो उसके बच्चे गांव में रहने वाले उसके समूह की तरह असुविधा का सामना नहीं करते हैं. फिर भी उनके परिवार को पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा.”
उन्होंने कहा कि ये संसद को तय करना है कि ‘ताक़तवर और प्रभावी’ समूह को आरक्षण की सूची से बाहर करना चाहिए या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने ये संकेत दिया कि आरक्षण की अवधारणा में इसमें कुछ निकालना भी निहित हो सकता है.
उन्होंने मौखिक रूप से कहा कि पिछड़ी जातियों के लिए सीट आरक्षित करने के लिए निश्चित रूप से अगड़ी जातियों को बाहर किया गया था लेकिन ये संविधान की अनुमति से हुआ था क्योंकि राष्ट्र औपचारिक समानता नहीं बल्कि वास्तविक समानता में विश्वास रखता है.
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ इस सवाल का जवाब तलाश रही है कि क्या राज्य अनुसूचित जातियों (एससी) की श्रेणी में उप-जातियों की पहचान कर सकता है जो अधिक आरक्षण के लायक हैं.
पंजाब सरकार ने दिया है आरक्षण
पंजाब सरकार ने इस पर जिरह करते हुए कहा कि राज्य एससी सूची में उप-जातियों की पहचान कर उन्हें सशक्त बनाने के लिए अधिक आरक्षण दे सकते हैं क्योंकि ये हाशिये पर मौजूद पहली जातियों से भी बहुत पिछड़ी हैं.
पंजाब के एडवोकेट-जनरल गुरमिंदर सिंह ने तर्क दिया कि अगर समुदाय सामान्य और पिछड़े वर्ग में बाँटे जा सकते हैं तो ऐसा पिछड़े समुदायों में भी किया जा सकता है.
राज्य ने तर्क दिया कि अगर सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ी जातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति है तो ऐसा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में करने की भी अनुमति हो सकती है.
पंजाब अपने क़ानून पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण), क़ानून 2006 के वैध होने का बचाव सुप्रीम कोर्ट में कर रहा है.
इस क़ानून में बाल्मीकि और मज़हबी सिख समुदायों को आरक्षण में प्राथमिकता दी गई है. एससी वर्ग का आधा आरक्षण पहले इन दो समूहों को दिया गया है.
साल 2010 में राज्य के हाई कोर्ट ने इन प्रावधानों को ख़त्म कर दिया था और उसने ईवी चिन्नईया केस में पांच जजों की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले को इसका आधार बताया था.
उस फ़ैसले में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के मुताबिक़ एससी सूची में किसी समूह को केवल राष्ट्रपति ही शामिल कर सकते हैं.
संवैधानिक पीठ ने घोषित किया था कि एससी ‘सजातीय समूह’ है और उप-जातियां बाँटना समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
गुरमिंदर सिंह ने तर्क दिया कि 2006 के क़ानून में उप-जातियां बाँटना ‘समानता का उल्लंघन नहीं बल्कि समानता के सहायता के रूप में है.’
उन्होंने कहा कि ‘पिछड़ों में भी अति पिछड़ों या कमज़ोर में भी बेहद कमज़ोर’ को प्राथमिकता देना किसी को बाहर करने की प्रक्रिया नहीं है.
तिब्बतियों से जुड़े सांस्कृतिक संगठनों का बजट घटाया गया
केंद्र सरकार ने तिब्बत हाउस, दलाई लामा के कल्चरल सेंटर और अन्य बौद्ध संस्थानों के बजट को घटा दिया है.
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ के मुताबिक़, संस्कृति मंत्रालय से इन संस्थाओं को मिलने वाले बजट को 50.19 करोड़ रुपये से घटाकर 20.19 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
अख़बार से सरकारी सूत्रों ने बताया कि उनकी मांग के अनुसार ही बजट में उनके लिए व्यवस्था की जाती है.
इस सूची में तिब्बत हाउस, सेंटर फ़ॉर बुद्धिस्ट कल्चरल स्टडीज़ तवांग मॉनेस्ट्री, नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ़ तिब्बतोलॉजी, लाइब्रेरी ऑफ़ तिब्बतन वर्क्स एंड आर्काइव्स, इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कन्फ़ेडरेशन और बॉम्बडिला का जीआरएल मॉनेस्टिक स्कूल शामिल है.
इनके अलावा इस सूची में वृंदावन रिसर्च इंस्टीट्यूट, एशियाटिक सोसाइटी (मुंबई), तंजावुर महाराजा सेरफ़ॉजी सरस्वती महल लाइब्रेरी, सेंट्रल लाइब्रेरी और कॉनेमरा पब्लिक लाइब्रेरी शामिल हैं.
बीते साल के बजट में इनके लिए 71.51 करोड़ रुपये का प्रावधान था जबकि इस साल 50.19 करोड़ रुपये का प्रावधान है.
यूपीए कार्यकाल की अर्थव्यवस्था पर आएगा श्वेत पत्र
केंद्र की मोदी सरकार यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान रही अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र लाने की तैयारी कर रही है.
अंग्रेजी अख़बार ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ लिखता है कि सरकार ने संसद का आगामी सत्र को एक दिन और अधिक बढ़ाने का फ़ैसला किया है.
31 जनवरी से शुरू हुआ आगामी सत्र 9 फ़रवरी को ख़त्म होने वाला था लेकिन अब ये शनिवार तक चलेगा.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अंतरिम बजट भाषण के दौरान कहा था कि केंद्र सरकार साल 2014 से पहले और बाद की अर्थव्यवस्था की तुलना करते हुए ‘श्वेत पत्र’ जारी करेगी.