विपुल रेगे। तमिलनाडु के सुपर स्टार विजय थलापति के क़दमों ने सियासी गलियारों का रुख कर लिया है। थलापति ने एक राजनीतिक पार्टी का गठन कर अपने प्रशंसकों को ज़ोर का झटका धीरे से दिया है। तमिलनाडु की राजनीति में एक और अभिनेता की एंट्री आगामी विधानसभा चुनावों के परिणामों पर क्या परिणाम डालेगी ये तो आने वाला समय बताएगा लेकिन अभी तो सभी राजनीतिक दलों ने थलापति को उनकी इस नई पारी के लिए बधाई दी है। राजनीति में उतरने से पहले थलापति अपने कॅरियर की आखिरी फिल्म पूरी करने में जुट गए हैं।
जीवन का अर्द्ध शतक लगाने के करीब पहुँच गए विजय थलापति का नए राजनीतिक मेकओवर के साथ सामने आना बहुत ही चौंकाने वाला है। विजय के प्रशंसक उनकी राजनीतिक एंट्री से कुछ ख़ास प्रसन्न नहीं हैं। प्रशंसक अभी विजय से और अधिक मनोरंजक फिल्मों की उम्मीद करते हैं। पांच दिन पूर्व विजय ने अपनी राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा की है। उनकी पार्टी का नाम ‘तमिझगा वेत्रि कषगम’ होगा। विजय ने इस अवसर पर कहा कि उनकी पार्टी का चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन हो गया है। विजय की ये पार्टी सन 2026 के विधानसभा चुनाव के रण में पहली ताल ठोंकेगी।
विजय ने आगामी लोकसभा चुनाव में लड़ने से मना करते हुए कहा कि वे 2024 चुनाव में किसी पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे। विजय के बयानों से लगता है कि राजनीति में उतरने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं और अपना गोल्डन कॅरियर भी त्यागने को तैयार हैं। अभिनय की पारी खेलने के बाद राजनीति में आना अब बहुत पुराना चलन हो गया है। दक्षिण भारतीय सुपरस्टार्स ने राजनीति में प्रवेश कर अपनी धाक जमाई लेकिन ऐसा बॉलीवुड में होता नहीं दिखा। यहाँ जो भी राजनीति में गया, उसे बुरे ही परिणाम मिले हैं। अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, किरण खेर, जया प्रदा, जया भादुड़ी, गुल पनाग, चिराग़ पासवान के उदाहरण सामने हैं। ये सक्रिय राजनीति में रहे लेकिन कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर सके। अमिताभ बच्चन का नाम तो बोफोर्स की दलाली तक में आ गया था।
दक्षिण भारत में अभिनेताओं के सक्रिय राजनीति में उतरने का मोमेंटम एम.जी.रामचंद्रन से शुरु हुआ। एम.जी.रामचंद्रन भारत में मुख्यमंत्री बनने वाले पहले अभिनेता थे। जब 1980 में वे मुख्यमंत्री बने तो सिर्फ चार माह में तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें उखाड़ फेंका था। इसके बाद उन्होंने वापसी की और अन्नाद्रमुक दल से 1987 तक मुख्यमंत्री बने रहे। वे एक अविजित मुख्यमंत्री सिद्ध हुए। उनके बाद उनकी कथित प्रेमिका और शिष्या जयललिता ने तमिलनाडु में एक लंबी राजनीतिक पारी खेली। वे चौदह वर्षों से अधिक समय तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी रहीं। तमिलनाडु की राजनीति में विजयकांत, कमल हासन, नेपोलियन, शिवाजी गणेशन, उदयनिधि स्टालिन के नाम प्रमुख हैं। इस समय उदयनिधि स्टालिन तमिलनाडु की राजनीति में एक प्रमुख नाम हैं। उदयनिधि एक अच्छे अभिनेता रहे हैं और उनकी बढ़िया फैन फालोइंग भी रही है।
तो इस हिसाब से ताज़ा-ताज़ा नेता बने विजय थलापति के लिए तमिलनाडु की राजनीति में अच्छे अवसर माने जा सकते हैं। थलापति ने अपनी मुठ्ठी शुरुआत से ही बंद कर रखी है। उन्होंने अपनी पार्टी की आइडियोलॉजी के बारे में कुछ खुलासा नहीं किया है। वे इतना ही कहते हैं कि जनसेवा के लिए राजनीति में आ रहे हैं। हालाँकि एक अभिनेता रहते हुए उनकी सरकारों से कभी नहीं बनी। विजय अपनी शाही लाइफ स्टाइल के लिए चर्चा में रहते हैं। सन 2005 में विजय ने 63 लाख रुपये की एक लक्ज़री कार अमेरिका से इम्पोर्ट की थी। उस समय तमिलनाडु में जयललिता की सरकार थी। विजय ने कार के टैक्स में राहत मांगी लेकिन उन्हें नहीं दी गई थी। इसके बाद कर माफ़ करने के लिए विजय मद्रास उच्च न्यायालय की शरण में चले गए थे।
विजय का पंगा तो आयकर विभाग से भी हुआ है। सन 2020 में आयकर विभाग विजय के आवास और अन्य ठिकानों पर छापेमारी कर चुका है। विजय थलापति की पार्टी जब कार्य शुरु करेगी तो शायद ही सत्तारुढ़ दल भाजपा से गठबंधन करेगी। इसका कारण है विजय का ईसाई होना। विजय के पिता एस.ए.चंद्रशेखर कैथोलिक ईसाई थे। विजय की माँ शोभा एक हिन्दू थीं। विजय पर अपनी फिल्मों में क्रिश्चियनिटी को प्रमोट करने का आरोप भी लगता रहा है। ऐसे में उनकी पार्टी की विचारधारा दक्षिणपंथी पार्टियों की विचारधारा से मेल खाएगी, इसमें संदेह है। तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में भाजपा का दांव युवा नेता के.अन्नामलाई पर लगा हुआ है। ये तो निश्चित है कि विजय थलापति की पार्टी ईसाई समुदाय को लुभाने में तो सफल रहेगी, इसके अलावा विजय के लाखों प्रशंसकों में से बहुत से इससे जुड़ने का विचार करेंगे। इस हिसाब से तमिलनाडु की राजनीति को एक और सुपरस्टार मिलने जा रहा है।