अर्चना कुमारी दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले कई वर्षों से अलग रह रहे एक बुजुर्ग दंपति की शादी को खत्म करने के कुटुंब अदालत के फैसले को बरकरार रखा और क्रूरता के आधार पर पति को दिए गए तलाक के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अपने विवादों को शांत करने के बजाय महिला ने निराधार आरोप लगाकर तलाक की कार्यवाही जारी रखने का विकल्प चुना है।
पुरुष ने दावा किया कि वह 1980 से अपनी पत्नी से अलग रह रहा है तो वहीं महिला का कहना है कि वे जनवरी 2013 से अलग रह रहे हैं। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्ण ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘दोनों पक्षकारों की उम्र 70 साल से अधिक है और जीवन की इस उम्र में भी, अपीलकर्ता (पत्नी) ने अपने विवादों को शांत करने के बजाय निराधार आरोप लगाकर तलाक की कार्यवाही जारी रखने का विकल्प चुना है।’
पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय में यह स्पष्ट रूप से साफ है कि अपीलकर्ता को प्रतिवादी (पति) में कोई भी अच्छाई नजर नहीं आती है और उसके और उसकी बहन के खिलाफ कई मुकदमे चलाकर उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके पुनर्मिलन की कोई गुंजाइश नहीं है। इसके अलावा साल 2013 से अलग रहने के बावजूद उन्होंने कभी विवादों में सुलह करने की कोशिश नहीं की।’’
उच्च न्यायालय ने पुरुष के पक्ष में तलाक का आदेश देने के कुटुंब अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की अपील खारिज कर दी।
दंपति भारत के प्रवासी नागरिक (ओसीआई) हैं और उनकी 1973 में शादी हुई थी तथा दो बच्चे भी हैं। शादी के करीब 41 साल बाद पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा जिसे 2018 में कुटुंब अदालत ने मंजूर कर लिया।