विपुल रेगे। हमारी धार्मिक पुस्तकों में उत्तराखंड को लेकर जो भविष्यवाणी की गई है, वह आज देशभर में चर्चा का विषय बन गई है। जोशीमठ का दरकना हमारे पौराणिक इतिहास का एक स्तंभ ढहने जैसा आघात है। भारत के समृद्ध पहाड़ों को लालच खा चुका है। धर्म क्षेत्रों को व्यावसायिक बना देने के हठ ने बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र को संकट में डाल दिया है। एक बड़ी प्राकृतिक आपदा भारत के द्वार पर दस्तक दे रही है। जोशीमठ और बद्रीनाथ की संभावित बर्बादी के संकेत प्रकृति ने पिछले पांच माह से ही देना शुरु कर दिया था।
जोशीमठ के निवासियों ने पलायन शुरु कर दिया है। अपने पैतृक घर को छोड़कर जाना बड़ा ही पीड़ादायक होता है। वास्तव में ये समस्या आज से शुरु नहीं हुई है। जोशीमठ ग्लेशियर से बह कर आई भुरभुरी मिट्टी के ऊपर बना हुआ है। सन 1946 में प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक औगुस्तों गैंसर ने बता दिया था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ है।
तब से ही आशंका जता दी गई थी कि अत्याधिक निर्माण और विकास कार्य जोशीमठ के लिए ख़तरा बन सकते हैं। इस मामले पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल “निशंक” का बयान सबको सुनना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उत्तराखंड में बड़ी परियोजनाओं की आवश्यकता नहीं है। ये एक संवेदनशील प्रदेश है। यहां के पहाड़ बहुत संवेदनशील हैं और बड़ी परियोजनाओं से पहाड़ों में तबाही आती है।
दरार सिर्फ जोशीमठ के 600 घरों में नहीं आई है। आज से चार माह पूर्व बद्रीनाथ धाम और आसपास के क्षेत्र के मकानों में दरार दिखाई दी थी। बद्रीनाथ धाम के सिंह द्वार में बड़ी दरार बन गई थी पास के अस्पताल में भी यही स्थिति बनी थी। उस समय सरकार ने तुरंत जाँच करने और दरारे पड़ने का कारण बताने के आदेश दे दिए थे। ये समस्या प्रकाश में उस समय आई, जब जोशीमठ के नागरिक मजबूर होकर सड़क पर उतर पड़े।
जोशीमठ के नागरिकों का आरोप है कि नेशनल थर्मल पॉवर प्लांट (एनटीपीसी) द्वारा खोदी गई सुरंग के कारण जमीन धंस रही है। ये संभव है कि जोशीमठ की दरकन में एनटीपीसी भी कारण बना हो लेकिन गलती तो जोशीमठ के नागरिकों की भी मानी जाएगी। वे भी लगातार निर्माण कार्य करते रहे हैं। वहां लगातार मकान और होटल बनते रहे। मिलीभगत के चलते ऊंचाई पर मकान बनाने की अनुमति दी जाती रही।
जोशीमठ और बदरीनाथ सरकारों और जनता के कारण खतरे में पड़ गया है। क्या हमारे पूर्वज ये जानते थे कि एक दिन ऐसा होने जा रहा है। इसलिए ही उन्होंने विनाशकारी भविष्यवाणी कर दी थी। भविष्यवाणी के अनुसार जोशीमठ के नृसिंह मंदिर की मूर्ति की एक भुजा लगातार क्षीण हो रही है। जब ये भुजा टूटकर गिरेगी तो बद्रीनाथ और केदारनाथ लुप्त हो जाएंगे।
यहाँ के जय और विजय पहाड़ों के भी टूटने की बात भविष्यवाणी में कही गई है। और अब तो भविष्य बद्री व भविष्य केदार ने भी आकार लेना शुरु कर दिया है। रविवार को प्रधानमंत्री ने जोशीमठ को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से भी चर्चा की है। चार माह से चले आ रहे संकट ने अब भयावह रुप लेना शुरु कर दिया है।
इसरो ने यहाँ का सेटेलाइट सर्वे शुरु कर दिया है। हालाँकि अब ये तय हो चुका है कि आपदाग्रस्त घोषित हो चुका जोशीमठ अब आबाद नहीं हो सकेगा। यहाँ के मकान और सड़के धीरे-धीरे अलकनंदा की ओर झुकते जा रहे हैं। आशंका है कि पूरा पहाड़ ही अलकनंदा के भीषण प्रवाह में समा सकता है। अब सरकार को इस समस्या को सबसे उपर रखकर कार्य शुरु कर देना चाहिए। जोशीमठ में स्थिति हर घंटे तेज़ी से बदलती जा रही है। आदियोगी महादेव सब पर कृपा करें।