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देश-विदेश

संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकतर वरिष्ठ पदों पर हैं अमरीकी और यूरोपीय लोग, विकासशील देशों के नागरिक हैं अंडर्रिप्रेज़ेंटेड

Rati Agnihotri
Last updated: 2020/10/19 at 10:13 PM
By Rati Agnihotri 66 Views 5 Min Read
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5 Min Read
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संयुक्त राष्ट्र संघ समानता के अधिकारों और मानवधिकारों की लड़ाई के क्षेत्र में पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है. जब विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों या गरीब देशों के हितों को ताक पर रखा जाता है,  तो बे भी संयुक्र राष्ट्र संघ से ही न्याय की गुहार लगाते हैं. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि खुद संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी रिक्र्यूटमेंट पांलिसी यानि लोगों को नौकरी देने की पांलिसी में लोगों के बीच भेदभाव बरतता है. यानि समान अधिकारों का चैम्पियन माने जाना वाला यह विश्व संगठ्न वरिष्ठ अधिकारियों के पद पर अधिकतर यूरोप या अमरीका के लोगों को ही बिठाता है.

फांरेन पांलिसी की न्यूज़ साइट पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र संघ में विकासशील देशों के लोगों को जो भी नौकरियां उपलब्ध हैं, वे अधिकतर कांफ्लिक्ट ज़ोंस यानि युद्ध के क्षेत्रों में ही उपलब्ध हैं. संयुक्त राष्ट्र के ऊंचे , प्रतिष्ठित पदों पर जो लोग काम करते हैं, वे अधिकतर विकसित देशो के ही होते हैं. यानि जहां कठिनाई वाली जगहों में अपनी जान जोखिम में डाल कम वेतन में काम करने की बात आती है, वहां तो संयुक्त राष्ट्र संघ को विकासशील देशों के नागरिक उपयुक्त लगते हैं और जहां बात ऐसी नौकरियों की आती हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ की क्रीम पोज़ीशंस हैं यानि सबसे अच्छे वेतन वाली और आराम की ज़िंदगी वाली नौकरियां हैं, ऐसे पदों पर ज़्यादातर सिर्फ अमरीकी और यूरोपीयन लोग ही आसीन दिखते हैं.

फांरेन पांलिसी न्यूज़ साइट के लेख के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र संघ की अप्रैल 2019 की अपनी रिपोर्ट के अनुसार , जो कि उनके अंतर्गत काम कर रहे लोगों की डेमोग्रैफिक्स पर आधारित है, संयुक्त राष्ट्र में सबसे बड़ी संख्या में अमरीकी काम करते हैं. इसके अलावा यूके, फ्रांस, इटली और स्पेन सरीखे यूरोपीय देश इस आर्गेनाज़ेशन की नौकरियो में ओवर रेप्रेज़ेंटेड हैं.

यहां तक कि न्यू यार्क में, जो कि संयुत राष्ट्र संघ का हेड्क्वार्टर्ज़ है, वहां के 71 प्रतिशत पदों पर पश्चिमी देशो के कर्मचारी आसीन हैं. पांलिसी और स्ट्रैटिजिक कम्यूनिकेशंस जैसे डिपार्ट्मेंट्स में तो कमसकम 90 प्रतिशत कर्मचारी पश्चिमी देशों के ही हैं.

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यानि बात स्पष्ट है. संयुक्त राष्ट्र संह की कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का अंतर है. वह कहने को तो समानता का राग अलापता है लेकिन जब बात डिसीज़न मेकिंग पांवर की आती है तो वह इसकी बागडोर पश्चिमी देशों के हाथ ही सौंपना चाहता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की जेनेरल असेम्बली के वर्चुयल सेशन में हाल ही में वक्तव्य दिया था जिसमे उन्होने बड़ी ही शालीनता लेकिन दृढ्ता और साफगोई के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ की आलोचना की थी. उन्होने स्पष्ट तौर पर कहा था कि एक तरफ तो भारत एक ऐसा देश है जो यू एन पीस्कीपिंग आपरेशंस में सबसे ज़्यादा योगदान देता है. वह एक ऐसा देश है जिसमे अंतराष्ट्रीय सोलर अलायेंस जैसे इनोवेटिव संगठनों को लेकर पहल की है. और दूसरी तरफ संयुक्त राष्टृ संघ आज भी उसे अपनी डिसीज़न मेकिंग बांडीज़ से दूर रखता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य में संयुक्त राष्ट्र के बारे में जो कहा था, उसका संबंध सुरक्षा परिषद मे भारत की स्थाई सद्स्यता से था. और यहां हम बात कर रहे हैं संयुक्त राष्ट्र संघ में विकासशील देशों के अंडर्रिप्रेज़ेंटेशन की, विशेषकर वरिष्ठ पोज़ीशंस में. यदि गौर से देखा जाये तो दोनों बातों में कोई खास अंतर नही है. संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था को विश्व युद्ध के बाद विकसित देशों ने बनाया था. लेकिन अब विश्व के तेज़ी से बदलते भू राजनीतिक समीकरणों के चलते इन देशों को यह समझने की ज़रूरत है कि संयुक्त राष्ट्र कोई विकसित देशों की बपौती नहीं है. यदि इस संगठन को अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखनी है तो बदलती दुनिया के साथ इसे भी बदलना होगा और विकासशील व गरीब देशों  को भी उतनी ही पावर्ज़ देनी होंगी.

The U.N. Has a Diversity Problem

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TAGGED: India Security Council, PM Modi UN General Assembly speech, PM Modi UN speech, UN developing countries, UN reform, United Nations, United Nations General Assembly, United Nations India, United Nations India membership, United Nations jobs, united nations organization
Rati Agnihotri October 19, 2020
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Rati Agnihotri
Posted by Rati Agnihotri
रति अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में कवितायें लिखती हैं. इनका अंग्रेज़ी का पहला कविता संग्रह ‘ द सनसेट सोनाटा’साहित्य अकादमी से प्रकाशित हुआ है. रति की हिंदी कवितायें पाखी, संवदिया, परिकथा, रेतपथ, युद्धरत आम आदमी, हमारा भारत आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. रति दिल्ली में ‘ मूनवीवर्स – चांद के जुलाहे’ के नाम से एक पोएट्री ग्रुप चलाती हैं जहां कविता को संगीत, चित्रकला आदि विभिन्न विधाओं से जोड़ा जाता है और कविता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार भी होता है. रति चीन के शिनुआ न्यूज़ एजेंसी के नई दिल्ली ब्यूरो में बतौर टी वी न्यूज़ रिपोर्टर कार्य कर चुकी हैं. रति आजकल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं. रति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कांलेज से अंग्रेज़ी विशेष में बी ए आनर्स किया है और इंग्लैंड के लीड्स विश्वविद्यालय से अंतराष्ट्रीय पत्रकारिता में एम ए किया है.
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