मुंबई कांग्रेस मुख्यालय के भीतर कांग्रेस प्रवक्ता राघवेंद्र शुक्ला के स्टिंग की समीक्षा की जानी चाहिए। इस आँख खोल देने वाले स्टिंग की टाइमिंग और टीआरपी से संबंध में नेताओं के दिए बयानों पर गौर करने की बहुत अधिक आवश्यकता है। कांग्रेस और एनसीपी इसकी समीक्षा भले न करे लेकिन भाजपा के शीर्ष नेताओं और केंद्र सरकार को इस स्टिंग और इसके आसपास घटे घटनाक्रम को ध्यान से देखने और जाँच करने की ज़रुरत है।
सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का मौन टीआरपी के सन्दर्भ में क्यों टूटा? इस मामले में केंद्र सरकार के इन कैबिनेट मंत्री की टाइमिंग पर भी गौर करने की आवश्यकता है। इस सारे खेल को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे उस तारीख तक जाना होगा, जब पिछले एक वर्ष से सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जा रहा रिपब्लिक आजतक को पछाड़कर एक नंबर के स्थान पर आ बैठा।
ये तारीख थी 20 अगस्त, जिस दिन बार्क की रेटिंग में रिपब्लिक ने आजतक को पछाड़ दिया था। अब गौर कीजिये कि इस दिन तक केंद्र के कैबिनेट मंत्री बयानबाज़ी के मामले में कोमा में ही थे। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण की आंच से जल रही मुंबई को देखकर भी वे अनदेखा कर रहे थे।
सुशांत और दिशा की संदिग्ध हत्या, रिया चक्रवर्ती के मीडिया कवरेज के दौरान पत्रकारों से बदसलूकी, रिपब्लिक के पत्रकार को जेल भेज दिए जाने तक जावड़ेकर चुप थे। रिपब्लिक के पत्रकार अनुज की बेजा गिरफ्तारी पर देश के सूचना व प्रसारण मंत्रालय की ओर से कोई बयान न आना कतई हैरान कर देने वाला था।
कंगना रनौत का कार्यालय तोड़ दिया गया। शिवसेना के संजय राउत ने उन्हें हरामखोर कह दिया लेकिन प्रकाश जावड़ेकर का मौन नहीं टूटा। फिल्मों और न्यूज़ चैनल के विषय में बयान देने के लिए वे ही अधिकृत हैं, ये सारा देश जानता है। 20 अगस्त के बाद स्वाभाविक था कि रिपब्लिक भारत अपनी नबंर वन की पोजीशन का प्रचार करता और उसने किया भी।
ऐसा करने के लिए वह संवैधानिक रुप से स्वतंत्र था। जिस तरह से आजतक दस साल से अपना प्रचार ये कहकर करता था कि ‘कोई नहीं दूर-दूर तक‘, ऐसा ही रिपब्लिक ने किया तो उसमे क्या गलत था। एक माह तक रिपब्लिक के इस प्रचार के बाद देश के सूचना व प्रसारण मंत्री का मौन टूटता है और उनके भाषण का आशय यही होता है कि टीआरपी को प्रचारित नहीं करना चाहिए।
फिर अब तक आजतक नामक चैनल जो कर रहा था, वह क्या था? आजतक के प्रचार पर जावड़ेकर जी को समस्या क्यों नहीं हुई? 7 अक्टूबर को वे अपना टीआरपी वाला बयान देते हैं और उस बयान को सारे न्यूज़ चैनल जोरशोर से उठाते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता राघवेंद्र शुक्ला के दावे पर यकीन किया जाए तो मालूम होता है कि रिपब्लिक को घेरने की साजिश सितंबर के बाद ही शुरु हो चुकी थी।
राघवेंद्र ने स्पष्ट कहा है कि टीआरपी की फेक न्यूज़ इसी साजिश का हिस्सा थी। फिर जावड़ेकर जी के बयान को इस साजिश का हिस्सा क्यों नहीं माना जाए। उनके बयानों की टाइमिंग को झुठलाया नहीं जा सकता। इसके ठीक बाद जावड़ेकर जी ने टीआरपी को लेकर कई बयान दिए और आने वाली घोषणा का माहौल बनाना शुरु कर दिया।
इतने बयानों को देने के पीछे की मंशा यही थी कि बार्क की टीआरपी रेटिंग को स्थगित करने के लिए कोई मजबूत आधार चाहिए था। ये एकदम से नहीं किया जा सकता था, इसलिए प्रकाश जावड़ेकर ने मीडिया में बयान देना शुरु दिया। ये बात ध्यान देने योग्य है कि मंत्री जी के पास बार्क की रेटिंग स्थगित करने का कोई नैतिक आधार था ही नहीं।
यदि रिपब्लिक उनके विरुद्ध न्यायालय चला जाए तो मंत्री जी कोर्ट में कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं रहेंगे। रिपब्लिक भारत के खिलाफ जिस ढंग से मुंबई में आपातकाल जैसी कार्रवाई की जा रही है, उस पर तो प्रकाश जावड़ेकर को तीखी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
उनका मौन बता रहा है कि वे न केवल रिपब्लिक के खात्मे को मौन समर्थन दे रहे हैं बल्कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ एक निष्ठावान न्यूज़ चैनल को ख़त्म करने की साजिश में भी बराबर के हिस्सेदार हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तत्काल प्रभाव से उन्हें पद से हटाकर उनके खिलाफ जाँच शुरु करवा देनी चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो इसका नुकसान पार्टी को भविष्य में उठाना पड़ेगा, क्योंकि जावड़ेकर सरकार और पार्टी के प्रति निष्ठावान नहीं दिखाई दे रहे हैं।
सही विश्लेशण किया आपन। मंत्री जी किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं, लगता है ।