अर्चना कुमारी। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 भीमा कोरेगांव हिंसा मामले को लेकर दोनों आरोपियों गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को पासपोर्ट जमा कराने और महाराष्ट्र नहीं छोड़ने का निर्देश दिया। जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने फैसले में कहा कि सामान्य परिस्थिति में जमानत देने के कारकों पर चर्चा की गई।
अपीलकर्ताओं के मामले की तुलना करते हुए और हिरासत में लिए जाने के लगभग 5 साल बीत जाने के मद्देनजर हमारी राय है कि यह जमानत की उचित मांग का मामला है।
आरोप गंभीर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जमानत नहीं दी जा सकती। जमानत देने के बारे में अपनी राय बनाते समय, हमने नोट किया कि उन्हें पहले 1967 यूएपीए अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। इसलिए हम जमानत पर उचित शर्तें लगाने का प्रस्ताव करते हैं।
हम हाईकोर्ट के विवादित आदेश को रद्द करते हैं और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करते हैं।जमानत के लिए शर्तें इस प्रकार हैं, महाराष्ट्र राज्य नहीं छोड़ेंगे, दोनों अपीलकर्ता पासपोर्ट सरेंडर करें,दोनों को एक-एक मोबाइल का उपयोग करना है।एनआईए अधिकारी को पते के बारे में सूचित करें।
मोबाइल नंबर आदि को एनआईए के साथ साझा किया जाना चाहिए और फोन को चौबीसों घंटे चार्ज किया जाना चाहिए और लोकेशन चालू होनी चाहिए और ट्रैकिंग के लिए एनआईए अधिकारी के साथ समन्वयित होना चाहिए।
यदि शर्तों का कोई उल्लंघन होता है, तो अभियोजन इस अदालत को संदर्भित किए बिना जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है।यदि गवाह को धमकाने का कोई प्रयास किया गया तो अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने के लिए आगे बढ़ सकता है।