भगवान प्रभू श्रीराम चंद्र जी के वंशज , अयोध्या राम मंदिर के निर्माणकर्ता ,सुर्यवंशी कुलभूषण राष्ट्रकूट वंशी महाराजाधिराज जयचंद राठौड़ गहरवार जी
ऐसे प्रतापी महाराजाधिराज जिनको कई उपाधियो से नवाजा गया है कान्यकुब्जेश्वर धर्मपरायण देशभक्त महाराजा जयचंद जी को यौवनो के नाशक , दलपंगुल व नारायण का अवतार बताया गया है ! कान्यकुब्जेश्वर धर्मपरायण देशभक्त महाराजा जय चन्द्र जी का जन्म सन् 1114 ईस्वी मे महाशिवरात्रि के दिन हुआ था !! इसी दिन इनके दादा महाराजा गोविन्द चंद्र गहरवार जी ने दशार्ण देश ( पूर्वी मालवा) पर विजय प्राप्त किया था !! इसका उल्लेख करते हुए नयचन्द्र ने अपनी पुस्तक ‘रम्भामंजरी’ में लिखा है-
पितामहेन तज्जन्मदिने दशार्णदेशेसु प्राप्तं प्रबलम् !!
यवन सैन्य जितम् अतएव तन्नाम जैत्रचन्द्रः !!
अर्थात् इनके जन्म के दिन पितामह ने युद्ध में यवन-सेना ( बाहरी आक्रमणकारी म्लेच्छो ) पर विजय प्राप्त किया अतः इनका नाम जैत्रचन्द्र पड़ा। तत्कालीन संस्कृत-साहित्य में महाराज जयचंद के अनेक नाम मिलते हैं। मेरुतुंग ने प्रबन्धचिन्तामणि में ‘जयचन्द्र’, राजशेखर सूरि ने प्रबन्धकोश में ‘जयन्तचन्द्र’, नयचन्द्र ने रम्भामंजरी में ‘जैत्रचन्द्र’ कहा है !!
जबकि लोक में ‘जयचन्द’ कहा जाता है। ‘रम्भामंजरी’ के अनुसार महाराज जयचन्द्र की माता का नाम ‘चन्द्रलेखा’ था, जो अनंगपाल तोमर की ज्येष्ठ पुत्री थीं ! किन्तु ‘पृथ्वीराज रासो’ के छन्द संख्या 681-682 के अनुसार उनका नाम सुन्दरी देवी था। ‘भविष्यपुराण’ में महाराज जयचन्द्र की माता का नाम चन्द्रकान्ति बताया गया है।
आषाढ़ शुक्ल दशमी संवत् 1224 तदनुसार रविवार 16 जून, 1168 को पिता महाराज विजयचन्द्र ने जयचन्द्र को युवराज के पद पर अभिषिक्त किया। आषाढ़ शुक्ल षष्ठी संवत् 1226 तदनुसार रविवार 21 जून, 1170 ई. को महाराज जयचन्द्र का राज्याभिषेक हुआ था। राज्याभिषेक के पश्चात् व पुर्व भी महाराज जयचन्द ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त किया।
‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार महाराज जयचन्द ने सिन्धु नदी पर मुसलमानों (सुल्तान, गौर) से ऐसा घोर संग्राम किया कि रक्त के प्रवाह से नदी का नील जल एकदम ऐसा लाल हुआ मानों अमावस्या की रात्रि में ऊषा का अरुणोदय हो गया हो। महाकवि विद्यापति ने ‘पुरुष परीक्षा’ में लिखा है कि यवनेश्वर सहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी को जयचन्द्र जी ने कई बार रण में परास्त किया। और युध्द क्षेत्र से भागकर मोहम्मद गौरी ने अपना जान बचाया था !! ‘रम्भामञ्जरी’ में भी कहा गया है कि महाराज जयचन्द्र ने यवनों ( बाहरी आक्रमणकारी म्लेच्छ तुर्को मुगलो )का नाश किया।
बल्लभदेव कृत ‘सुभाषितावली’ में वर्णित है कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी द्वारा उत्तर-पूर्व के राजाओं का पददलित होना सुनकर महाराज जयचन्द्र ने उसे प्रताड़ित करने हेतु अपने दूत के द्वारा निम्नलिखित पद लिखकर भेजा-
स्वच्छन्दं सैन्य संघेन चरन्त मुक्तो भयं।
शहाबुद्दीन भूमीन्द्रं प्राहिणोदिति लेखकम्।।
कथं न हि विशंकसेन्यज कुरग लोलक्रमं।
परिक्रमितु मीहसे विरमनैव शून्यं वनम्।।
स्थितोत्र गजयूथनाथ मथनोच्छलच्छ्रोणितम्।
पिपासुररि मर्दनः सच सुखेन पञ्चाननः।।
अर्थात् स्वतन्त्र और महती सेना के साथ निर्भय भारतवर्ष में शहाबुद्दीन द्वारा राजाओं का पददलित होना सुनकर महाराज जयचन्द्र ने यह पद्य अपने दूतों से भेजा; ऐ तुच्छ मृगशावक, तू अपनी चंचलता से इस महावन रूपी भारतवर्ष में उछल-कूद मचाये हुए है !!
तेरी समझ में यह वन शून्य है अथवा तुझ-सा पराक्रमी अन्य जन्तु इस महावन में नहीं है !
यह केवल तुझे धोखा और भ्रम है। ठहर ठहर आगे मत बढ़, निःशंकता छोड़ देख यह आगे मृगराज गजराजों के रक्त का पिपासु बैठा है !! यह महा-अरिमर्दक है, तेरे ऐसों को मारते इसे कुछ भी श्रम प्रतीत नहीं होता !! वह इस समय यहाँ सुख से विश्राम ले रहा है। महाराज जयचन्द्र के सम्बन्ध में 1186 ई.(1243 वि.सं.) में लिखे गये फ़ैज़ाबाद ताम्र-दानपत्र में वर्णित है-
अद्भुत विक्रमादय जयच्चन्द्राभिधानः पतिर्
भूपानामवतीर्ण एष भुवनोद्धाराय नारायणः।
धीमावमपास्य विग्रह रुचिं धिक्कृत्य शान्ताशया
सेवन्ते यमुदग्र बन्धन भयध्वंसार्थिनः पार्थिकाः।।
छेन्मूच्छीमतुच्छां न यदि केवल येत् कूर्म पृष्टामिधात
त्यावृत्तः श्रमार्तो नमदखिल फणश्वा वसात्या सहस्रम्।
उद्योगे यस्य धावद्धरणिधरधुनी निर्झरस्फारधार-
श्याद्दानन्द् विपाली वहल भरगलद्वैर्य मुद्रः फणीन्द्रः।।
यहाँ अभिलेखकार ने पहले श्लोक में बताया है कि महाराज विजयचन्द्र (विजयपाल = देवपाल) के पुत्र महाराज जयचन्द्र हुए, जो अद्भुत वीर थे। राजाओं के स्वामी महाराज जयचन्द्र साक्षात् नारायण के अवतार थे ! जिन्होंने पृथ्वी के सुख हेतु जन्म लिया था। अन्य राजागण उनकी स्तुति करते थे।
दूसरे श्लोक में कहा गया है कि उनकी हाथियों की सेना के भार से शेषनाग दब जाते थे और मूर्छित होने की अवस्था को प्राप्त होते थे।
उत्तर भारत में महाराज जयचन्द्र का विशाल साम्राज्य था। उन्होंने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपने राज्य की सीमा का उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक तथा पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य तक विस्तार किया था। मुस्लिम इतिहासकार इब्न असीर ने अपने इतिहास-ग्रन्थ ‘कामिल उत्तवारीख़’ में लिखता है कि महाराज जयचन्द्र के समय कन्नौज राज्य की लम्बाई उत्तर में चीन की सीमा से दक्षिण में मालवा प्रदेश तक और चौड़ाई समुद्र तट से दस मैजल लाहौर तक विस्तृत थी।
महाराजा जय चन्द्र जी उस समय भारत वर्ष के सबसे बडे राजा थे ! ऐसा मुस्लिम ईतिहासकारो ने स्वयं लिखा है !! महाराजा जयचन्द के राज्य का विस्तार 5600 वर्ग मील था !! उस सदी मे पूरे भारत वर्ष मे सबसे बडी सेना महाराजा जय चन्द्र जी का ही था !!
फरिश्ता के अनुसार महाराजा जय चन्द्र जी के पास सबसे बडी विशाल सेना थी !!
कामिलउत्तवारिख ने वर्णन किया है कि महाराजा जय चन्द्र जी महाराजा जय चन्द्र जी की सेना मे 700 हाथिया थी !!
ताजल-म-आथीर के अनुसार महाराजा जय चन्द्र जी की सेना बालुका कणों के अनुसार असंख्य थी !!
सुर्यप्रकाश लिखते है – महाराजा जय चन्द्र जी की सेना मे 80 हजार कवचधारी सैनिक , 3 लाख पैदल सेना , 2 लाख धनुर्धारी , 30 हजार अश्वारोही और बहुसंख्यक हाथी थी !!
इसके अलावा स्वयं पृथ्वी राज रासो के लेखक कवि चंदरवरदाई ने ही स्वयं महाराजा जय चन्द्र जी की #विशाल सेना का वर्णन किया !!
स्वयं पृथ्वी राज रासो मे चंदरवरदाई ने महाराजा जय चन्द्र जी को ” दल पंगुल” कहा है !! अर्थात जिसकी सेनाये हमेशा विचरण करती रहती थी !!
कुछ ईतिहासकारो ने तो हजारो हाथीओ और लाखो घोडो का भी वर्णन किया है इतनी विशाल सेना होने के कारण ही महाराजा जयचन्द जी को ” दलपंगुल” की उपाधि मिली थी !!
राज शेखर सूरी ने अपने प्रबंधकोश मे कहा है कि काशीराज जय चंद्र विजेता थे ,और गंगा यमुना दोआब तो उनका विशेष रूप से अधिकृत प्रदेश था !
नयनचंद्र ने रंभामंजरी मे महाराजा जय चन्द्र जी को यौवनो का नाशक और विशाल सेना का संचालक लिखा है !!
उन्होने लिखा कि महाराजा जयचंद युध्दप्रिय होने के कारण अपनी सैन्य शक्ति ऐसी बढाई की वह #_अद्वितीय हो गई !! जिस कारण से महाराजा जय चन्द्र जी को “दल पंगुल” उपाधि से जाना जाने लगा !!
विद्यापति जी अपने “पुरूष -परिक्षा” लिखते है कि महाराजा जय चन्द्र जी उसी मोहम्मद गौरी को कई बार हराया थे !!
रम्भामंजरी मे भी महाराजा जय चन्द्र जी के विशाल सेना और विशाल राज्य का उल्लेख है !!
इन सभी प्रमाणो के आधार पर कोई भी सत्य से अवगत हो सकता है कि बिना छल से महाराजा जय चन्द्र जी को हराना मुश्किल है !!
नयनचंद्रकृत “रंभामंजरी ” मे जयचंद्र महाराज के भुजाओं की ताकत की तुलना चंदेलो के राजा ” मदन वर्मा ” राज्यश्री रूपी हाथी को बांधने के लिये खंभ से कि गयी है !!
महाराज मदन वर्मा ( 1129 – 1163 ) व महाराजा जयचंद्र का शासन काल ( 1170-1194 ) रहा जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह।उपलब्धि महाराजा जयचन्द जी ने अपने युवराज काल मे ही हासिल किया था !!
समकालीन साहित्य से पता चलता है कि चंदेलो के राजा परमाल चंदेल और महाराजा जयचंद्र जी मे मैत्रीपूर्ण संबंध रहे है !!
आल्हा ऊदल जैसे महान योद्धा भी महाराजा जयचंद्र जी के सेनापति थे !!
संवत् १२४१ (सन् 1184 ) में अयोध्या में श्रीराम मंदिर का पुनर्निर्माण करवाये थे वे सोने की परत चढवाये थे !!
80 वर्ष की आयु में महाराजा जयचंद्र जी संवत् १२५० (सन् 1194) में मोहम्मद गौरी से रणभूमि में युद्ध करते हुते वीरगति को प्राप्त हुते थे !!
महाराजा जयचंद्र जी के वंशजों के कुछ ऐतिहासिक कार्य
1- महाराजा जयचंद्र जी के दादा गोविन्दचंद्र जी ने अयोवृंदा राम मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था , और उन्ही के बनाये शिलालेखो ( श्री विष्णु हरि शिलालेख) के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने #अयोध्यामन्दिर हिन्दुओ के पक्ष में फैसला दिया था ।
- 1544 में गिरी सुमेल युद्ध मेंउसी के वंसज राव मालदेव से बुरी तरह हारने के बाद मुगल शासक #शेरशाह_सूरी ने कहा था की मुठ्ठी भर बाजरे की खातिर में आज हिंदुस्तान की सल्तनत खो बैठता ।
- जयचंद के ही वंसज जयमल मेड़तिया द्वारा अकबर
की मेवाड़ पर चढ़ाई में पांव में गोली लगने के बाद भी अपने भतीजे के कन्धों पर बैठकर अकबर की
विशाल सेना को तहस नहस करने के बाद जब वीरगति को प्राप्त हुए
तो अकबर ने चैन की साँस लेते हुए कहा था की मैंने हिन्दुओ के चार हाथो वाले #देवताविष्णु के बारे में सुना तो था आज के युद्ध में लगा की साक्षात् विष्णु ही मेरी सेना को तहस नहस कर रहा है ।
इसके पश्चात अकबर ने आगरा के किले के द्वार पर उन दोनों वीरो की संगमरमर की मूर्ति बना कर लगाई थी . - जयचंद के ही वंसज जसवंत सिंह के रहते औरंगजेब कोई भी हिन्दू मन्दिर को तोड़ने की हिमाकत नही कर स्का था
क्योंकि जसवंत सिंह ने कहा था की औरंगजेब अगर #एकमन्दिर तुड़वायेगा तो में #दोमस्जिद तहस नहस करूँगा ,
जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद ओरंगजेब का कथन था की आज कुफ़्र (धर्म विरोध) का दरवाजा टूट गया । - महाराजा जयचंद के ही वंसज #वीरदुर्गा_दास ने जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों को तोड़ने में अपना जीवन बिता दिया
उन्होंने औरंगजेब के पोते पोतियों को #बंधक बना कर रखा था
हालाँकि उनका लालन पालन इस्लामी परम्परानुसार ही करवाया । - महाराजा जयचंद के ही वंसज बिकानेर महाराजा ने
औरंगजेब की छल से सभी राजाओ की मीटिंग बुलाकर उन्हें कैद करने और फिर जबरदस्ती इस्लाम ग्रहण करवाने के सडयंत्र को भांप कर उसके सैनिको को मारकर विफल किया था
जिसके पश्चात उन्हें #जांगलधर बादशाह की पदवी मिली थी । - जयचंद के वंसज #_पाबूजी ने विधर्मियो द्वरा गायो के अपहरण की सुचना पर चोथे फेरे के बिच में ही विवाह बेदी छोड़कर धर्म निभाना उचित समझा और गौ रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
- जयचंद के ही वंसज #गोपाल_सिंह खरवा ने अंतिम सांसो तक आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो का डटकर मुकाबला किया था ।
- इसी जयचंद के वंसज आऊआ ठाकुर खुशाल सिंह जी ने अपनी छोटी सी सेना से अंग्रेजो को धूल चटाई थी और अंग्रेज अफसर का सर काटकर गढ़ के दरवाजे पर टांगा था ।इनकी याद में आज भी आऊआ में मेला लगता है !
10- इन्ही के वंशज प्रतापी राजा प्रताप रुद्र देव बुंदेला जी ने ओरक्षा नगर को बसाया था !
11- इनके ही वंशज ओरक्षा नरेश महाराजाधिराज महेंद्र सवाई श्री सर प्रताप सिंह बहादुर वह उनकी धर्मपत्नी वृषभानु कुंवरी जू देवी ने सन् 1885 ईस्वी में अयोध्या में कनक भवन का निर्माण करवाया था , जो रामोपासना का सबसे महत्वपूर्ण ,मनोहारी तथा श्रध्दास्पष्ट मंदिर है जहां भगवान प्रभू श्रीराम चंद्र जी आराम करते है!!
12- अयोध्या में “कनक भवन” के निर्माण के बाद महाराजधिराज महेंद्र प्रताप सवाई श्री सर प्रताप सिंह बहादुर वह उनकी धर्मपत्नी कुंवरी जू देवी जी ने कनक भवन की ही तरह जगत नन्दिनी श्री जानकी(माता सीता)
जी के “नौ लखा” मंदिर का निर्माण करवाया था!
13- इन्हीं के वंशज महाराजा वीर सिंह जुदेव बुंदेला जी ने मथुरा में श्री कृष्ण जी के अंतिम बार का मंदिर
” केशरराय” मंदिर का निर्माण करवाया था।
14- इन्हीं के वंशज महाराजा छत्रसाल जो ‘ बुंदेलखंड केशरी’ के नाम से भी विख्यात है !
जो एक अद्वितीय महान योध्या थे , जो अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं सारे ! जिन्होंने औरंगजेब को धूल चटाया !
जिन्हें मुगलों के काल महाराजा छत्रसाल के नाम से जाना गया ! - आजादी के बाद भारत की सभी सैन्य टुकड़ियों में इनके भी वंसज लगातार अपनी सेवा देते आ रहे है और देश को अपना लहू देते आ रहे है !!
लिस्ट बहुत लंबा हो जायेगा अगर महाराजा जयचंद्र जी के वंशजों के धार्मिक , राष्ट्रहीत व पराक्रम की ब्याख्या करूं तो !!
यवनो के नाशक “दल पंगुल” सेना के संचालक
#महाराजाधिराजजयचंद्र राठौड़ पर कुछ लोग सुनी सुनाई कपोल कल्पित कहानियों के आधार पर प्रश्न चिन्ह उठाते है ऐसे भ्रमित लोगों के लिए कुछ ऐतिहासिक लेखो,शिलालेखों, तामपत्रो के आधार पर साक्ष्य उपलब्ध करवा रहा हु –
काशीराज महाराज जयचंद के यश को कम करने व कुछ देश द्रोहीयों के नाम छुपाने के लिये षड्यंत्र के तहत जयचन्द जी का नाम बदनाम किया गया ।।
निम्नलिखित इतिहासकारों ने ऐतिहासिक ग्रन्थों व सभी लेखकों को पढ़ने के बाद महाराज जयन्द जी पर अपनी राय दि है ।।
डा. आर. सी. मजूमदार का मत है कि इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचन्द ने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये मुहम्मद गौरी को आमंत्रित किया हो ( एन्सेंट इण्डिया पृ. 336 डाँ. R.C. मजूमदार ) । अपनी एक अन्य पुस्तक में इन्हीं विद्वान इतिहासकार ने निमंत्रण की बात का खण्डन किया है ।।
J. C. पोवल प्राइस महोदय का मत है कि यह बात आधारहीन है कि महाराज जयचन्द ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया । ( हिस्ट्री आफ इण्डिया ) ।
डा. रामशंकर त्रिपाठी का कथन है कि जयचन्द पर यह आरोप गलत है । उन्होंने माना है कि समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचन्द ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो ।
श्री महेन्द्रनाथ मिश्र जो कि एक अच्छे इतिहासकार है ने जयचन्द के विरुद्ध देश-द्रोहीता के आरोप को असत्य माना है । उनका कथन है कि यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढाई करने के लिये आमंत्रित किया निराधार हे । उस समय के कपितय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी इन बातों का उल्लेख नहीं है । वे ग्रन्थ पृथ्वीराज-विजय, हम्मीर महाकाव्य, रम्भा- मन्जरी तथा प्रबन्ध-कोश किसी भी मुसलमान यात्री ने इसका जिक्र नहीं किया है । इतिहास साक्षी है कि जयचन्द ने चन्दावर में मोहम्मद गौरी से शौर्यपूर्ण युद्ध किया था ।
इब्न नसीर कृत “कामिल-उत्-तवारीख” में भी स्पष्ट कहा गया है कि, यह बात नितान्त असत्य है कि जयचन्द ने शाहबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया । शहाबुद्दीन अच्छी तराह जानता था कि जब तक उतर भारत के महाशक्तिशाली जयचन्द को परास्त न किया जाएगा तब तक उसका दिल्ली और अजमेर आदि भू-भाग पर किया गया अधिकार स्थाई न होगा क्योंकि जयचन्द के पूर्वजों ने और स्वयं जयचन्द ने तुर्कों से अनेकों बार मोर्चा लेकर हराया था ।
स्मिथ महोदय ने अपने ग्रन्थ अर्ली हिस्ट्री आफ इण्डिया में इस आरोप का उल्लेख नहीं किया है । पृथ्वीराज की तराईन के दुसरे युद्ध में हुई पराजय का दोष जयचन्द पर नहीं लगाया है ।
डा. राजबली पाण्डे ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत टिप्पणी में लिखा है “यह विश्वास कि गौरी को जयचन्द ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमन्त्रण दिया था,(डा. त्रिपाठी के अनुसार ) ठिक नही जान पङता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कहीं भी इसका जिक्र नहीं किया है ।
हिस्ट्री आफ कन्नौज- डा. त्रिपाठी । इसका अर्थ यह है कि डा. पाण्डे ने डा. त्रिपाठी के कथन को सत्य माना है । वे पूर्णतः सहमत है क्योंकि उन्होंने प्रतिवाद नहीं किया ।
अगर किसी भी सनातनी को किसी भी प्रकार की शंका हो महाराजा जय चन्द्र जी के गौरवमयी ईतिहास पर तो वो सुनी सुनाई काल्पनिक कहानीया से बाहर आकर इनमें से किसी भी किताब का अध्ययन कर सच्चाई से अवगत हो जाये !!
कई सारे ईतिहासकारो ने पूरे तथ्यों सहित यह कहा है कि महाराजा
जय चन्द्र जी एक धर्मपरायण देशभक्त महाराजा थे , उनके ऊपर लगे आरोपों का कोई आधार नही है , यह आरोप निराधार है !
उन इतिहासकारों के नाम किताब का नाम पृष्ठ संख्या सहित प्रमाण के तौर पर –
1 – नयचन्द्र : रम्भामंजरी की प्रस्तावना !!
2 – Indian Antiquary, XI, (1886 A.D.), Page 6,
श्लोक 13-14 !!
3 – भविष्यपुराण, प्रतिसर्ग पर्व, अध्याय 6 !!
4 – Dr. R. S. Tripathi : History of Kannauj,
Page 326 !!
5 – Dr. Roma Niyogi : History of Gaharwal
Dynasty, Page 107 !!
6 – J. H. Gense : History of India (1954 A.D.),
Page 102 !!
7 – John Briggs : Rise of the Mohomeden
Power in India (Tarikh-a-Farishta),
Vol. I, Page 170 !!
8 – डॉ. रामकुमार दीक्षित एवं कृष्णदत्त वाजपेयी :
कन्नौज, पृ. 15 !!
9 – Dr. R. C. Majumdar : Ancient Indian, Page
336 एवं An Advanced History of India,
Page 278 !!
10 – Dr. Roma Niyogi : History of Gaharwal
Dynasty, Page 112 !
11 – J. C. Powell-Price : History of India,
Page 114 !!
12 – Vincent Arthur Smith : Early History of
India, Page 403 !!
13 – डॉ. आनन्दस्वरूप मिश्र : कन्नौज का इतिहास,
पृ. 519-555 !!
14 – डाॅ. आनन्द शर्मा : अमृत पुत्र, पृ. viii-xii !!
15 – डाॅ. आनन्द शर्मा : अमृत पुत्र, पृ. xi !!
नोट : राजा जयचंद गद्दार नहीं, निर्दोष थे, और एक प्रतापी न्यायप्रिय धर्म परायण राजा थे ! वे दुष्प्रचार के शिकार हुये। इन सभी प्रमाणो के आधार पर कोई भी सत्य से अवगत हो सकता है कि बिना छल से महाराजा जय चन्द्र जी को हराना मुश्किल है !
लेखक: अज्ञात।