श्वेता पुरोहित-
एक बार माता कौशल्या ने प्रभु को स्नान कराया और वस्त्र पहनाकर श्रृंगार करके पालने में लिटा दिया। अपने कुल के ईष्टदेव भगवान हंस की पूजा करने के लिये माता ने पकवान बनाया और नैवेद्य चढ़ाकर पूजा की और पकवान प्रभु को चढ़ाया। पूजा करके माता पाकघर में गई और फिर पूजा के स्थान में जाकर प्रभु को भोजन करते देखा।
फिर माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई तो वहाँ भी पुत्र को सोते हुए देखा। फिर दुबारा वहाँ आकर देखा तो भोजन कर रहे हैं। यह देखकर माता का हृदय कांपने लगा और अधीर हो उठी। दोनों जगह पुत्र को देख मति भरमा गई। प्रभु माता को व्याकुल देख हंसकर मधुर-मधुर मुसकाने लगे।
प्रभु ने माता को अपना अद्भुत और अखण्ड रूप दिखाया जिनके प्रत्येक रोम-रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड दिखाई दे रहे थे।
अगनित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा और बहुत से पर्वत, नदी, समुद्र, पृथ्वी, बन देखे । कालकर्म, गुणज्ञान और स्वभाव जो किसी ने नहीं सुना वह माता कौशल्या ने देखा। माता ने अतिप्रभावशाली माया को देखा जो भयभीत होकर हाथ जोड़े खड़ी थी। उन जीवों को भी देखा जिन्हें माया भ्रमाकर नचाती है और उन में प्रभु की भक्ति देखकर बंधन से छुड़ाती है।
ऐसे अनुपम दृश्य को देखकर माता पुलकाय मान हो उठी। उसके मुँह से कोई वचन नहीं निकला और घबड़ाकर आँखें मूंद प्रभु के चरणों में सिर नवाया । माता को आश्चर्यवन्त देखकर प्रभु बालरूप हो गये। भय के कारण माता स्तुति भी नहीं कर सकी और सोचने लगी कि मैंने जगत पिता परमेश्वर को अपना पुत्र जाना। प्रभु ने माता को भाँति-भाँति से समझाकर कहा कि हे माता! यह कहीं भी किसी से मत कहना ।
यह देखकर कौशल्या हाथ जोड़कर बार-बार विनय करती है कि हे प्रभु! मुझे आपकी माया कभी न व्यापे ।
रघुकुलभूषण राम लला की जय 🙏🌷