भारत की ओर से 93वें अकादमी पुरस्कारों (ऑस्कर) के लिए मलयालम फिल्म ‘जल्लीकट्टू’ को आधिकारिक प्रविष्टि दी गई है। जल्लीकट्टू ने 27 फिल्मों को पछाड़कर ऑस्कर का टिकट कटा लिया है। इस बात से कंगना रनौत बहुत प्रसन्न हैं। यदि कंगना ने इस विषय में थोड़ा सोचा होता तो आज वे इस निर्णय के विरुद्ध आग उगलते ट्वीट कर रही होती।
मैंने जब ये फिल्म देखी और इसके शीर्षक पर विचार किया तो पाया कि 2300 वर्ष से मनाए जा रहे एक पर्व के नाम पर फिल्म का शीर्षक रखना एक कटाक्ष है। जल्लीकट्टू शीर्षक का फिल्म और इसकी कहानी से कोई सीधा संबंध नहीं है। एक कसाईखाने से छूटकर भागे भैंसे पर बनाई गई फिल्म का जल्लीकट्टू से क्या संबंध हो सकता है। फिल्म मुख्यतः मानव के लोभ पर आधारित है।
वास्तव में ये फिल्म भैंसे को आधार बनाकर मानव मन में छुपे विकारों को प्रस्तुत करती है। लेकिन फिर भी ये ऑस्कर में भेजे जाने योग्य नहीं है और इसके शीर्षक के कारण आने वाले दिनों में मीडिया प्राचीन उत्सव जल्लीकट्टू पर तीर चला सकता है। जल्लीकट्टू पर सन 2014 में प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन मोदी सरकार ने एक अध्यादेश बनाकर इसकी वापसी की।
अब तो ये पहले जैसा खतरनाक भी नहीं रहा है। इस खेल में ऐसे सुधार किये गए कि पशुओं और मनुष्यों की जान का संकट कम हो गया। जब इस पर प्रतिबंध लगाया गया तो कमल हासन, रजनीकांत, रहमान जैसे सितारें इसके विरोध में आगे आए थे। स्पष्ट है कि जल्लीकट्टू अत्यंत लोकप्रिय खेल है, जिसके साथ तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था भी जुड़ी हुई है। जल्लीकट्टू न होता तो आज तमिलनाडु के पास हष्टपुष्ट बैल न होते।
उनके दूध के व्यवसाय में भी ये खेल उत्सव बहुत मदद देता है। शताब्दियों से बैलों की विभिन्न प्रजातियां अब तक इस उत्सव के कारण ही अस्तित्व में है। अब फिल्म की बात करे तो निर्देशक ने इसका नाम जल्लीकट्टू रखकर विवादों को जन्म दे दिया है। जल्लीकट्टू में पशुओं पर अत्याचार नहीं होता और न उन्हें कसाईखाने में काटा जाता है। इस उत्सव में तो गौ वंश संवर्धन को बढ़ावा ही दिया जाता है। अब आते हैं ऑस्कर में भेजे जाने वाली फिल्मों के चयन पर।
जल्लीकट्टू 2019 में प्रदर्शित हुई थी लेकिन इसे 2021 ऑस्कर के लिए चुना गया है। इस बार ऑस्कर में एंट्री के लिए दो साल पुरानी फ़िल्में भी आई थी। जैसे सन 2018 की फिल्म ‘भोंसले’ भी ऑस्कर में एंट्री के लिए आई थी। यदि यही क्राइटेरिया है तो सन 2019 के कैलेंडर में हमारे पास दो ऐसी फ़िल्में थी, जो ऑस्कर में जाने की योग्यता रखती थी।
वे फ़िल्में थी ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘मणिकर्णिका’। हालांकि इनकी जगह एक अंग्रेजी फिल्म की कॉपी ‘गली बॉय’ को ऑस्कर में भेज दिया गया था। 2020 में भारत के पास कोई ऐसी फिल्म नहीं थी, जिसे वे आधिकारिक प्रविष्टि के रुप में ऑस्कर भेज सके। जल्लीकट्टू का चयन किस आधार पर किया गया। ये फिल्म भारत की सकारात्मक छवि तो प्रस्तुत ही नहीं करती है।
बीफ के लालची एक गांव को देखने के बाद ऑस्कर के ज्यूरी भारत के बारे में क्या राय रखेंगे। क्या हम ऐसी फ़िल्में ऑस्कर में नहीं भेज सकते, जो हमारी सशक्त छवि दुनिया को दिखाए। एक कमज़ोर फिल्म ऑस्कर में भेजी गई, वह इतना दुःख देने वाला नहीं होगा, जितना पीड़ादायक ये होगा कि इससे भारत का एक ऐसा खेल उत्सव अपयश पाएगा, जिसके कारण पशु धन को बढ़ावा मिलता है।
हमने ऑस्कर में एक ऐसी फिल्म भेज दी है, जो जितने राउंड तक आगे जाएगी, अंतरराष्ट्रीय मीडिया हमारे रविशिया मीडिया के साथ मिलकर जल्लीकट्टू को अपमानित करेगा। क्या ज्यूरी नहीं जानते कि ऑस्कर में आपकी फ़िल्में नहीं जाती, आपका देश और उसकी संस्कृति जाती है।
आपकी बात सही है तो ये काफी गलत फैसला है।
बहुत आभार जितेंद्र जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए
Find out the Jury members who have selected this movie .It is quite possiblee that they are from pancha communities who want to always deride and degrade INDIA .These are the Anti India people in the garb of Jury ,film producers ,intellectuals etc taking their rights to do as they wish .It is a pity but the Fact is that India is always from Chanakya times destroyed by its own people .Sorry but TRUE .
thanks NATARAJAN