पिछले 24 घंटे में देश में कोरोना वायरस के 386 नये मामले सामने आये हैं और ये केसेज़ का अचानक से बढ़्ना काफी कद तक तबलीगी जमात के निज़ामुद्दीन में हुए मरकज़ की वजह से है. जब पूरे भारत में किसी भी प्रकार के बड़े स्तर पर किये गये सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबंध लग चुके थे, ऐसे समय में 10 से 13 मार्च को निज़म्मुद्दीन में तबलीगी जमात का सम्मेलन चल रहा था जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग सम्मिलित थे. सिर्फ भारत से नहीं बल्कि मलेशिया ,इंडोनेशिया सहित ऐसे कई देशों के लोग इस कार्यक्रम में सम्मिलित थे जहां कोरोना वायरस का कहर उस समय अपनी चरम सीमा पर था.
भारत के कोने कोने से मुस्लिम समुदाय के लोग तबलीगी जमात के मरकज़ में सम्मिलित होने पहुंचे और फिर इस मरकज़ के बाद जब इनमे से कई लोगों ने भारत के कई राज्यों की यात्रा की तो ये लोग वहां कोरोना वाइरस के करियर बने. यात्रा कर रहे लोगों में कई विदेशी भी शामिल थी. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा देक़े गई सूचना के अनुसार दिल्ली में जमात 1800 लोगों को 9 अलग अलग अस्पतालों में और क्वारंटीन सेंटर में शिफ्ट किया गया है. पिछले 24 घंटों में देशभर में जो 386 कोरोना वायरस के नये मामले सामने आये हैं, उनमे से 164 केस निज़ामुद्दीन में हुए तबलीगी मरकज़ के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वालों के हैं. तो अब सरकार इस खोजबीन में लगी है तबलीगी जमात के निज़ामुद्दीन कार्यक्रम में सम्मिलित हुए लोग न जाने देश के किन किन कोनों में छिपे बैठे होंगे. यहीं नहीं, निज़ामुद्दीन की मस्जिद में भी अभी कई लोग अंदर ही छिपे बैठे हैं. हालंकि पूरे इलाके को सील कर दिया गया है और वहां भारी संख्या में पुलिस तैनात है.
इतना सब हो जाने के बाद भी तबलीगी जमात के लोग अपनी गलती मानने के लिये तैयार ही नहीं है! यहीं नही, भारत का लेफ्ट लिबरल मीडिया भी अपनी इस्लामिक अपीज़्मेंट पांलिसी के अंतर्गत उनका बचाव करने के लिये निकल पड़ा है. जमात की तारीफ में कसीदे गढ़े जा रहे हैं कि किस प्रकार तबलीगी जमात एक गैर राजनीतिक संस्थान है जो कि विशुद्ध रूप से धर्म से जुड़ी आसमानी बातें ही करता है, और किस प्रकार दान पुण्य करता है, किस प्रकार पूरे विश्व में इस संगठ्न का बहुत सम्मान है, वगैरह, वगैरह. तबलीगी जमात वाकई में किस प्रकार का संगठ्न है, यह तो अपने आप में अलग ही शोध का विषय है. ळेकिन इस विषय पर कुछ सामग्री इंटरनेट पर भी उपलब्ध है. ‘मिडिल ईस्ट क्वाटरली’ नाम की साइट पर एक शोध पत्र छपा है और हालांकि यह लेख बहुत पुराना है , 2005 का है, लेकिन इसमे स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि किस प्रकार तबलीगी जमात जैसा संगठन जो कि अपने आप को पूरे विश्व के सामने गैर राजनीतिक दिखाता है, वास्तविकता में रैडिकल इस्लामिक आतंकवाद के लिये एक कवर अप मात्र है. लेखक ने एक प्रकार से पश्चिमी देशों और अमरीका को चेतावनी दी है कि वे जिस प्रकार से तबलीगी जमात जैसे संगठनों को हल्के में ले रहे हैं, इन्हे सम्मेलन वगैरह कराने की स्वतंत्रता दे रही हैं, इसका खामियाजा फिर उन्हे किसी दिन भुगतना पड़ेगा. लेखक ने विस्तार में बताया है कि किस प्रकार तबलीगी जमात की मीटिंग्स मुस्लिम समुदाय के पढ़े लिखे युवको के लिये आतंकवादी संगठ्नों से जुड़्ने की पहली सीढ़ी बनती है. पहले वह इस जमात का हिस्सा बनता है और फिर कहीं न कहीं इन्ही की मीटिंग्स में आतंकवादी संगठ्नों के लोग इन युवकों को जेहाद के लिये उकसा के फिर इन्हे रिक्रूट करते है. आप ये पूरा लेख इस लिंक पर पढ़ सकते हैं. https://www.meforum.org/686/tablighi-jamaat-jihads-stealthy-legions
एक ऐसे संगठ्न को भारत का मेनस्ट्रीम मीडिया आखिर बचाने की कोशिश क्यों कर रहा है? और सोशल मीडीया साइट्स पर अगर कोई भी तबलीकी जमात की निज़ामुद्दीन मीटींग की वजह से जो कोरोना वायरस केसेज़ भारत में तेज़ी से बढ़े हैं, यदि उस पर टिप्पणी कर रहा है, जमात के गैर ज़िमेमेदाराना रवैये की आलोचना कर रहा है, तो उसे सांप्रदायिक भला क्यों कहा जा रहा है? इसमें सांप्रदायिकता कहां से आ गई ? अगर किसी संगठन के इस प्रकार के रवैये की वजह से एक खतरनाक परिस्थिति उतपन्न हुई है, तो उसकी आलोचना तो होगी, ये तो ज़ाहिर सी बात है. अब अगर वो संगठ्न इस्लाम धर्म मे ताल्लुक रखता है, तो सांप्रदायिकता उस धार्मिक एंगल को भुना ज़बरदस्ती लोगों को चुप्पी साधने की सलाह देने वाले लोग फैला रहे हैं, न कि आलोचक.