असम में जारी एनआरसी की ड्राफ्ट सूची पर संसद में सोमवार को विपक्ष के हंगामे तथा सूची के विरोध में विपक्षी नेताओं के दिए बयानों की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने धज्जियां उड़ा दी। उन्होंने एनआरसी के इतिहास से लेकर विपक्ष खासकर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की मंशा पर प्रहार किया। हालांकि उनके संबोधन के दौरान ही कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने इतना हंगामा किया जिसके चलते राज्यसभा की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। लेकिन तब तक अमित शाह ने कांग्रेस के प्रिय प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक की सारी पोल-पट्टी खोलकर रख दी।
उल्लेखनीय है कि 1972 में कांग्रेस की सरकार ने ऐलान किया था कि 25 मार्च 1971 तक आए बांग्लादेशियों को ही भारत में रहने की इजाजत दी जाएगी लेकिन उसके बाद भारत आए बांग्लादेशियों को वापस भेज दिया जाएगा। सवाल उठता है कि इतने दिनों तक कांग्रेस ने क्या किया? एक भी बांग्लादेशी को वापस भेजा… या उन्हें कोई अवैध बांग्लादेशी मिला ही नहीं? यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया था। उस फैसले का क्या हुआ? आज एनआरसी के विरोध करने से पहले कांग्रेस को उसका जवाब देना चाहिए था।
15 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने असम मूवमेंट के नेताओं के साथ एक समझौता किया। उस समझौते की प्रमुख बातें:
* जो विदेशी 1951-1961 के बीच असम आए उन्हें पूर्ण नागरिकता दी जाएगी जिसमें वोट का अधिकार भी होगा
* 1971 के बाद आए सारे घुसपैठिए को वापस भेजा जाएगा
* 1961-1971 के बीच आए घुसपैठिओं को नागरिकता तो मिलेगी मगर 10 साल तक उनके पास वोट का अधिकार नहीं होगा
मगर इस समझौते के बाद भी असम में घुसपैठ होता रहा और राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी उन्हीं घुसपैठियों के दम पर बार बार सरकार बनाती रही!
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में उसी समझौते को अमली जामा पहनाने की कोशिश हो रही है तो ‘वोटबैंक राजनीति’ के सारे पार्टनर मैदान में कूदकर छीना झपटी में लग गए हैं।
राज्यसभा में असम की एनआरसी ड्राफ्ट सूची पर बोलते हुए अमित शाह ने पूछा इस मुद्दे को उठाकर क्या विपक्ष बांग्लादेशी घुसपैठियों को बचाना चाहता है? उन्होंने कहा कि असम में एनआरसी को लेकर आश्वासन कांग्रेस के कई प्रधानमंत्रियों ने दिए लेकिन किसी में इसे अंजाम तक पहुंचाने की हिम्मत नहीं हुई। शाह ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रदेश में घुसपैठियों की पहचान करना जरूरी था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हमारी सरकार ने इसे अंजाम दिया। जबकि हमारी सरकार आने से पहले किसी में हिम्मत नहीं थी कि घुसपैठियों की पहचान कर सके।
अमित शाह का एनआरसी पर कांग्रेस को मुंहतोड़ जवाब देखिए विडियो:
2013 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया था। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में इस कार्य को पूरा करने का आदेश दिया। तभी आईएएस अधिकारी प्रतीक अलीजा को एनआरसी अपडेट करने का दायित्व सौंपा गया। इसे रोकने का एक बार और असफल प्रयास किया गया। लेकिन 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि किसी भी सूरत में एनसीआर की सूची जारी होने का काम नहीं रुकेगा। और असम की सोनोवाल सरकार ने उसे पूरा कर दिखाया। आज असम में अवैध रूप से रहने वाले नागरिकों की पहचान हो गई है।
URL: Amit Shaha asks in rajya sabha, does opposition want to save bangladeshi infiltrators
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