जिस संसद में सैनिकों के शहीद होने के बाद अंग-भंग किये जाने पर विचार होना चाहिए कि पाकिस्तान के इस रवैय्ये पर कैसे जवाब देना चाहिए ? वहां के माननीय नोट बंदी के खिलाफ अपना रोना रो रहे हैं और संसद की गतिविधियों को बाधित कर रहे हैं। पिछले एक महीने में यह दूसरी बार हुआ जब शहीद जवान की शहादत को पाकिस्तानी सेना ने अपमानित किया है। सीमाओं पर जवान शहीद होते हैं लेकिन यह क्या कि जवान की गर्दन काट कर ले जाओ! यह तो बर्दाश्त करने की हद है!
हम और आप इसे बर्दाश्त कर रहे हैं हमारे लिए यह शर्म की बात है। और उससे भी ज्यादा शर्मनाक यह है कि हमारे द्वारा चुने हुए नेताओं का ध्यान इस विषय पर नहीं जाता वे सिर्फ और सिर्फ अपने हितों को साधने में लगे हुए हैं। इंसानियत के साथ -साथ जमीर को भी पैसों की भूख के साथ मार दिया है इन्होंने शायद! जो न इन्हें शहीद सैनिकों के न तो क्षत-विक्षत शव दिख रहे और नहीं उनके परिवार वालों की करुण चीत्कार इनके कानो तक पहुच रही है।
घाटी के माछिल सेक्टर में शहीद हुए जवानों के घरों के चिराग जो सदा के लिए शांत हो गए इस समय केवल मातम छाया हुआ है। जोधपुर के 25 साल के प्रभु सिंह चार साल पहले भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। इनकी शादी को अभी दो साल हुए हैं और उनकी 8 महीने की एक बेटी है। चार बहिनो के साथ-साथ माँ पिता की जिम्मेदारी सँभालने वाला यह जवान सिर्फ इसलिए शहीद हो गया कि देश पर कोई आंच न आये लेकिन देश में कोई भी उनके लिए सोचने को तैयार नहीं! न ही उनके परिवार के आंसू पोछने वाला ही कोई है क्योंकि देश तो केवल नोटबंदी में उलझा है! यही हाल दूसरे जवान गाजीपुर के ही मनोज कुशवाहा के परिवार वालों का भी है। मनोज भी अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ कर देश के लिए शहीद हो गए। प्रश्न फिर वही! आखिर क्यों जवान अपने प्राणों को देश के लिए बलिदान कर देता है अपनी सारी जिम्मेदारियों को छोड़ कर? क्या इसलिए कि उनकी शहादत को इस तरह से जाया किया जाये।
गाजीपुर के ही शशांक सिंह भी उसी पेट्रोलिंग दस्ते का हिस्सा थे जिस पर पाकिस्तानी सेना ने हमला किया। 25 वर्षीय शशांक की अगले साल शादी होने वाली थी। कितने शशांक, मनोज और प्रभु हर साल देश के लिए शहीद होते हैं लेकिन सेना के जज्बे में कोई कमी नहीं आती। वह अपना काम उसी तत्परता से कर रही है जिस तत्परता से वह करती आयी है। लेकिन देश बहुत जल्दी उनकी शहादत को भुला देता हैं कभी इंडिया गेट पर मोमबत्ती परेड निकाल कर और तो कभी दो मिनट का मौन धारण कर के। ऐसा लगता है हमारे देश में जवानों की शहादत का इतना ही मोल है एक मोमबत्ती और दो मिनट का मौन!