अग्रवाल संपादक। आज रतन टाटा, इंफोसिस के नारायण मूर्ति और नवीन जिंदल सहित 2 जी एवं कोयला कंपनियो के उस खेल का रायता बिखर चुका है जो परदे के पीछे रहकर उन्होंने आम आदमी पार्टी को शह, समर्थन और संसाधन देकर खड़ा किया था। अब पूरी की पूरी आम आदमी पार्टी सवालो के घेरे में है। मौलिक भारत ने जिस प्रकार अरविंद केजरीवाल को घेरा है,उसके बाद उनका राजनीतिक भविष्य ही दांव पर है और जिन हीरो को उन्होंने पार्टी में चुना है वो हर रोज उन्हें ले डूबने को तैयार बेठ हें।बाकि कसर केजरीवाल की प्रशासनिक अक्षमता ने और केंद्र से टकराव ने पूरी कर दी है। दिल्ली में यह गैंग असफल और विवादित हो गया है और ऊचाईयां लेने के बाद पंजाब में बिखराब और उतार पर है, गोवा और गुजरात तो अब दूर की कौड़ी हें।
मित्रो, बात सन् 2010 की है जब 2जी स्पेक्टम घोटाले के खुलासे सरकार, एयरटेल, वोडाफोन, रिलायंस और टाटा हिले हुए थे और एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे थे। इस समय सोनिया बनाम मनमोहन अर्थात यूरोपियन लॉबी बनाम अमेरिकन लॉबी का शीत युद्ध चरम पर था। सोनिया कैम्प को काबू करने के लिए अमेरिकी की यहूदी लॉबी ने पेंटागन और मनमोहन की मदद से रतन टाटा को आगे कर भारत में एक जन आंदोलन की कल्पना की।उद्देश्य अपनी लूट से जनता का ध्यान हटाना, क़ानूनी कार्यवाही और सजा से बचना, बदलाब के नाम पर देश में अस्थिरता पैदा करना और ज्यादा से ज्यादा व्यापारिक समझोते करते हुए लाभ उठाना।
अमेरिका से जुडी सारी आई टी कम्पनियों, फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े भारत के एनजीओ गैंग जिसके नेता अरविन्द केजरीवाल बने और पीएमओ के इशारे पर सारे मीडिया को इस खेल में शामिल किया गया। घोटालो में फंसी कम्पनियो ने सभी मीडिया समूहों को अपने CSR फण्ड से और नकद सहायता दी। यह राशि एक लाख करोड़ रूपये से भी ज्यादा थी।
आंदोलन को कवर करने के लिए स्वयं रतन टाटा ने इस दौर में 15 हज़ार करोड़ के विज्ञापन मीडिया को बांटे। नवीन जिंदल ने हज़ारों तथाकथित वोलिंटर को बर्षों तक वेतन बांटे और इंडिया अगेंस्ट करप्शन और आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आयी। ऐसे लोग जिनका राजनीतिक ज्ञान और प्रशिक्षण शून्य था या दोयम दर्जे के नेता थे फिर विदेशी चंदे पर पलते थे रातोंरात मीडिया की मदद से स्टार बना दिए गए। ये ही स्टार अंततः अपरिपक्व मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसदों, विधायकों और पार्टी नेताओ में बदल गए और इन लोगो ने दिल्ली व पंजाब में कोहराम मचा दिया है। अब ये लोग एक गैंग में बदलते जा रहे हें जो राष्ट्रद्रोहियों का साथ लेने में संकोच नहीं करते,धर्म और जाति की राजनीति करते हें टिकट बेचते हें, झूठ बोलते हें, अराजक हें, बद्तमीज हें, भ्रष्ट हें, नशेड़ी भी और व्यभिचारी भी।
कारपोरेट और व्यवस्था के घोटाले के मैल से निकली आम आदमी पार्टी से इससे ज्यादा और क्या उम्मीद की जा सकती थी? मगर इस सब के बीच अन्य राजनीतिक दल हमारे सामने कौन सा आदर्श पेश कर पा रहे हें। शिक्षण और प्रशिक्षण का अभाव तो सभी पार्टियोँ के नेता और कार्यकर्ताओं में है। सत्तारूढ़ भाजपा जिस प्रकार अपने प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर दूसरे दलों के भ्रष्ट लोगों को अपने दल में शामिल करती जा रही है वह और भी चिंताजनक है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक है व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन की धार को कुंद करने और जनता का भरोसा तोड़ने का खेल है, जिसका खामियाजा पूरी पीढ़ी को झेलना पड़ेगा।
नोट- लेखक डायलाॅग इंडिया के संपादक हैं!
Disclaimer: यह लेखक का निजी राय है। इससे India Speaks Daily का सहमत होना जरूरी नहीं है। इस लेख में उपलब्ध तथ्यों की पुष्टि का दावा ISD नहीं करता है।