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India Speaks Daily > Blog > समाचार > देश-विदेश > फ्रांस, चीन और अमेरिका को हरा चुके विएतनाम के जरिये मोदी ने दक्षिण पूर्वी एशिया में खेला बड़ा दांव !
देश-विदेश

फ्रांस, चीन और अमेरिका को हरा चुके विएतनाम के जरिये मोदी ने दक्षिण पूर्वी एशिया में खेला बड़ा दांव !

Courtesy Desk
Last updated: 2018/04/12 at 4:18 PM
By Courtesy Desk 548 Views 9 Min Read
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India Speaks Daily - ISD News
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डॉ. गौरीशंकर राजहंस । संसार के प्राय: सभी प्रसिद्ध इतिहासकारों ने इस बात को माना है कि दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रमुख देश लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में बौद्ध धर्म संभवत: सम्राट अशोक के समय में भारत से गया था। हजारों भारतीय बौद्ध भिक्षु बर्मा और थाईलैंड, जिसे उन दिनों ‘सियाम’ कहते थे, होकर मेकांग नदी को नाव से पार कर लाओस, कंबोडिया और वियतनाम गए और अधिकतर लोग वहीं बस गए। जब ये देश फ्रांस के उपनिवेश बने तो फ्रांस ने इन्हें ‘इंडो-चाइना’ का नाम दे दिया। सभी इतिहासकार यह मानते हैं कि इन तीनों देशों में भारत और चीन से लोग आकर बसे, परंतु धर्म और संस्कृति तो भारत से ही आई।

1992 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने मुझे दक्षिण-पूर्व एशिया के दो महत्वपूर्ण देश लाओस और कंबोडिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया तब उन्होंने मुझे बताया कि इन देशों के साथ भारत के संबंध बहुत ही प्राचीन हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि भारत ने इन देशों की अनदेखी की। अब समय आ गया है जब हम फिर से पुराने संबंधों को मजबूत करें। विपक्ष के तत्कालीन नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मुझे पत्र लिखकर कहा कि इन देशों में भारत की संस्कृति जड़ जमाए हुए है। मुझे तीनों देशों में घूमकर लोगों को बताना चाहिए कि उन देशों के साथ भारत की संस्कृति किस प्रकार जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी लिखा कि कंबोडिया का प्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर संसार का सबसे बड़ा और सबसे पुराना हिंदू मंदिर है जिसे सैकड़ों वर्ष पूर्व भारत मूल के लोगों ने कंबोडिया जाकर वहां की जनता के सहयोग से बनाया था।

वियतनाम के संग भारत के संबंध हमेशा ही मधुर रहे हैं। जब फ्रांस वियतनाम से हट रहा था तब उसने अमेरिका को आमंत्रित किया कि वह वियतनाम पर कब्जा जमा ले। अमेरिका ने अनेक वर्षो तक वियतनाम के चप्पे-चप्पे पर बम बरसाए, परंतु वियतनाम की बहादुर जनता ने डटकर उसका मुकाबला किया। अंत में शर्मिदा होकर अमेरिका को वियतनाम से वापस लौटना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक प्रसिद्ध कहावत है कि कोई देश किसी का स्थायी मित्र या स्थायी शत्रु नहीं होता है। केवल हित स्थायी होते हैं। जिस अमेरिका ने वर्षो तक भीषण बमबारी करते हुए वियतनाम को बर्बाद करने का प्रयास किया था वह आज वियतनाम के निकटतम मित्रों में से एक हो गया है। कारण यह है कि दक्षिण चीन सागर में चीन प्रतिदिन उत्पात कर रहा है और वह अन्य देशों के साथ वियतनाम को भी तंग कर रहा है। अत: अमेरिका का ऐसा मानना है कि चीन को करारा जवाब देने के लिए उसे वियतनाम के साथ खड़ा होना होगा और वह खड़ा भी है।

जब वर्षो तक अमेरिका वियतनाम में भीषण बमबारी कर रहा था उस समय भी भारत ने वियतनाम का साथ दिया था। यह सच है कि उस समय वियतनाम सोवियत रूस के खेमे में शामिल था और भारत गुटनिरपेक्ष नीति को अपना रहा था और कड़े शब्दों में अमेरिका की निंदा कर रहा था कि वह एक निदरेष देश पर बिना कारण ही बमबारी कर रहा है। अमेरिका उस समय भारत की हंसी उड़ाता था और कहता था कि गुटनिरपेक्ष नीति एक ढकोसला है। असल में भारत सोवियत गुट का समर्थक था, परंतु भारत ने अमेरिका के उस उलाहने की परवाह नहीं की और बराबर वियतनाम के पक्ष में विश्व जनमत तैयार करता रहा और अन्य देशों को समझाता रहा कि अमेरिका वियतनाम में बमबारी बंद करे।

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कम लोगों को यह पता है कि वियतनाम एक लड़ाकू देश है और उसने सुरक्षा परिषद के तीन महत्वपूर्ण देशों को युद्ध में पराजित किया है। ये देश हैं फ्रांस, अमेरिका और चीन। चीन ने तो कई बार वियतनाम पर हमले किए, परंतु हर बार वियतनाम की बहादुर जनता ने चीन के दांत खट्टे कर दिए और चीन को अपमान सहकर वियतनाम से भागना पड़ा। सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई चीन की वियतनाम के साथ 1978 में हुई। चीन यह सोचता था कि वह वियतनाम को कुचल डालेगा, परंतु वियतनाम की बहादुर जनता ने चीन को करारी चोट दी जिसके कारण चीन को वियतनाम से भागना पड़ा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानबूझकर चीन में जी-20 के शिखर सम्मेलन में जाने से पहले वियतनाम गए। चीन का नाम लिए बगैर उन्होंने हनोई में बौद्ध अनुयायियों को कहा कि अन्य देश तो वियतनाम में युद्ध लेकर आए, परंतु वे बुद्ध लेकर आए हैं। भारत शांति और भाईचारे के संदेश के साथ वियतनाम आया है। उन्होंने कहा कि दुनिया को शांति के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। युद्ध केवल विनाश लेकर आता है। यह भी कहा कि वियतनाम उन सभी देशों के लिए प्रेरणा का स्नोत है जो युद्ध के मार्ग से हटकर बुद्ध के शांति और सौहार्द के मार्ग पर चलना चाहते हैं।

वियतनाम के नेताओं ने एक सुर में भारत की दक्षिण-चीन सागर में भूमिका बढ़ाने की मांग की और भारत सरकार से रणनीतिक और बहुपक्षीय संबंध बढ़ाने की इछा जाहिर की। वियतनाम के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वियतनाम को 50 करोड़ डॉलर का रक्षा ऋण देने की पेशकश की है। इसमें 10 करोड़ डॉलर समुद्री निगरानी पोत बनाने के लिए खर्च होंगे। वियतनाम में प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि भारत और वियतनाम की मित्रता बहुत पुरानी और अटल है तथा भविष्य में भी यह मजबूत और अटल रहेगी। चीन के एक प्रमुख समाचार पत्र ने अपने अग्रलेख में लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जानबूझकर जी-20 सम्मेलन के पहले चीन को नीचा दिखाने के लिए वियतनाम का दौरा किया। सच चाहे कुछ भी हो, परंतु प्रधानमंत्री मोदी ने वियतनाम के साथ संबंधों को मजबूत कर चीन को यह संदेश दिया कि इस क्षेत्र में भारत अकेला नहीं है। अत: चीन को दक्षिण-चीन सागर में कोई विध्वंसकारी कदम उठाने से पहले कई बार सोचना होगा। यही बात जी-20 सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कही कि यदि चीन ‘सुपर पावर’ बनना चाहता है तो उसे विश्व जनमत का सम्मान करना होगा और दक्षिण-चीन सागर में रोज-रोज के उत्पात से बचना होगा। इस बात का चीन के नेताओं पर कितना प्रभाव पड़ा है यह कहना कठिन है।

जी-20 के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को दो टूक कहा कि चीन और भारत दोनों को एक दूसरे की महत्वाकांक्षाओं, चिंताओं और रणनीतिक हितों का सम्मान करना चाहिए। इसके जवाब में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कुछ नहीं कहा, परंतु वे प्रधानमंत्री मोदी का इशारा समझ गए और उन्होंने कहा कि चीन भारत की मित्रता को हमेशा सवरेच श्रेणी में रखता है।

चीन यह समझ गया है कि वियतनाम के साथ दोस्ती करके भारत उसे कठोर संदेश दे रहा है। चीन यह भी समझ गया है कि यदि अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम चीन के खिलाफ हो गए तो इस क्षेत्र में चीन की दादागिरी बहुत दिनों तक नहीं चलेगी। कुल मिलाकर वियतनाम की राजकीय यात्र करके प्रधानमंत्री मोदी ने एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता प्राप्त की है और भारत के हितों को मजबूत किया है।

Courtesy: दैनिक जागरण

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TAGGED: Foreign policy of Narendra Modi, Modi foreign tour, PM Narendra Modi, PMO India
Courtesy Desk September 8, 2016
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