अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में जिन्ना की तस्वीर पर हुए बवाल मामले में एएमयू के छात्रों के समर्थन में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए दूसरे पक्ष को बाहरी बताकर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने एक बार फिर अपना पुराना स्टैंड ही दोहराया है। ऐसा उन्होंने पहली बार नहीं किया है कि उदारवादी विचार के नाम पर घोर सांप्रदायिकता का साथ दिया हो।अव्वल तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना ही घोर सांप्रदायिकता के आधार पर हुई थी जिसकी नींव में इस्लाम धर्म का प्रचार पैबस्त है।
मुख्य बिंदु
* अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर को लेकर हुए बवाल पर अंसारी की सोच एकतरफा
* अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में देश में बंटवारे का इतिहास दोहराने की प्रवृति झलकती है
जो व्यक्ति अपने संवैधानिक पद पर रहते हुए सरकार को नीचा दिखाने की मंशा से देश के माहौल को बिगाड़ने का प्रयास किया हो वैसे व्यक्ति से तटस्थ और निष्पक्ष प्रतिक्रिया की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने पहली बार पूर्वाग्रह से ग्रसित बयान नहीं दिया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना के पक्षधरों तथा विरोधी विचारवालों के साथ मारपीट करने वालों के प्रति सहानुभूति उन्हें अपने पारिवारिक इतिहास से मिला है। तभी तो आज भी वे देश को बांटने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के हिमायती बने हुए हैं। देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद यानि 10 सालों तक उपराष्ट्पति होने के बावजूद उनकी सोच एकांगी ही रही। जो व्यक्ति जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य रहा हो उनसे निष्पक्षता की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती है।
वैसे में हामिद अंसारी एक कट्टरपंथी मुस्लिम परिवार से आते हैं। उनके दादा (चचेरा) डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी इस्लामिक कट्टरपंथी रहे हैं। इनकी कट्टरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने देश में खिलाफत आंदोलन शुरू करने वालों में से एक रहे हैं। उनकी अगली पीढ़ी भी अपने इतिहास को उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेताओं में शुमार मुख्तार अंसारी के रूप में ढो रही है। इस तरह हामिद अंसारी और मुख्तार अंसारी चचेरे भाई हैं। मालूम हो कि मुख्तार अंसारी को ही उत्तर प्रदेश के मऊ दंगे का खलनायक माना जाता है। उनके खिलाफ अभी भी देढ़ दर्जन संगीन मुकदमें चल रहे हैं। उन पर आईएसआई और जिहादियों का हमदर्द होने का आरोप है। जब परिवार का इतिहास से लेकर वर्तमान माहौल तक कट्टरपंथी हो ऐसे में सेकुलर होने का ढोंग हास्यास्पद से ज्यादा और कुछ नहीं लगता।
जिस अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को हामिद अंसारी सेकुलर का अड्डा मानते हैं वहीं होने वाले दीक्षांत समारोह में शरीक होने वाले देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का छात्र यूनियन के अध्यक्ष मश्कूर उस्मानी ने यह कहकर विरोध किया था “हम किसी सांप्रदायिक ताकतों को कैंपस नहीं आने देंगे,चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हों, हमारा कैंपस सेक्युलर है।” अब सवाल उठता जिस यूनिवर्सिटी में देश के वर्तमान राष्ट्रपति का विचारधारा के नाम पर विरोध हो उस यूनिवर्सिटी में जिन्ना जैसे देशभंजक की तस्वीर कैसे लगी रह सकती है? अगर इतिहास सहेजने के नाम पर देश-विभाजकों का जयगान होगा तो बेहतर है कि वह इतिहास बदल जाए ताकि वर्तमान बेहतर हो सके।
इसलिए पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को अपने पूर्व के संवैधानिक पदों का लिहाज करते हुए पुराने इतिहार का राग अलापने के बजाए अपने समुदाय का ही बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान का इतिहास सुधारने का प्रयास करना चाहिए। अपने पहले के एक बयान की तरह ही देश का माहौल काल्पनिक रूप से बिगाड़ने का प्रयास करना चाहिए। इस यूनिवर्सिटी के पूर्व उप-कुलपति होने के नाते उन्हें जिन्ना की तस्वीर हटाने के बेहतर रास्ते तलाशने का प्रयास करना चाहिए।
URL: Jinnah portrait row: Hamid Ansari introduced to be communal
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