सतीश चंद्र मिश्रा। निम्नलिखित घटनाक्रम का उल्लेख इसलिए क्योंकि जिस दौर की यह घटना है उस दौर में देश में सेक्युलरिज़्म के सबसे बड़े झंडाबरदारों/मसीहाओं में लालू यादव को भी गिना जाता था। उसी दौर में एमजे अकबर भी देश के सबसे प्रसिद्ध और 100% सेक्युलर पत्रकारों में गिने जाते थे। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य भी बन चुके थे। उस दौर में लालू के साथ कांग्रेस के सम्बन्ध आज ही की भांति “हम बने, तुम बने, एक दूजे के लिए” सरीखे ही थे। लेकिन लालू की करतूत को देश के समक्ष उजागर करने में इस सेक्युलर राजनीतिक भाईचारे को एमजे अकबर ने अपने आड़े नहीं आने दिया था। उस समय देश में वह अकेले ऐसे पत्रकार थे जिनकी ईमानदार पत्रकारिता ने उस खबर को छापा था। जबकि बड़े बड़े दिग्गज सम्पादकों ने उस खबर का कभी जिक्र ही नहीं किया।
घटना 1996 की है। उस समय भोपाल से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका विचार मीमांसा में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के भ्रष्टाचार का सनसनीखेज खुलासा करने वाली विस्फोटक आवरण कथा “बंदर के हाथ में बिहार” शीर्षक से छपी थी। जिस दिन यह पत्रिका पटना पहुंची थी उसी दिन लालू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के पत्रिका और उसके सम्पादक विजय शंकर वाजपेयी के खिलाफ जमकर आग ऊगली थी और उन्हें सबक सिखाने का ऐलान कर दिया था। शाम को उस आवरण कथा में योगदान करनेवाले पत्रिका के विशेष संवाददाता अखिलेश अखिल को गुण्डों ने चाकुओं से गोद दिया था और मरा समझ कर छोड़ गए थे। ईश्वर कृपा से अखिलेश भाई मौत के मुंह मे जाते जाते बच गए थे।
उसी रात लालू ने पत्रिका के सम्पादक वाजपेयी जी को रात करीब एक डेढ़ बजे फोन किया था। स्वयं पर हुए हमले से पूर्व अखिलेश भाई ने वाजपेयी जी को फोन कर के इसका आभास करा दिया था इसलिए उन्होंने फोन टेप करने की व्यवस्था पहले से कर रखी थी। उस रात फोन पर हुई बातचीत में लालू ने धुंआधार गालियों और धमकियों की बौछार विजयशंकर वाजपेयी पर की थी। वाजपेयी जी ने उस रिकॉर्ड हुए वार्तालाप की प्रति को भारत के राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश सहित देश के लगभग सभी प्रमुख अखबारों के मालिकों सम्पादकों के पास भेजा था। लेकिन सिर्फ एशियन एज अखबार ने उस पूरे रिकॉर्डेड वार्तालाप को ज्यों का त्यों छापते हुए वह खबर देश के सामने उजागर की थी। उस समय अखबार के सम्पादक वही एमजे अकबर थे जो आजकल विदेश राज्यमंत्री हैं और जिनके खिलाफ लगभग आधा दर्जन सती सवित्रियां आजकल #Mee_Too नाम का झण्डा-डंडा उठाए घूम रही हैं।
अपने कार्य के प्रति एमजे अकबर की इसी ईमानदारी का परिणाम है कि मई 2014 तक कभी भाजपा का प्राथमिक सदस्य भी नहीं रहे एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक की छवि वाले एमजे अकबर को पार्टी में शामिल कर प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश राज्यमंत्री का महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था।
दरअसल एमजे अकबर देश के उन गिनेचुने पत्रकारों में से एक हैं जिनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान व साख है। एमजे अकबर को पश्चिमी एशिया व खाड़ी देशों के आर्थिक राजनीतिक कूटनीतिक मुद्दों मामलों की गहन जानकारी रखने वाला माना जाता है।
इन देशों में अपने सर्वाधिक गहरे और घनिष्ठ राजनीतिक कूटनीतिक पत्रकारीय संपर्कों सम्बन्धों की समृद्ध पूंजी भी एमजे अकबर की विशेष योग्यता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने लम्बे समय तक अपने आलोचक रहे एमजे अकबर को अपनी सरकार में महत्वपूर्ण स्थान दिया था। पश्चिमी एशिया , खाड़ी देशों से सम्बन्धित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रणनीति/कूटनीति को धरातल पर क्रियान्वित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूत के रूप में पिछले लगभग ढाई वर्षों में एमजे अकबर ने जो कार्य किया है वह अद्वितीय है। इस क्षेत्र में पाकिस्तानी पकड़ और प्रभाव की कमर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तोड़ दी है। इसमें उनके दूत एमजे अकबर की भी उल्लेखनीय भूमिका रही है।
यही कारण है कि पिछले 70 वर्षों में यह पहला अवसर है कि इज़राइल के साथ खुलकर घनिष्ठ सम्बन्धों के प्रदर्शन के बावजूद फिलिस्तीन समेत पश्चिमी एशिया, खाड़ी देशों की भुकृटियां नहीं तनी हैं। एकदूसरे के कट्टर शत्रु ईरान और सऊदी अरब, दोनों से भारत के बहुत मधुर सम्बन्धों पर दोनों देशों को कोई आपत्ति नहीं है। यही कारण है कि एमजे अकबर अब पाकिस्तान की आंखों की भी बहुत बड़ी किरकिरी बन चुके हैं। अतः Me Too के बहाने एमजे अकबर को धराशायी कर देने की मुहिम में पाकिस्तानी स्वार्थ सिद्धि की कोशिश की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
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साभार- सतीश चंद्र मिश्रा के फेसबुक वाल से
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