हिंदू धर्म के अनुयायी स्वयं अपने देवी-देवताओं के प्रति सम्मान का भाव नहीं रखते तो दूसरा क्यों उनके भगवान को सम्मान की नजर से देखेगा? देवी-देवताओं की मूर्तियों को देखा-देखी स्थापित करना और फिर अगले साल उसे घर के बाहर फेंक देना, इनकी आदत बन चुकी है! दिल्ली के द्वारका में राजधानी का अभिजात वर्ग रहता है, जिसके लिए भगवान भी ‘यूज एंड थ्रो’ कल्चर का हिस्सा बनते जा रहे हैं! द्वारका में किसी भी पेड़ के नीचे,किसी सड़क के कोने में भगवान की टूटी-फूटी मूर्तियां बिखड़ी मिल जाती हैं, जो यहां के नवधनाढ़य वर्ग द्वारा फेंकी गई है!
हर साल दिवाली, सरस्वती पूजा, गणेश चतुर्थी में दिखावे के लिए भगवान की मूर्तियों को स्थापित करने वाला यह अभिजात वर्गीय समाज, काम निकलते ही भगवान को भी घर से बाहर का रास्ता दिखा देता है! दिल्ली की यमुना नदी वैसे भी नाला बन चुकी है, इसलिए उसमें पूजा की वस्तुओं और मूर्तियों का विसर्जन न ही हो तो अच्छा है, लेकिन मिट्टी की मूर्तियों को मिट्टी के हवाले करना भी इन्हें अभी नहीं आया है! द्वारका के हर सोसायटी व उसके आसपास इतने सारे पार्क हैं। किसी भी पार्क में खड्डा खोदकर टूटी और एक साल पुरानी मूर्तियों को ससम्मान विसर्जित किया जा सकता है, लेकिन यहां के लोगों को इसके लिए भी समय नहीं है!
घर से गाड़ी से निकलते हुए, जहां कूड़े-कचरे का ढेर देखा, पेड़ देखा, फुटपाथ देखा, वहीं अपने घर की मूर्तियों को फेंक दिया! इतना भी ध्यान नहीं रखा कि उसी मूर्ति को भगवान मानकर कुछ दिन पूर्व तक उनकी पूजा की है!
हिंदू धर्म द्वैत से अद्वैत की यात्रा करना सिखाता है! लेकिन पढ़े-लिखे हिंदुओं को देखकर लगता है कि इन्हें ईश्वर से प्रेम तो दूर, सही मायने में भगवान भी केवल अपनी सुख-सुविधाओं की पूर्ति करने के लिए ही चाहिए! मां-बाप से लेकर बच्चे तक भोगवादी संस्क़ति में डूबे हैं, इसलिए भगवान को भी भोगवाद की भेंट ही चढ़ा रहे हैं!
जब तक रंग-बिरंगी मूर्तियां ड्राइंग रूम में बने पूजा गृह की शोभा बढ़ा रहे हैं, वह भगवान उनके घर में जगह पाते हैं और ज्योंही उन मूर्तियों में कोई टूट-फूट होती है, रंग की चटक फीकी पड़ती है या नई मूर्तियां आती है, पुरानी मूर्तियों को उठाकर बाहर फेंक दिया जाता है!
‘द्वारका धार्मिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था’ (Dwarka Religious Social & Cultural Association) ने यह बीड़ा उठाया है कि वह इन मूर्तियों को इकट्ठे कर सम्मानपूर्वक उनका पूजा-पाठ कराती रहेगी। द्वारका के जिन निवासियों के घर की शोभा पुरानी, बेरंग और टूटी-फूटी भगवान की मूर्तियों के कारण नष्ट हो रही हैं, वो कृपया इस संस्था से Mobile no- 9868079570 पर संपर्क कर अपने घर की मूर्तियां उन्हें सौंप दें! उन्हें इसके एवज में एक रुपए भी नहीं देना है, बस जिस भगवान की मूर्ति को वे फुटपाथ पर फेंक रहे हैं, उन्हें वह केवल इस संस्था के हवाले कर दें! रुपए-पैसे की चकाचौंध में अपनी संस्कृति को भूल चुकी यह नवधनाढ़य पीढ़ी कम से कम इतना तो कर ही सकती है!
Web Title: murti restore by Dwarka Religious Social & Cultural Association
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