अनुज अग्रवाल। कोंग्रेस के गिरते ग्राफ़ व बढ़ती गुटबाज़ी के कारण जब समूह -23 गाँधी परिवार के इस्तीफ़े माँगने लगा तो गाँधी परिवार ने बड़ी चतुराई से छत्तीसगढ़, राजस्थान व पंजाब में कोंग्रेसी धड़ों को ही आपस में भिड़ा दिया और बड़ी सफ़ाई से अपनी गद्दी और इज़्ज़त बचाने में लग गया। अब सारे कोंग्रेसी और मीडिया विभिन्न राज्यों में अलग अलग धड़ों की गुटबाज़ी में उलझे हैं और “परिवार” अपनी मनपसंद भूमिका यानि पंच बन पत्ते फेंटने में व्यस्त है और पुनः केंद्रीय भूमिका में आ चूका है।
गाँधी परिवार ने बड़े आराम से पंजाब में ज़मीनी नेता अमरिंदर सिंह से इस्तीफ़ा ले लिए और पाकिस्तानपरस्त नवजोत सिंह सिद्धू को बढ़त दे दी। होना यह चाहिए था कि सभी कोंग्रेसी मिलकर गाँधी परिवार से छुटकारा पाते मगर हो उल्टा रहा है। अब इस खेल में पार्टी निबटे तो निबटे हाँ कुछ समय के लिए “परिवार” की इज़्ज़त ज़रूर बच गयी है।
संघर्ष के लोकतांत्रिक मार्ग से सत्ता में आयी भाजपा की पतवार थामे मोदी-शाह की जोड़ी भी कोविड की दूसरी लहर के बाद आयी लोकप्रियता की कमी का ठीकरा “ परिवार” शैली में ही केंद्रीय मंत्रियों व राज्यों के मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों के सर पर फोड़ रही है। इस क्रम में केंद्रीय मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल किए गए और एक एक कर भाजपा शासित राज्यों में मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं। लोकप्रियता, सर्वे व कार्यशैली के आधार पर जिसका ग्राफ़ गिरता मिला वो नप गया। गुजरात में तो पूरा का पूरा मंत्रिमंडल ही नप गया।
अनोखी बात यह है कि केंद्र हो या राज्य हर जगह नोसिखियो या पूर्व नौकरशाहों को ही पद मिले। अनुभवी व ज़मीनी नेता निपटा दिए गए। हाँ यूपी में योगी आदित्यनाथ झाँसे में नहीं आए और केड़े पड़ गए तो चुनावों तक मजबूरी में गले लटका लिए गए हैं।हास्यास्पद रूप से पार्टी में भी व्यापक रूप से पद बाँटे जा रहे हैं। एक एक ज़िले में पाँच पाँच सौ पदाधिकारी। इस उठापटक से जहां चमचों- चापलूसों की नयी फ़ौज खड़ी हो गयी वही मोदी-शाह के नेतृत्व व कार्यशैली पर उँगली उठनी बंद हो गयी।
जिस प्रकार कोंग्रेस राज में में केंद्र हो या राज्य सभी मंत्रालय व सरकारें गाँधी परिवार के घर से संचालित होती थीं भाजपा राज में पीएमओ व नीति आयोग से ही संचालित हो रहीं हैं। पहले नौकरशाह दस जनपथ जाकर ब्रीफ़िंग लेते थे अब मोदी राज में मोदी जी सीधे सचिवों की मीटिंग लेकर ब्रीफ़िंग दे देते हैं। सभी राजनीतिक पदों व संविधानिक पदो पर भी भर्ती की शैली गाँधी परिवार व मोदी-शाह की सरकार में एक ही प्रकार से हो रही है। यानि लगभग एक ही शैली में कोंग्रेस व भाजपा सत्ता चला रहे हैं।
दिलचस्प बात यह भी है कि दस जनपथ के बहुत सारे दरबारी अब मोदी-शाह के दरबारी बन चुके हैं। पहले वे सेकूलरपंथी बयानबाज़ी करते थे ,अब भगवापंथी करते हैं। जैसे कोंग्रेस के शासन में सच्चे कोंग्रेसी हाशिए पर चले गए थे वैसे ही भाजपा के शासन में सच्चे संघी बाप दिए गए हैं। आश्चर्यजनक रूप से संघ ने तो अपना दर्शन तक बदल डाला।
संघ परिवार के अलावा सभी अन्य हिंदू संगठन भी धीरे धीरे निबटाए जा रहे हैं और संघ परिवार के उग्र हिंदुत्व की धार भी मंद हो गयी हैं और अब नरम हिंदुत्व सभी राजनीतिक दलो के मुख्य अजेंडे में आ चुका है।मोदी-शाह के नए भारत में “राष्ट्रवाद व आत्मनिर्भर भारत “ एक नए रूप में उभर रहा है और ज़मीनी स्तर पर काम भी बहुत हो रहे हैं, हाँ मोदी-शाह के अतिरिक्त संघ परिवार का ज़मीनी नेतृत्व अवश्य ज़मीन खोता जा रहा है। इसके अच्छे – बुरे परिणाम काल ही बताएगा।
साभार what’s aap