दुश्मन की भाॅंति देश को लूटा
ई वी एम तोते का पिंजरा , प्राण बसे हैं राक्षस के ;
ये पिंजरा गंगा में फेंको , उड़े पखेरू राक्षस के ।
इस राक्षस से पिंड छुड़ाओ , इसकी लंका में आग लगाओ ;
धर्मद्रोह व देशद्रोह को , पूरी तरह से नष्ट कराओ ।
सरकारें ये कर सकती हैं , सो अच्छी-सरकार बनाओ ;
ई वी एम में लगे पलीता , अब चुनाव निष्पक्ष कराओ ।
कदाचरण वाले अधिकारी , सब जेलों में जायेंगे ;
उनके आका अब्बासी – हिंदू , वे भी न बच पायेंगे ।
दुश्मन की भाॅंति देश को लूटा , जैसे गौरी – गजनी हो ;
औलादें उनकी नाजायज , शर्मिंदा उनकी जननी हो ।
लगता जैसे देश पे कब्जा , हुआ देश के दुश्मन का ;
पर महामूढ़ जितने हिंदू हैं , लगता उनको उनके मन का ।
जल्दी ही पछतायेंगे ये , शीघ्र समय आने वाला है ;
जान – माल – सम्मान लुटेगा , गला भी कटने वाला है ।
संभल सको तोअभी संभल लो,स्वार्थ लोभ कायरता छोड़ो ;
सबसे बड़ी कमी कायरता , सारा भय हिंदू ! छोड़ो ।
क्या डरने वाला नहीं मरेगा ? सबसे पहले वही मरेगा ;
दुश्मन को जो गले लगाये , पीठ पे खंजर वही खायेगा ।
अब्बासी-हिंदू के हाथ में खंजर, हिंदू की पीठ पे मार रहा ;
महामूर्ख कितना है हिंदू ? अब भी उसको पाल रहा ।
जाने कितने मंदिर तोड़े ? तीर्थ-स्थल को नष्ट कर दिया ;
शास्त्रविरुद्ध की प्राणप्रतिष्ठा, राम-मंदिर तक भ्रष्ट कर दिया ।
पर हिंदू ! कितना महामूढ़ है ? “राम-मंदिर” पर नाच रहा है ;
सुप्रीम-कोर्ट ने बनवाया है , अब्बासी-हिंदू तो नोंच रहा है ।
लाशों को जैसे गिद्ध नोचते , हिंदू को ये नोंच रहा है ;
जागो हिंदू अब तो जागो, क्यों अपना कातिल खोज रहा है ?
तुझको थोड़ा सा लालच देकर , तेरा सब कुछ मिटवा देगा ;
तेरा धर्म मिटा देगा , व गजवायेहिंद करा देगा ।
अब भी हिंदू ! न समझा तो , समझो मति बौराई है ;
विनाश काले – विपरीत बुद्धि , घड़ी मौत की आई है ।
जिसके सर पर काल खड़ा हो , वो कैसे बच सकता है ?
केवल “विष्णु-कृपा” से हिंदू , निश्चित ही बच सकता है ।
हिंदू ! ”विष्णु-कृपा” को पाओ , “धर्म-सनातन” में आओ ;
“एकम् सनातन भारत” दल की , सर्वोत्तम सरकार बनाओ ।
अपनी ओर से प्रस्तावित कर , इस दल में प्रत्याशी लाओ ;
पूरे भारत से चुनाव जीतकर , हिंदू ! “ राम-राज्य” पाओ ।