विपुल रेगे। अक्षय कुमार की फिल्म पृथ्वीराज का प्रोमो सोमवार को रिलीज हो गया। प्रोमो रिलीज होने के बाद दर्शकों की प्रतिक्रियाएं खिलाड़ी कुमार को ध्यान से सुननी चाहिए। प्रोमो देखकर अधिकांश दर्शक निराश हुए हैं। अक्षय कुमार की गिरती लोकप्रियता का कारण ओवर एक्सपोजर है। ये ओवर एक्सपोजर खिलाड़ी कुमार की मार्केट वेल्यू को छलनी-छलनी कर चुका है। डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म 4 जून को प्रदर्शित होने जा रही है।
इन दिनों टीवी पर आने वाले विज्ञापनों में हर चौथा विज्ञापन नियमित रुप से अक्षय कुमार का होता है। जब लॉकडाउन शुरु हुआ तो फिल्मों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा। नुकसान पूरा करने के लिए खिलाड़ी कुमार ने विज्ञापनों की झड़ी लगा दी। और अब तो वे विमल नामक उत्पाद का विज्ञापन कर अपने इस नए पेशे के चरम शिखर पर दिखाई देते हैं।
जब आप हर दूसरे माह एक पिटी हुई फिल्म देते हैं और विज्ञापनों में अधिक दिखाई देने लगते हैं तो मार्केट वेल्यू पर बुरा असर होता ही है। सन 2019 में अक्षय की मंगल मिशन सफल रही थी। इसके बाद से उनकी सात फिल्मे बुरी तरह पिटी है। 2021 में रोहित शेट्टी की सूर्यवंशी अवश्य हिट हुई थी लेकिन फिर भी अक्षय की इमेज गिरती ही चली गई। पृथ्वीराज के प्रोमो ने फिल्म की पोलपट्टी खोलकर रख दी है।
मुझे नहीं मालूम कि 300 करोड़ की ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कैसे लागत वसूल करेगी और लाभ कमा सकेगी। फिल्म का मुख्य कैरेक्टर ही कमज़ोरी बनता दिखाई देता है। अक्षय कुमार वर्सेटाइल अभिनेता नहीं है। वे आम भूमिकाएं ही कर पाते हैं। उन्होंने अब तक कोई पीरियड फिल्म नहीं की थी। पृथ्वीराज के रुप में उनके सम्मुख एक ऐसी भूमिका थी, जो बहुत सारा होमवर्क मांगती थी। ये भूमिका मेथड एक्टिंग मांगती थी।
मेथड एक्टिंग में कलाकार अपनी भूमिका के प्रति संवेदनशील हो जाता है। वह अपनी भूमिका के लिए भावुक हो जाता है। इसके बाद वह अपने कैरेक्टर में भलीभांति प्रविष्ट हो जाता है। हालाँकि अक्षय कुमार के पास मेथड एक्टिंग का समय ही नहीं है। वे एक वर्ष में छह फ़िल्में और ढेरों विज्ञापन करते हैं। ऐसे में गहराई से अभिनय करना तो संभव ही नहीं है।
अस्सी के दशक की क्लासिक गाँधी में मोहनदास गाँधी का अभिनय करने के लिए बेन किंग्सले ने मेथड एक्टिंग का ही सहारा लिया था। वे गाँधी के किरदार में इतनी अंदर घुस गए कि उन्होंने मांस और शराब को भी कुछ समय के लिए त्याग दिया था। ऐसे ही समर्पण से आप प्रसिद्ध व्यक्तियों का चरित्र परदे पर जीवित कर सकते हैं। और यहाँ तो घोड़े से उतरने के बाद फ़िल्मी पृथ्वीराज मटकते हुए आगे बढ़ता है।
अक्षय एक भी फ्रेम में पृथ्वीराज होने का अहसास नहीं करवाते। वे हर फ्रेम में खिलाड़ी अक्की ही दिखाई देते हैं। उन्होंने न अपनी चाल-ढाल पर काम किया है और न डायलॉग डिलीवरी पर। उनके चेहरे पर राजपूतों वाला शौर्य कहीं से दिखाई नहीं देता। सम्राटों का राजसीपन उनके चेहरे पर नहीं झलकता। फिल्म का खलनायक भी बेअसर है। मोहम्मद गौरी का किरदार मानव विज को दिया गया है।
मानव विज एक अच्छे अभिनेता हैं लेकिन गौरी की क्रूरता को जीवंत कर दें, ऐसे भी नहीं हैं। संजय दत्त की वापसी बेअसर रही है। हालिया रिलीज केजीएफ में संजू अप्रभावी रहे हैं। यशराज फिल्म्स ने पृथ्वीराज पर बड़ा दांव खेला है। 300 करोड़ लगाने के बाद उनको डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जैसा नाम ही मिला। फिल्म निर्देशक के रुप में उनका ट्रेक रिकार्ड कुछ अधिक सराहनीय नहीं रहा है।
पीरियड फिल्म बनाने में आज निर्देशक एस. एस. राजामौली का नाम सबसे ऊपर रखा जाता है। और कुछ नहीं तो कम से कम आदित्य चोपड़ा राजामौली को सलाहकार बना लेते तो बहुत सा डेमेज होने से बच जाता। फिल्मकारों के लिए अब प्रोमो दिखाना कठिन हो चला है। इन दिनों फिल्मों के प्रोमो की भी समीक्षाएं होने लगी है। पृथ्वीराज के प्रोमो की सामूहिक रुप से खिंचाई हो रही है।
प्रोमो की इन समीक्षाओं को यदि यशराज फिल्म्स के सर्वेसर्वा पढ़ रहे हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि इसकी ओपनिंग छप्पर फाड़ के तो नहीं होने जा रही है। एक इंटरव्यू में अक्षय ने कहा कि जब उन्होंने पृथ्वीराज के बारे में पढ़ा तो उन्हें अहसास हुआ कि वे कितने बड़े योद्धा थे, पर इतिहास की किताब में उनके बारे में केवल एक पैरा है। ऐसा लगता है कि पृथ्वीराज पर रिसर्च के नाम पर अक्षय ने भी एक पैरा ही पढ़ा है। यही कारण है कि वे एक भी फ्रेम में पृथ्वीराज का शौर्य दिखा नहीं सके हैं।