अर्चना कुमारी । कथित तौर पर फैक्ट चेक करने के नाम पर अपने ट्वीट के माध्यम से हिंदू समुदाय के खिलाफ आग उगलने वाले और धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपी को पटियाला हाउस अदालत ने जमानत तो दे दी लेकिन अभी उसे जेल में ही रहना पड़ेगा क्योंकि उस पर उत्तर प्रदेश में कई अन्य प्राथमिकी दर्ज है।
सूत्रों का कहना है कि पटियाला हाउस कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने शुक्रवार को मोहम्मद जुबैर को जमानत दी। उस पर अपने ट्वीट के माध्यम से धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के अलावा विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (एफसीआरए) के उल्लंघन का आरोप है। इस बारे में एडिशनल सेशंस जज देवेंद्र कुमार जांगला ने 50,000 रुपए के मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जबकि उसे कोर्ट की अनुमति के बिना देश छोड़कर जाने पर रोक लगा दिया गया ।
इससे पहले अदालत ने 14 जुलाई को उनकी जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। बहस के दौरान उसके वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा था कि जुबैर के जिस ट्वीट को लेकर एफआईआर दर्ज किया गया है वो 1983 में बनी फिल्म ‘किसी से ना कहना’ से ली गई है और उससे पहले 2 जुलाई को दिल्ली में दर्ज एफआईआर के मामले में पटियाला हाउस कोर्ट के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने जुबैर की जमानत याचिका खारिज कर दिया था।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जुबैर को 27 जून को गिरफ्तार किया गया था और उस पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप है। इसी तरह जुबैर के खिलाफ उत्तरप्रदेश के सीतापुर में भी प्राथमिकी दर्ज है जबकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को जुबैर को अगले आदेश तक के लिए अंतरिम जमानत दी थी लेकिन सीतापुर की एफआईआर समेत यूपी में जुबैर के खिलाफ छह एफआईआर दर्ज किए गए हैं और इस परिस्थिति में उसे अभी जेल में ही रहना पड़ेगा।
सूत्रों का दावा है कि मोहम्मद जुबैर को शुक्रवार को यह जमानत दिल्ली में दर्ज एक केस में मिली है लेकिन उनपर अन्य मामले भी दर्ज है, इसलिए फिलहाल वह जेल से बाहर नहीं निकल पाएगा। जानकार बताते हैं कि जब तक सभी एफआईआर क्लब होकर एकसाथ सुनवाई का आदेश नहीं आएगा तब तक संभव है मोहम्मद जुबैर जेल में ही रहेगा