धीरे-धीरे यह परत खुलता जा रहा है कि लश्कर की आतंकी इशरत जहां को मुस्लिम वोट बैंक के लिए कांग्रेस संचालित पूर्व की यूपीए सरकार ने मासूम मुस्ल्मि युवती के रूप में पेश किया। इसमें यूपीए की पूरी मदद वामपंथी मीडिया हाउस और बुद्धिजीवियों ने की, खासकर NDTV ने बढ्-चढ् कर इसरत को मासूम मुस्लिम युवती के रूप में गढ़ने का प्रयास किया! पूर्व यूपीए सरकार में गृह सचिव रहे जी.के पिल्लई एवं गृहमंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी रहे मणि ने सीधे तैार पर इसके लिए पूर्व गृहमंत्री पी.चिदंबरम का नाम लिया है कि उन्होंने अदालत में दायर उस शपथ पत्र को बदलवा दिया,
जिसमें इशरत जहां के लश्कर आतंकी होने की बात कही गई थी!
दूसरी तरफ एक RTI से पता चला है कि तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने उस हलफनामे पर दस्तखत किया था, जिसमें इशरत को लश्कर का आतंकी बताया गया था, लेकिन दो माह बाद ही एक दूसरा हलफनामा देकर कहा गया कि इशरत के आतंकी होने का कोई सबूत नहीं है!
आरटीआई में इशरत को आतंकी बताने वाले चिदंबरम का दस्तखत किया वह हलफनामा बाहर आया है। दो महीने में ऐसा क्या हुआ कि चिदंबरम को आतंकी इशरत को मासूम इशरत कहना पड़ा?
यहां यह जानना भी जरूरी है कि जिस एनडीटीवी ने इशरत को सबसे अधिक मासूम प्रचारित किया, उस पर हवाला के जरिए पी. चिदंबरम के 5000 करोड़ रुपए काले धन को सफेद करने का आरोप है!
इशरत को लेकर पूर्व होम सेक्रेटरी रहे जीके पिल्लई व मणि का खुलासा
यूपीए सरकार में होम सेक्रेटरी रहे जीके पिल्लई ने आरोप लगाया कि पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने उन्हें दरकिनार कर इशरत जहां केस का एफिडेविट बदलवा लिया था। फिर होम मिनिस्ट्री के एक पूर्व अफसर आरवीएस मणि सामने आए। उन्होंने दावा किया कि एफिडेविट बदलने के लिए उन्हें सिगरेट से दागा गया। उनकी हालत देख मां की तबीयत बिगड़ गई और बाद में उनकी मौत हो गई। कांग्रेस ने मणि के दावों पर सवाल उठाए हैं।
‘टाइम्स नाउ’ टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में होम मिनिस्ट्री में अंडर सेक्रेटरी रहे मणि ने कई खुलासे किए हैं। मणि ने कहा, “इशरत और उसके साथियों को आतंकी न बताने का दबाव डाला गया था। मुझसे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए एफिडेविट को बदलने के लिए कहा गया। मुझे रबर स्टैम्प बनाने की कोशिश की गई। इशरत मामले में सबूतों को गढ़ने को कहा गया। एसआईटी चीफ सतीश वर्मा ने मुझे बहुत टॉर्चर किया। वर्मा ने मुझे सिगरेट से दागा। सीबीआई अफसर मेरा पीछा करते रहते थे।”
मणि ने कहा, “मुझे इतना परेशान किया गया कि फैमिली भी दहशत में आ गई। मेरी मां बीमार थीं। मुझे परेशान देखकर उनकी सेहत और खराब हो गई। इसी वजह से जनवरी 2014 में उनकी मौत हो गई।”
वहीं जी.के पिल्लई ने कहा, “इशरत जहां एनकाउंटर से जुड़े एफिडेविट में तब होम मिनिस्टर रहे चिदंबरम ने उन्हें दरकिनार करते हुए खुद बदलाव करवाया था। चिदंबरम ने आईबी में मेरे जूनियर अफसरों को कॉल किया और एफिडेविट को पूरी तरह बदल दिया।”
पिल्लई के अनुसार, “चिदंबरम खुद बोल कर नया एफिडेविट लिखवा रहे थे। इसलिए किसी ने विरोध नहीं किया। चिदंबरम को इस मामले में एफिडेविट देने के लिए आईबी और होम सेक्रेटरी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। इशरत जहां मामले में एफिडेविट पॉलिटिकल वजहों से बदला गया था।”
इशरत के आतंकी होने की जानकारी एसआईटी से छुपाई गई
दरअसल यूपीए सरकार के वक्त एनआईए ने मुंबई हमलों के आरोपी डेविड हेडली से 2010 में शिकागो में पूछताछ की थी। तब हेडली ने एनआईए से इशरत जहां के बारे में साफ कहा था कि वह लश्कर की आतंकी थी। लेकिन हेडली से पूछताछ की जानकारी यूपीए सरकार ने एसआईटी को नहीं दी।इशरत के मामले की जांच उस वक्त गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर बनी एसआईटी कर रही थी।
गुजरात एसआईटी ने जब एनआईए से हेडली के बयान के बारे में जानकारी मांगी तो एनआईए ने इसे देने से इनकार कर दिया। 5 मई 2011 को गुजरात एसआईटी के चीफ करनाल सिंह को लिखे लेटर में एनआईए ने कहा- “हेडली का इशरत के बारे में बयान कोर्ट में बतौर सबूत नहीं माना जाएगा। इसलिए उसके बयान से आपकी जांच का मकसद पूरा नहीं होगा।”
ज्ञात हो कि 2010 में और पिछले महीने फरवरी 2016 में भी शिकागो से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुंबई की स्पेशल कोर्ट में गवाही के दौरान भी डेविड कोलमैन हेडली ने कहा कि इशरत जहां लश्कर की आत्मघाती दस्ते की सदस्य थी।
यूपीए सरकार ने आई.बी के विरुद्व किया, सी.बी.आई का इस्तेमाल- आईबी के पूर्व अधिकारी का खुलासा
वर्ष 2004 में हुए इशरत जहां मुठभेड़ के मामले में 3 जुलाई 2013 को सीबीआई ने गुजरात पुलिस के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया था ताकि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके। सीबीआई जांच में जब यह पता चला कि गुजरात पुलिस को लश्कर-ए-तोइबा की आतंकी और मानव बम इशरत जहां के गुजरात में घुसने की सूचना इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने दी थी, तो यूपीए सरकार ने आईबी को ही फंसाने का खेल रच दिया। लोकसभा चुनाव- 2014 में उभरते राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नरेंद्र मोदी को ठिकाने लगाने के लिए यूपीए सरकार ने देश की सुरक्षा को दांव पर लगाया और जांच एजेंसी आईबी को भी इसमें घसीट लिया।
नरेंद्र मोदी सरकार को किसी भी तरह से फांसने के लिए यूपीए सरकार के निर्देश पर उसके’तोता’ सीबीआई ने आईबी के स्पेशल निदेशक राजेंद्र कुमार के खिलाफ पूरक चार्जशीट दाखिल करने की योजना पर काम किया। विरोध स्वरूप आईबी निदेशालय ने केंद्र सरकार के समक्ष अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसे दरकिनार कर दिया था।
अब सेवानिवृत्ति के बाद आईबी के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर राजेंद्र कुमार ने भी इसका खुलासा किया है। आईबी के पूर्व स्पेशल डायरेक्टर राजेंद्र कुमार ने कहा है कि “यूपीए सरकार को इशरत के लश्कर कनेक्शन की पूरी जानकारी थी। लेकिन मुझे पद का लालच देकर सरकार ने खुफिया रिपोर्ट दबाने की कोशिश की।”
राजेंद्र कुमार ने बताया कि “आईबी का काम पुलिस को इनपुट देना है। हमने जो भी सूचनाएं जुटाई थी सब पुलिस को दे दी थी। मुठभेड़ से हमारा कोई लेना-देना नहीं था। मैंने तब लिखा था कि वे लोग गुजरात सहित भारत के कई हिस्सों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं।”
राजेंद्र कुमार ने बताया कि “उन्होंने एक हलफनामा भी दिया था, जिस पर मुकेश मित्तल के हस्ताक्षर थे. लेकिन यह हलफनामा सुधारा गया और इसमें कुछ संशोधन कर दूसरा हलफनामा दिया गया। दो हलफनामों पर पी. चिदंबरम ने हस्ताक्षर किए। इसमें साजिश है। पूरे सिस्टम का गलत इस्तेमाल किया गया था।”
राजेंद्र कुमार ने सवाल उठाया कि “चिदंबरम को अप्रूवर किसने बनाया? यह बताता है कि इसमें वह सब लिखा गया, जो वे चाहते थे। तब के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे नहीं चाहते थे कि इसमें उनका नाम आए। हर कोई जानता था कि यह कोई एनकाउंटर नहीं, बल्कि एंटी टेररिस्ट काउंटर है।”
यूपीए सरकार ने इशरत को पहले आतंकी ठहराया, लेकिन नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए बाद में अदालत में पलट गई
6 अगस्त 2009 में अपने पहले हलफनामे में गृह मंत्रालय ने इशरत और उसके साथियों को लश्कर आतंकी बताते हुए मुठभेड़ की सीबीआई जांच का विरोध किया था, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम के दबाव में दो महीने के भीतर ही हलफनामा बदल दिया गया था। गृहमंत्री चिदंबरम के दबाव में इसके बाद गृह मंत्रालय ने 30 सितंबर 2009 में गुजरात हाई कोर्ट को सौंपे अपने दूसरे हलफनामे में इशरत और उसके साथियों के आतंकी होने के पुख्ता सुबूत नहीं होने का दावा किया था। इसी के बाद अदालत ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
फिदायीन इशरत जहां को ‘संत’ बनाने की किस तरह से की गई कवायद
नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए यूपीए सरकार,कांग्रेस पार्टी,पेड मीडिया,सरकारी व अमेरिकी-अरब के फंड पर पलने वाले पालतू एनजीओ और अपने दिमाग को बेचकर पैसा कमाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों लिए फिदायीन यानी आत्मघाती मानव बम इशरत जहां आज ‘संत’ बन चुकी है! इशरत जहां पूरे मामले पर क्रमबद्ध तरीके से नजर डालते हैं। खुद ही पता चल जाएगा इशरत क्या थी और मोदी विरोधी की चाल क्या है…
1) गुजरात पुलिस के क्राइम ब्रांच ने 15 जून 2004 को एक मुठभेड़ में चार लोगों को मार गिराया था, जिनके नाम हैं- जीशन जौहर उर्फ अब्दुल गनी, अहमद अली उर्फ सलीम, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्रनेश कुमार पिल्लई और इशरत जहां। आरोप है कि गुजरात पुलिस ने इन चारों को फर्जी मुठभेड़ में मारा था। वहीं गुजरात पुलिस का पक्ष था कि उन्हें आईबी से यह सूचना मिली थी कि ये चारों लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हैं और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इसके अलावा ये लोग गुजरात में जगह-जगह आतंकी हमले को अंजाम देना चाहते थे।
2) बाद में मारे गए व्यक्तियों में दो- जीशन जौहर व अहमद अली की पहचान पाकिस्तानी नागरिक के रूप में हुई।
3) जीशन जौहर पाक अधिकृत कश्मीर से जम्मू-कश्मीर में घुसा था। वहीं, अमजद अली को लश्कर-ए-तैयबा ने गुजरात व महाराष्ट्र में आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए सीधे पाकिस्तान से भारत के बॉर्डर में भेजा था।
4) तीसरा व्यक्ति जावेद उर्फ पिल्लई दुबई गया था, जहां लश्कर के प्रभाव में आकर उसने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था और वह मुसलमान बन गया था।
5) लश्कर के इशारे पर जावेद व इशरत पति-पत्नी बनकर इत्र कारोबारी के रूप में भारत के अंदर भ्रमण करते थे ताकि किसी को उन पर शक न हो। दोनों ने साथ-साथ अहमदाबाद, लखनऊ व फैजाबाद जा कर महत्वपूर्ण स्थलों की रेकी की थी।
6) इशरत जहां मामले में केंद्र सरकार का दोगलापन: जो कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार इशरत जहां को ‘संत इशरत’ साबित करने के लिए उसके फर्जी मुठभेड़ की थ्योरी गढ़ रही है, उसी केंद्र सरकार ने गुजरात हाईकोर्ट में यह हलफनामा दाखिल कर कहा था कि जावेद व इशरत आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य हैं।
6 अगस्त 2009 में अपने पहले हलफनामे में गृह मंत्रालय ने इशरत और उसके साथियों को लश्कर आतंकी बताते हुए मुठभेड़ की सीबीआई जांच का विरोध किया था, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम के दबाव में दो महीने के भीतर ही हलफनामा बदल दिया गया था।
गृहमंत्री चिदंबरम के दबाव में इसके बाद गृह मंत्रालय ने 30 सितंबर 2009 में गुजरात हाई कोर्ट को सौंपे अपने दूसरे हलफनामे में इशरत और उसके साथियों के आतंकी होने के पुख्ता सुबूत नहीं होने का दावा किया था। इसी के बाद अदालत ने इसकी सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
7) 15 जून 2004 को इशरत सहित मुठभेड़ में चारों आतंकी मारे गए थे। उसके अगले ही दिन पाकिस्तान के लाहौर से प्रकाशित लश्कर-ए-तैयबा के मुख पत्र ‘ गजवा टाइम्स’ ने मारे गए आतंकियों को शहीद करार देते हुए लिखा था कि भारतीय पुलिस ने लश्कर के चार सदस्यों को मार दिया। इसमें इशरत जहां का नाम भी शामिल था।
8) 24/11 को मुंबई हमले के मास्टर माइंड हेविड हेडली से पूछताछ के दौरान अमेरिका के एफबीआई को जो सूचना मिली थी, उसने उसे भारत सरकार से साझा किया था। अमेरिका द्वारा भारत सरकार को भेजे गए औपचारिक पत्र में लिखा था कि ‘ इशरत जहां आत्मघाती दस्ते की महिला सदस्य थी, जिसे लश्कर ने भर्ती किया था।’ एफबीआई ने उस पत्र में लिखा था कि इस दस्ते की योजना गुजरात के सोमनाथ व अक्षरधाम मंदिर व महाराष्ट्र के सिद्धि विनायक मंदिर पर हमला करने की थी।
9) आज आईबी यानी खुफिया विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार को सीबीआई गिरफ्तार करने में जुटी है। सीबीआई का तर्क है कि राजेंद्र कुमार ने गलत सूचना देकर इशरत को मरवाया। यह भी आरोप है कि वह गुजरात पुलिस की कस्टडी में मौजूद इशरत को देखने भी गए थे और मुठभेड़ की सारी साजिश को अंजाम दिया था। जबकि सच यह है कि आईबी केवल सूचनाओं को मॉनिटरिंग करने और उन्हें संबद्ध पक्ष को देने वाली एजेंसी है न कि कार्रवाई करने वाली एजेंसी। इसलिए आईबी के अधिकारी द्वारा किसी को मारने का आदेश देने की बात ही गलत है।
लेकिन कुछ भी कर सकने में सक्षम कांग्रेस पार्टी व उसकी सरकार इशरत जहां के मुठभेड़ को गलत साबित करने के लिए आईबी के विरुद्ध सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है जबकि दोनों ही केंद्रीय एजेंसियां हैं।
10) लोगों को शायद पता नहीं है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाली कांग्रेस व अमेरिका-अरब फंडेड एनजीओ जमात के कहने पर इशरत की मां शमीमा कौसर ने केंद्र सरकार से यह मांग की थी कि इस मामले की जांच सीबीआई के अधिकारी सतीश वर्मा को दिया जाए। लश्कर के एक आत्मघाती महिला की मां के कहने पर किसी अधिकारी को पूरे मामले का जांच अधिकारी बनाया जाना ही केंद्र सरकार के प्रति संदेह पैदा करता है।
11) आईबी ने सीबीआई निदेशक को कहा है कि सीबीआई अधिकारी सतीश वर्मा व आईबी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार के बीच पुराने समय में बेहद कटु संबंध थे। इसकी सूचना केंद्र सरकार को भी थी, लेकिन सरकार ने एक आरोपी आतंकी की मां की मांग पर अपनी के दो एजेंसियों की साख पर बट्टा लगा दिया।
12) हर तरफ फजीहत होता देख और आईबी के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने उस जांच अधिकारी सतीश वर्मा को इस मामले की जांच से हटा दिया है, लेकिन तब तक आईबी व सीबीआई की फजीहत हो चुकी थी।
13) जिस आईबी के निदेशक का नाम इससे पहले कोई नहीं जानता था, आज एकमुश्त मुसलमान वोट के लिए यूपीए को दोबारा सत्ता में लाने की कांग्रेसी महत्वाकांक्षा में उनकी तस्वीर भी जनता के समक्ष आ चुकी है। इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने ‘सोनिया जी के कारण ही एक मुसलमान को आईबी का निदेशक बनाया गया है’- जैसा घोर सांप्रदायिक बयान देकर आईबी निदेशक की पहचान पहले ही उजागर कर चुके हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर इस देश के राजनीतिज्ञ कब तक मुसलमानों को इंसान से अधिक एक वोट बैंक मानकर चलते रहेंगे? कब तक चरमपंथी मुसलमान राष्ट्र राज्य से अधिक इस्लामी राज्य की स्थापना के लिए निर्दोष लोगों को आतंक का शिकार बनाते रहेंगे? इस्लामी चरमपंथियों को ‘संत’ साबित करने की कोशिश आखिर कब तक चलती रहेगी?
कब तक मानवाधिकार के नाम पर मीडिया-एनजीओ-बुद्धिजीवियों की जमात आतंकियों के पक्ष में और पुलिस-सेना के विरोध में खड़ी होती रहेगी? और कब तक इस देश के नागरिक इशरत जहां जैसों की पृष्ठभूमि को जानकर भी उसके नाम पर चलने वाली राजनीति को खामोश रहकर बर्दाश्त करते रहेंगे?….आखिर कब तक ये सब चलता रहेगा?….कब तक….?
साभार संदर्भ: इशरत जहां से जुड़ी संपूर्ण जानकारी संदीप देव की पुस्तक ‘निशाने पर नरेंद्र मोदी: साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ से