प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कुछ दिनों से आर्थिक क्षेत्र के मामले में जिस प्रकार के कदम उठाए हैं उससे यह साबित होता है कि उनमें सिर्फ राजनीतिक समझ ही नहीं, बल्कि आर्थिक समझ भी काफी है। तभी तो उन्होंने इनसॉलवेंसी और बैंक्रप्टसी कोड (IBC) में संशोधन कर उन कंपनियों में घबड़ाहट फैला दी है जो बैंकों से कर्ज लेकर घर बैठ गई थी। प्रधानमंत्री मोदी के ही कदम का कमाल है कि पिछले कुछ ही दिनों में 2,100 कंपनियां बैंकों के बकाए 83 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करने पर मजबूर हुई हैं। इससे जहां बैंकों की आर्थिक स्थित सुदृढ़ हुई, वहीं कर्ज लेकर बैठी कंपनियों को भी कर्ज चुकाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
मुख्य बिंदु:
* केंद्र सरकार ने उठाया इनसॉलवेंसी और बैंक्रप्टसी कोड में संशोधन करने जैसा क्रांतिकारी कदम
* आईबीसी के नए कानून से कंपनियों पर बैंकों के बकाए कर्ज चुकाने पर बढ़ने लगा है दबाव
दरअसल आईबीसी नियम में जब से संशोधन हुआ है तब से उन कंपनियों की चैन उड़ गई हैं, जो बैंकों से कर्ज लेकर घर बैठ गई थी। आईबीसी के नए नियम के मुताबिक कर्ज लेकर खुद को दिवालिया घोषित करने वाली कंपनियों के प्रमोटर उस कंपनी की नन परफॉर्मिंग एसेट्स की निलामी में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। दूसरा यह कि इस कानून के बाद कंपनियों के प्रमोटरों को यह भी भय सताने लगा कि कहीं उनकी अपनी ही कंपनियों पर नियंत्र न खत्म हो जाए। इसलिए नए नियम के तहत जब तक कोई कार्रवाई की जाए उससे पहले ही डिफाल्ट घोषित 21 हजार कंपनियों ने बैंकों के बकाए 83 हजार करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया।
मालूम हो कि देश में कई ऐसी कंपनियां हैं जो बैंकों से कर्ज लेकर शुरू तो हुई थी लेकिन बाद में दिवालिया घोषित हो गई। ये कंपनियां पहले की सरकार की तरह इस सरकार में निश्चिंत थी कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। जब कोई कार्रवाई होगी तो वह फिर अपनी ही कंपनियों की ऊंची बोली लगाकर खरीद लेगें। इससे उनकी कंपनी किसी दूसरे के हाथ जाने से बच जाएगी बल्कि उसकी कीमत भी बढ़ जाएगी। लेकिन मोदी सरकार ने नए कानून लाकर उसकी पूरी बाजी ही पलट दी।

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने अभी तक जो आंकड़े एकत्रित किए हैं उनके मुताबिक 2,100 कंपनियों ने अपना बकाया कर्ज चुका दिया है। इनमें से अधिकांश कंपनियों ने तो आईबीसी कानून में संशोधन होने के बाद ही चुकता किया है। मालूम हो कि 90 दिनों तक बकाया कर्ज नहीं चुकाने पर उस कर्ज को एनपीए वर्ग में रख दिया जता है। इसके तहत कंपनियों से बकाया कर्ज की वसूली लगभग असंभव सी हो गई थी। लेकिन मोदी के इस कदम के बाद माहौल ही बदल गया है। बैंकों को लूटकर या उससे बेइमानी की व्यावसायिक संस्कृति ही बदल गई है। अब तो कोई बैंक का कर्ज डकारने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। इसके लिए PM Narendra Modi की जरूर प्रशंसा की जानी चाहिए।
लेकिन हमारे देश में कभी गंगा सीधी नहीं बहती, इसलिए आर्थिक सुधार के इस बेहतरीन कदम उठाने पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वालों की कमी नहीं हैं। ऐसी कई कंपनियां और उनके प्रमोटर हैं जो इस कदम के लिए मोदी की आलोचना ही करते हैं। एस्सार की रुईया हो या भूषण ग्रुप के सिंगला हों या जयप्रकाश ग्रुप के गौड़ ही क्यों न हो इस मामले में सभी मोदी की आलोचना ही कर रहे हैं। इस कदम के कारण ही उपरोक्त धनकुबेरों को अपनी कंपनी को बचाने के लिए बैंकों के बकाए चुकाने पड़े हैं। इनको मिर्ची लगना तो समझ में आता है, लेकिन कारपोरेट मीडिया को जिस तरह से इस कदम से मिर्ची लगी है, वह भी गौर करने लायक बात है। स्पष्ट है कि मीडिया एक व्यवसाय है और इनके संचालिक व्यवसायियों पर भी जनता का धन डकारने के कारण गाज गिर रही है।
मोदी सरकार के इस कदम की असली सफलता डिफाल्टरों में भय कायम करना और उन पर बकाया कर्ज चुकाने का दबाव है। आईबीसी के कारण ही अब लेन-देन की संस्कृति बदल गई है।
URL: banks recovered dues of Rs 83,000 crore from 2100 companies
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