चीन की जो युद्ध नीतियां हैं, उसके जो वांरफेयर टैक्टिक्स हैं, उनमे साइबर वांरफीयर भी शामिल है. यानि साइबर टेक्नांलजी के माध्यम से चीन दूसरे देशों के सैटिलाइट्स और कम्यूनिकेशन सिस्टम्स पर प्रहार कर उन्हे नष्ट करने की कोशिश करता है. अमरीका के चाइना एरोस्पेस स्टडीज़ इंस्टीट्यूट की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में चीन ने भारतीय कम्यूनिकेशन सैटिलाइट पर साइबर हमला किया था.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठ्न ( ISRO ) ने इन साइबर हमलों की पुष्टि की है. हालांकि उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन हमलों से उसके कम्यूनिकेशन सैटिलाइट पर कुछ भी असर नहीं पड़ा.
रिपोर्ट के अनुसार चीन के पास ऐसी नवीनतम काउंटर स्पेस टेक्नांलजीज़ हैं जिनके माध्यम से वह अंतरिक्ष में घूमते किसी भी सैटिलाइट पर हमला बोल सकता है. हालांकि भारत ने भी वर्ष 2019 में एक ऐसी विशिष्ट मिसाइल टेक्नांलजी का नमूना दिया था जिससे दुश्मनों द्वारा अंतरिक्ष में उतारे गये फर्ज़ी सैटिलाइट तुरंत नष्ट हो सकें.
हालांकि स्पेस वांर या फिर अंतरिक्ष युद्ध से जुड़े डृश्य अभी तक हमने सिर्फ स्टांर वार्ज़ सरीखी साइंस फिक्शन फिल्मों में देखे हैं. इतिहास में अभी तक तो दो देशों के बीच कोई इस प्रकार का अंतरिक्ष युद्ध हुआ नहीं. लेकिन जिस प्रकार से साइबर टेक्नांलजी के क्षेत्र में तेज़ी से विकास हो रहा है, अंतरिक्ष युद्ध की संभावना को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता.
जैसा कि कई बुद्धिजीवियों ने कहा भी है कि यह युग हथियारों और गोले बारूदों से युद्ध का युग नही बल्कि इंफांरमेशन वांरफेयर का युग है. यानि नवीनतम टेक्नांलजीज़ और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से किस प्रकार से दुश्मन देशों के कम्यूनिकेशन तंत्र को ध्वस्त किया जाये. और आज के समय्य में सैटिलाइट्स किसी भी देश की लाइफलाइन हैं. रेलगाड़ियों के चलने से लेकर हवाई जहाज़ की उड़ानें और सारा टेलीकम्यूनिकेशन नेट्वर्क , सभ कुछ इन्ही पर निर्भर करता है.
इसीलिये भारत को साइबर वांरफेयर या साइबर हमले को लेकर चीन से बहुत सावधान रहना होगा. चीन वैसी भी अपनी एप्स पर लगे प्रतिबंध से बुरी तरह खिसियाया हुआ है. तो जो उसने 2017 में करने का प्रयास किया, वह प्रयास वो दोबारा कभी भी कर सकता है.