राजन, दिल्ली। जिस बजरंग दल के सदस्य की हत्या हो गई थी क्या वो जिला संयोजक था। यदि नहीं तो फिर वो बजरंग दल का सदस्य नहीं है क्योंकि बजरंग दल के अनुसार केवल उस व्यक्ति को ही सदस्य माना जाएगा जो संयोजक हैं। इस घटना मे कुछ पुराने अपराधियों को पकडा जाएगा और उन्हें दंगे का आरोपी बना दिया जाएगा। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा जा रहा है। यदि ये फिक्स मैच नहीं होता तो यह दंगा कभी नहीं हो सकता था।
इतना बडा प्रशासनिक फैलियर नहीं हो सकता है । ऐसा मेरा मानना है। इस दंगे से पहले मेवात सुलग रहा था और यह जानकारी प्रशासन को थी । दिल्ली दंगों से पहले पुरे भारत मे हर एक मस्जिद मे भड़काऊ भाषण दिए गए थे। एसडीपीआई ने अनेक जगहों पर भाषण दिए थे। चुनाव जीतने के लिए भाजपा हिन्दुओं को बलि का बकरा बनाती है। जो मौलाना मोहब्बत के गीत गाते हुए दिखाया जा रहा है और उस मौलाना की हत्या हो गई थी। इस मौलाना को गोली मारी गई थी ऐसा प्रशासन द्वारा फैलाया गया था ताकि हिन्दू समाज को नीचा दिखाया जाए । जबकि उस मौलाना को गोली नहीं मारी गई है ।
उस मौलाना की मृत्यु कैसे हुई यह सच शायद ही कभी बाहर आएगा लेकिन उसकी मृत्यु को हत्या ही बताया जाएगा ताकि हिन्दू समाज को हत्यारा बता कर नीचा दिखाया जाए । अपने ही कार्यकर्ताओं को पीड़ित दिखाया जाएगा और उनको पकडा जाएगा जो हिन्दू उकसावे मे आ गये थे और इस हिंसा का हिस्सा बन गये। गुजरात दंगों को यदि ध्यान से देखें तो बिल्कुल यही नीति अपनाई गई थी। माया कोडनानी को सड़ने के लिए छोड दिया जबकि वो निर्दोष थी उन्हें बचाया जा सकता था। माया कोडनानी के और मोदीजी के पक्ष मे अनेकों मुस्लिम ने कोर्ट मे गवाही दी थी।
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कांग्रेस समर्थक जो गुजरात हिंसा मे हिन्दू बनकर लड रहे थे उनके उपर मकदमे डाल दिए गए थे। हिन्दू राजनीतिक दलों मे बंट गया है अपने लाभ के लिए किंतु जब जब जेहादिओं से दंगा हुआ है तब तब कांग्रेस समर्थक हिन्दू ने हिन्दू समाज का साथ दिया है। यही कारण है बंगाल मे विधानसभा चुनाव मे जो हिंसा हुई थी उस हिंसा मे जेहादिओं ने कांग्रेस टीएमसी कोमनिस्ट दल के हिन्दू समाज को भी नही छोडा। जेहादिओं ने कहा की है तो ये हिन्दू ही। इसलिए उस हिंसा मे टीएमसी कोमनिस्ट कांग्रेस समर्थक हिन्दू भी मारे गए थे ।
इस नूंह वाले मामले मे जमात के सदस्यों का हाथ हो सकता है और जमात के प्रमुख या अमीर कह सकते हैं वो मौलाना साद है। मौलाना साद और भाजपा का रिश्ता बहुत पुराना है। साइबर क्राइम की एक पोस्ट को जला डाला जबकि साइबर क्राइम ब्रांच मे जो पुलिस कर्मी होते हैं वो अधिकांश पहलवान होते हैं। यदि कोई भी व्यक्ति या अपराधी प्राण घातक हमला करता है तो प्राण बचाने के लिए प्राण लिए जा सकते हैं।
एक भी पुलिस कर्मी ने गोली क्यों नही चलाई जब साइबर सेल की पोस्ट या थाने को जलाया जा रहा था। कहीं ऐसा तो नहीं है की साक्ष्य मिटा कर तृप्ति करण का संदेश दिया जा रहा हो। वर्दी पहने हुए निहत्थे पुलिस कर्मी पर सैकड़ों की भीड भी हमला करने से पहले सौ बार सोचती है लेकिन एक भी पुलिस कर्मी घायल नहीं हुआ थाने को बचाने के लिए । मेरी आदरणीय संदीप जी से विनती है की इस दंगे को विस्तार पूर्वक जानकारी एकत्रित कर के जनता के सामने लाया जाए ।