विपुल रेगे। ‘आदिपुरुष’ को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लगातार सुनवाई चल रही है। उच्च न्यायालय ने भारतीय सेंसर बोर्ड की पीठ पर जो चाबुक बरसाए हैं, वह उन हिंदूवादी नेताओं को देखना चाहिए, जिन्होंने जाने-अनजाने इस फिल्म का प्रमोशन करने का अपराध किया है। उच्च न्यायालय की कड़ी टिप्पणियों को सरकार को कान में तेल डालकर सुनना चाहिए। ‘आदिपुरुष’ को सेंसर से पास होने के बाद भी रोका जा सकता था लेकिन वर्तमान सरकार की इच्छा शक्ति ‘हिन्दू अपमान’ पर कमज़ोर पड़ जाती है।
सन 1955 से लेकर 2022 तक ऐसी कई फ़िल्में रही हैं, जिन पर सेंसर बोर्ड और सरकार द्वारा आपत्ति ली गई। कई फिल्मों को आवश्यक कट लगाने के बाद रिलीज की इजाजत मिली। कुछ फ़िल्में ऐसी भी रही, जो संपूर्ण देश में रिलीज नहीं हो सकी थी। इन फिल्मों के कंटेंट को लेकर आपत्ति थी। अश्लीलता, धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसे कारणों पर आपत्ति ली जाती थी। शुरुआती कांग्रेस सरकारों ने कई फिल्मों पर बैन लगाया। सन 1973 में ‘गरम हवा’ जैसी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने आठ माह तक रोके रखा था।
सन 1977 में ‘किस्सा कुर्सी का’ नामक फिल्म की बुरी गत हुई। विरोध यहाँ तक था कि संजय गाँधी के समर्थकों ने फिल्म का मास्टर प्रिंट लूटकर जला दिया था। सन 2014 में नई भाजपा सरकार आने के बाद बैन का सिलसिला जारी रहा। इस साल पंजाबी फिल्म ‘कौम दे हीरे’ पर बैन लगाया गया। फिल्म में इंदिरा गाँधी की हत्या को ग्लोरिफ़ाई कर दिखाया गया था। सन 2015 में ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे’ को इसके आपत्तिजनक कंटेंट के कारण बैन किया गया। इसी साल एक और फिल्म ‘मैं हूँ रजनीकांत’ बैन कर दी गई। फिल्म का नाम बदलने के बाद ही इसे रिलीज की आज्ञा दी गई।
सन 2015 में इस सरकार ने सर्वाधिक नौ फिल्मों पर प्रतिबंध लगाए। इसी वर्ष मोदी सरकार ने The Mastermind Jinda Sukha पर प्रतिबंध लगा दिया। सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर दिया था लेकिन ‘गृह मंत्रालय’ ने इसे बैन कर दिया। ये फिल्म जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की हत्या पर आधारित थी। यहाँ गौर करने वाली बात है कि एक फिल्म के लिए गृह मंत्रालय संज्ञान लेता है लेकिन ‘आदिपुरुष’ के समय ये मंत्रालय चुप लगा जाता है। सन 2023 में बीबीसी की डाक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी जाती है।
मोदी सरकार ने अब तक अठारह फिल्मों पर आपत्ति ली है और उनमे से एक दो को रिलीज भी नहीं होने दिया। क्या ‘आदिपुरुष’ बैन होने वाली उन्नीसवीं फिल्म नहीं हो सकती थी ? ‘आदिपुरुष’ को लेकर चल रही सुनवाई में सेंसर बोर्ड की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया गया। उनसे पूछा गया कि ‘आपत्तिजनक दृश्य और ऐसे कपड़ों को लेकर क्या किया जा रहा है? अगर हम लोग इस पर भी आंख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि इस धर्म के लोग बड़े ही सहिष्णु हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा? क्या यह सहनशीलता की परीक्षा है? यह कोई प्रोपगेंडा के तहत की गई याचिका नहीं है। क्या सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी निभाई? ये तो अच्छा है कि ये उस धर्म के बारे में है, जिसके लोगों ने कोई पब्लिक ऑर्डर का प्रॉब्लम क्रिएट नहीं किया।’
सेंसर बोर्ड की पीठ पर बरसते कोड़े को अध्यक्ष प्रसून जोशी ने महसूस नहीं किया। इस विवाद और तमाशे के बीच लोग जानना चाहते हैं कि रामायण के अपमान के जिम्मेदार प्रसून इस समय कहाँ है। आपको बता दे कि कवि हृदय प्रसून जोशी राम के अपमान से अविचलित रचनात्मक कार्य कर रहे हैं। इन दिनों वे एयर इण्डिया की इमेज ब्रांडिंग में लगे हुए हैं। प्रसून के पास इतना समय ही कहाँ है कि वे हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर दो शब्द बोल दें। ‘आदिपुरुष’ को लेकर दर्शकों की भावनाओं तक भारत सरकार नहीं पहुँच सकी। यदि वह समझ पाती तो The Mastermind Jinda Sukha जैसी फिल्म पर सक्रिय होने वाला गृह मंत्रालय ‘आदिपुरुष’ पर भी सक्रिय हो जाता।
फिल्म के गीतकार मनोज मुन्तशिर के भाजपा नेताओं से मधुर संबंध हैं और उन्होंने तो प्रधानमंत्री के साथ ‘फोटोमय’ भेंट भी की हुई है। ऐसे में सरकार अपने मधुर संबंधों को निभा रही है। इस सारे केस में फिल्म निर्माता भूषण कुमार गायब हैं। उनकी स्थिति ‘फरार’ होने जैसी ही है। हाईकोर्ट ने भूषण कुमार को भी पेश होने के लिए कहा है। एक तरफ सरकार आने वाले साल में राम मंदिर जनता को समर्पित करने जा रही है और दूसरी ओर अपने संबंधों की ख़ातिर राम जी का अपमान भी होने दे रही है।
भाजपा सरकार श्रीराम को अपने पाले में मानते आई है तो ‘आदिपुरुष’ पर तो ख़ुशी से बैन लगाना चाहिए था। अब थियेटर्स से निकलकर ये फिल्म डिजिटल और सेटेलाइट पर दिखाई जाने वाली है। राम से ये राष्ट्र एक अदृश्य डोर से जुड़ा हुआ है। जब राम नाम का अनादर होता है तो वह ‘अदृश्य डोर’ दृश्यमान हो जाती है। आज जनता के क्रोध में आप वह ‘अदृश्य डोर’ देख सकते हैं। हालाँकि केंद्र सरकार उस डोर को देख नहीं पा रही। ये हमारा दुर्भाग्य है।