सीबीआई के अब पूर्व निदेशक बन कर रह गए आलोक वर्मा पर वही भगोड़ा शख्स के साथ संबंध भारी पड़ा जो अभी तक दो पूर्व सीबीआई निदेशक की कुर्सी लील चुका है। वह कोई और नहीं बल्कि देश का सबसे बड़ा मीट व्यापारी और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में देश से फरार मोईन कुरैशी है। मोईन कुरैशी से तीन करोड़ रुपये घूस लेने के आरोप में ही आलोक वर्मा को सीबीआई के पद से हटाया गया है। यह वही मोईन कुरैशी है जो इससे पहले सीबीआई के पूर्व निदेशक एपी सिंह और रंजित सिन्हा के अपने पद से हटने के पीछे की मुख्य वजह रहा है। इस प्रकार एक बार फिर सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को उसके पद से हटाने के केंद्र में मोइन कुरैशी है। मालूम हो कि सीबाआई के संयुक्त निदेशक राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा के खिलाफ मोईन कुरैशी से तीन करोड़ रुपये रिश्वत लेने की शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी ) से की थी।
"An alumnus of Delhi’s St. Stephen’s College, Moin Akhtar Qureshi….." Bus yahee kaafi hai 😎😬https://t.co/8N5bc5rrbt
— Smita Prakash (@smitaprakash) January 10, 2019
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई डायरेक्टर की चयन समिति ने बहुमत से आलोक वर्मा को केंद्रीय जांच ब्यूरो के डायरेक्टर पद से हटा दिया। इसके साथ ही उनका फायर सर्विसेज एंड होम गार्ड के डायरेक्टर जनरल के पद पर तबादला कर दिया। आलोक वर्मा को हटाने का फैसला उस समिति ने बहुमत के आधार पर लिया जिनके सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा विपक्षी नेता के रूप में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नुमाइंदे के रूप में ए के सिकरी थे। लेकिन कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आलोक वर्मा को हटाने का आरोप लगा रही है। इससे साफ हो जाता है कि कांग्रेस कितनी अलोकतांत्रिक सोच वाली है पार्टी है और उनके नेता कितनी तानाशाही प्रवृत्ति के हैं । आलोक वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करने वाली सीवीसी ने उनके खिलाफ दर्ज कई मामलों में आपराधिक जांच कराने का भी आदेश दिया है। यह जांच सीबीआई ही करेगी। मालूम हो कि जिस प्रकार सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार में लिप्त होने और अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह होने का आरोप लगाया है वह कई सवाल खड़ा करता है। ऐसे में आलोक वर्मा को हटाने पर कांग्रेस का विधवा विलाप भी कई संदेह को जन्म देता है।
बेशर्मी की हद ये है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक उस समिति ने, जिसके सदस्य सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नुमाइंदे जस्टिस सिकरी थे, आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटाने का फैसला किया और सारा दोष @narendramodi के माथे मढ़ा जा रहा है, ऐसे मानो ये फैसला सिर्फ उनका हो!
— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) January 10, 2019
नरेंद्र मोदी के विरोध में लगता है कांग्रेस न केवल पूरी तरह अंधी हो चुकी बल्कि अच्छा बुरा में फर्क करना भी भूल चुकी है। तभी तो वह आलोक वर्मा को हटाने का ठिकरा सिर्फ नरेंद्र मोदी पर फोड़ रही है। कांग्रेस की बेशर्मी को उजागर करते हुए वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा है कि आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक उस समिति ने लिया है जिसके सदस्य सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नुमाइंदे जस्टिस सिकरी थे। लेकिन बेशर्मी की हद ये है कि सारा दोष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माथे मढ़ा जा रहा है। जैसे कि आलोक वर्मा को उसके पद से हटाने का फैसला एकतरफा नरेंद्र मोदी ने ही लिया हो। मालूम हो कि फैसला करने वाली तीन सदस्यीय समिति में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद थे।
By questioning the 3-member panel’s decision to sack #CBI director #AlokVerma, is @INCIndia imputing motives to CJI Gogoi’s nominee on the panel, Justice Sikri, who voted with PM to dismiss Verma?
— Minhaz Merchant (@MinhazMerchant) January 11, 2019
कांग्रेस आलोक वर्मा के हटाने को लेकर तीन सदस्यों वाली चयन समिति पर सवाल खड़ा कर रही है। जिस समिति पर कांग्रेस सवाल खड़ा कर रही है उस समिति में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नुमाइंदे जस्टिस ए के सिकरी भी शामिल है। इससे सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस जस्टिस एके सिकरी पर आरोप लगा रही है? मालूम हो कि आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने के फैसले में सिकरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ दिया है। कांग्रेस अगर ऐसा कर रही है तो वह लोकतंत्र पर आघात कर रही है क्योंकि कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुमत के आधार पर चलती है। आलोक वर्मा के हटाने का विरोध कर कांग्रेस बहुमत का अनादर कर रही है।
CBI के डायरेक्टर पद से हटाए गए आलोक वर्मा के खिलाफ अब भ्रष्टाचार के कई केस में आपराधिक जांच सीबीआई करेगी। ये भी विचित्र संयोग है कि उनके पिता के खिलाफ भी आज से चार दशक पहले सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच कर चार्जशीट किया था और ये मामला उनकी मौत के बाद ही खत्म हुआ था!
— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) January 10, 2019
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा पर अभ भ्रष्टाचार के कई मामले में आपराधिक जांच होने वाली है। हालांकि वर्मा के परिवार पर यह पहला दाग नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में उनके परिवार के खिलाफ पहले भी सीबीआई जांच कर चुकी है। 1970 के दशक में उनके पिता के खिलाफ सीबीआई आय से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले की जांच कर चुकी है। सीबीआई ने तो चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी जो बाद में उनके पिता की मौत के बाद खत्म हो गई। इसलिए अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को जब वर्मा झूठ कहते हैं और चयन समिति के फैसले को अपनी ईमानदारी की सजा बताते हैं तो यह हास्यास्पद ज्यादा कुछ नहीं लगता।
What a poor chap Alok Verma is! Such a modest family he has, with meagre resources to survive! By the way, his father was also very poor, caught by the CBI in 70's in the case of disproportionate assets! pic.twitter.com/tzAJjR19os
— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) January 10, 2019
जो लोग आलोक वर्मा को गरीब और संभ्रांत परिवार का बताते हुए उनके पिता को भी गरीब बताते हैं उन्हें शायद पता नहीं है कि वे कितने गरीब और संभ्रांत परिवार के है। उनके पिता इतने गरीब थे कि सीबीआई को 1970 के दशक में सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में चार्जशीट दाखिल की थी। यहां शायद यह बताना जरूरी नहीं है कि सीबीआई कितने गरीब पर हाथ डालती है।
आलोक वर्मा को लेकर विधवा विलाप करने वालों को थोड़ा पीछे झांक लेना चाहिए कि इस देश में पहले सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति कैसे की जाती रही है! प्रथम परिवार की बिटिया की ज़िद पर आखिरी मिनटों में सर्वश्रेष्ठ की जगह भक्त को डायरेक्टर की कुर्सी पर बिठाया गया था
https://t.co/C3J2QXomnK
— Brajesh Kumar Singh (@brajeshksingh) January 11, 2019
जो लोग आज सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को अपने पद से हटाने तथा सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विधवा विलाप करना शुरू किया है उन्हें थोड़ी पीछे की जानकारी भी रखनी चाहिए। बहुत ज्यााद दिन नहीं बिता है। यह वाकया 2008 का ही है जब सोनिया गांधी की मनमोहनी सरकार ने एमएल शर्मा को दरकिनार कर उनसे एक साल के कनिष्ठ अधिकारी अश्विनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बना दिया था। जबकि उस समय सबको पता था कि अगला सीबीआई डायरेक्टर एमएल शर्मा होने वाले हैं। लेकिन यूपीए सरकार ने अपनी मनमर्जी से शर्मा को दरकिनार कर अश्विनी कुमार को सीबीआई डायरेक्टर बना दिया था। ब्रजेश कुमार सिंह ने भी अपने ट्वीट में बताया है कि कैसे कांग्रेस की पिछली सरकार के दौरान सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति होती रही है। किस प्रकार गांधी परिवार की बेटी यानि प्रियंका वाड्रा की जिद पर अंतिम समय में सर्वश्रेष्ठ अधिकारी की नियुक्त करने की जगह परिवार के प्रति प्रतिबद्ध अधिकारी को सीबीआई का निदेशक बना दिया गया था।
What that material is I do not know. But I know Justice Sikri, and can say from personal knowledge that he cannot be influenced by anyone. To attribute motives to him is wrong and unfair. (2/2)
— Markandey Katju (@mkatju) January 10, 2019
जो लोग जस्टिस ए के सिकरी की निष्ठा और अखंडता पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे मार्कंडेय काटजू ने करारा जवाब दिया है। जस्टिस काटजू ने अपने ट्वीट में लिखा है कि वे जस्टिस सिकरी को तब से जानते हैं जब वे दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हुआ करते थे। उनकी अखंडता और ईमानदारी के लिए उनका सम्मान करता हूं। जहां तक आलोक वर्मा को हटाने का फैसला लेने की बात है तो यह तय है कि अगर उनके खिलाफ कुछ ठोस सत्यता नहीं होती तो वे इस प्रकार के फैसले लेने में साथ नहीं देते। आलोक वर्मा के खिलाफ क्या सबूत है उसके बारे में तो जानकारी नहीं है लेकिन जस्टिस सिकरी के बारे में व्यक्तिगत जानकारी होने के आधार पर मैं कह सकता हूं कि वे ऐसे शख्स नहीं हैं जो किसी के प्रभाव में आ जाए वो भी किसी गलत उद्देश्य के लिए।
जिस जस्टिस सिकरी के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू की यह राय है उन्हीं पर कांग्रेस पार्टी आरोप लगाने में जुटी है। कांग्रेस के इस विधवा विलाप से यह तो तय हो गया है कि वह अपने हित के लिए क्या विधायिका और क्या न्यायापालिका किसी का सम्मान नहीं कर सकती। क्योंकि वह इस देश को अपना बपौती मानती है और तानाशाही उसके खून में है। इसलिए वह किसी और के फैसले का सम्मान नहीं करती।
बलात छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला निरस्त होने के बाद कार्यभार संभालते ही सीबीआई निदेशक के रूप में आलोक वर्मा ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए नीतिगत फैसला लेना शुरू कर दिया था। उनके इस तेवर से लग गया था कि उन्हें पता है कि वे जाने वाले हैं। क्योंकि पिछले कुछ महीनों से उन्होंने जिस प्रकार केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीबीसी) के निर्देशों की अवहेलना कर रहे थे और उनकी मांग के अनुरूप दस्तावेज मुहैया नहीं करा रहे थे, उसे देखते हुए उन्हें पता था कि बलात छुट्टी सीवीसी के निर्देश पर ही दी गई थी। वे यह भी जानते थे कि उनके खिलाफ सीवीसी के पास पुख्ता सबूत है। इसलिए वे इस बार आते ही शहीद होने के मुद्रा में काम करना शुरू कर दिया था।
URL : Criminal probe will be lodged against shacked Alok Verma !
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