दिल्ली हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस ने डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों पर Unlawful activities (prevention) act (UAPA) के तहत कार्रवाई की है। दिल्ली पुलिस का कहना हैै कि जिन लोगों को यूएपीए के दायरे में लाया गया है उन पर दिल्ली दंगा की साजिश रचने से लेकर फंडिंग, दंगाइयों को उकसाने समेत कई अन्य आरोप हैं।
ऐसे लोगों में जामिया के कुछ छात्र, पिंजरा तोड़ ग्रुप से जुड़ी छात्राएं/महिलाएं, कांग्रेस नेता, आम आदमी पार्टी के पार्षद समेत अन्य लोग शामिल हैं। इनमें से एक जामिया की छात्रा सफूरा जरगर को जमानत मिल चुकी है। उसके गर्भावस्था को लेकर ‘पंचमक्कार बिरादरी’ ने जो विक्टिम कार्ड खेला, उसका उसे फायदा मिला।
दिल्ली हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस की यह बड़ी कार्रवाई है। पुलिस का कहना है कि इससे आतंक फैलाने वालों तथा आतंकियों के मददगारों पर नकेल कसने में मदद मिलेगी।
आपको बताते चलें कि Unlawful activities (prevention) act (UAPA) कानून 1967 में लाया गया था। अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद पिछले साल इसमें संशोधन किया गया था। इस संशोधन के बाद संस्थाओं को ही नहीं, व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित करना अब कानून संभव हो पाया है। इस कानून की खासियत है कि किसी पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा। इस कानून के बनने से पहले सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था।
खास बात यह है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है। इसे कठिन कानून इसलिए भी यह माना जाता है क्योंकि इस एक्ट के तहत आतंकियों को आतंकी का टैग हटवाने के लिए भी कोर्ट के बजाय सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास पहले जाना होगा। बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है।
इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था। पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी TADA और POTA जैसे कानून खत्म कर दिए गए, लेकिन UAPA मौजूद रहा।
अब इस कठोर कानून का दिल्ली हिंसा के आरोपियों पर भी इस्तेमाल किया गया है। दिल्ली हिंसा में शामिल रहे ताहिर हुसैन पर खुफिया अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या किए जाने के अलावा कई अन्य आरोप हैं, जबकि कांग्रेस केे पूर्व पार्षद इशरत जहां पर दंगाइयों को उकसाने के आरोप हैं। दंगा के सुपर मास्टरमाइंड कहे जाने वाला आरोपी शरजील इमाम वह शख्स है जिसने अपने भाषण में असम को शेष देश से जोड़ने वाले भूभाग ‘चिकेन नेक’ को काटने की बात कही थी। शरजील असम को हिंदुस्तान से अलग करने वाले भाषण के बाद चर्चा में आया था। उस पर हिंसा के शुरुआती दौर में मुस्लिम समाज के लोगों को भड़काने का आरोप है। उसके इस भाषण के खिलाफ उस पर देश के कई राज्यों में मुकदमे दर्ज हुए थे। फिलहाल शरजील इमाम कोरोना पॉजिटिव होकर असम के जेल में बंद है।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि इन प्रमुख चेहरों के अलावा 16 अन्य लोग हैं जो इस कानून के दायरे में आए हैं। इन सभी आरोपियों की दंगे में कुछ ना कुछ भूमिका रही है।
दंगों की साज़िश में शामिल रहे पूर्व छात्र नेता उमर खालिद जिसने कन्हैया कुमार के साथ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) परिसर में कथित देश विरोधी नारे लगाए थे उस पर भी भविष्य में यूएपीए लग सकता है।
इस कड़े कानून को लेकर ‘पंचमक्कारों’ ने यह भी आरोप लगाया है कि दिल्ली दंगा मामले में कपिल मिश्रा आदि दूसरे पक्ष के आरोपियों में से किसी के खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई नहीं की गई है। जबकि जांच में इनकी संलिप्तता का कोई सबूत फिलहाल नहीं मिला है।
जिन लोगों पर इस धारा के तहत कार्रवाई की गई है उनमें आरोपी ताहिर हुसैन, दानिश, परवेज अहमद, इलियास, खालिद, इशरत जहां, मिरान हैदर, गुलफिशा, सफूरा जरगर, शफा उर रहमान, शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, शहदाब अहमद, नताशा, देवांगना कलिता, तस्लीम अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान और अथर खान शामिल है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस कानून के प्रावधानों का दायरा बहुत बड़ा है और दिल्ली हिंसा को लेकर कुछ और आरोपियों पर यूएपीए के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसका इस्तेमाल अपराधियों के साथ-साथ आरोपी तथाकथित बुद्धिजीवियों, लेखकों, आतंक संबंधी मामलों के वकील और एक्टिविस्ट्स पर भी हो सकता है। जो भी इस हिंसा के पैरोकार रहे हैं, उन पर इस धारा के तहत कार्रवाई हो सकती है। इस कानून के तहत दोषी साबित होने पर कम से कम सात साल और अधिकतम उम्रकैद और फांसी की सजा भी मिल सकती है। क्रमशः….