चीन लंबे समय से पानी को भू राजनीतिक वर्चस्व का हथियार बनाये हुए हैं. बहुत से मुद्दों को लेकर अब अंतराष्ट्रीय समुदाय चीन से जवाबदेही मांग रहा है लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर विश्व का अभी कुछ खासा ध्यान नहीं गया. वियौन न्यूज़ चैनल की एक ताज़ा रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि किस प्रकार चीन नदियों पर बांधों का निर्माण कर अपने पड़ोसी देशों के साथ पानी की राजनीति खेलता है.
वियौन न्यूज़ की रिपोर्ट 2016 की एक रिपोर्ट कोए कोट करते हुए बताती है कि इस रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अब तक की अवधि में चीन ने विभिन्न नदियों पर कमसकम 87,000 बांधों का निर्माण किया है. चीन की यांगट्ज़ी नदी और उसकी उपनदियों पर तो 2013 से 100 बांधों का निर्माण कार्य चल रहा है जो कि 2016 तक निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में थीं.
रिपोर्ट के अनुसार चीन ने सिर्फ मेकांग नदी पर ही 11 बांधों का निर्माण किया हुआ है. मेकांग नदी एक ऐसी नदी है जो कि चीन से उद्गम लेकर म्यानमार, थाइलैंड, कम्बोडिया , लाओस और व्याईतनाम जाती है. यानि इन दक्षिण पूर्वी राष्ट्रों के लोगों की एक प्रकार से लाइफ लाइन है मेकांग नदी. यह उनके जन जीवन, उनकी आजीविका से जुड़ी हुई है. और चीन ने इस पर इतने बांध बनाकर यह सुनिश्चित कर लिया है कि वह जब चाहे नदी का रुख अपने हिसाब से तोड़् मरोड़ कर आश्रित देशों में सूखा या बाढ की स्थ्ति उत्पन्न कर सकता है.
और चीन ने कई बार ऐसा किया भी है. पिछले वर्ष चीन की मेकांग नदी सूखना शुरू हो गयी. चीन ने इसका कारण कम बारिश बताया. इस नदी के सूखने का असर थाइलेंड से लेकर वियतनाम तक पर पड़ा. थाइलैंड में इतना भयंकर सूखा पड़ा कि पिछले 40 वर्षों में जैसा नही पड़ा था, वहां की चीनी की पैदावार ने भी 9 साल में अधिकतम गिरावट दर्ज की. वियतनाम में सुक्खे के कारण पूरे के पूरे चावल के खेत नष्ट हो गये.
आखिरकार सैटिलाइट इमेजरी ए यह बात सामने आयी कि यह सब चीन की कारस्तानी है, कि किस प्रकार चीन ने बांधों के माध्यम से मेकांग नदी के प्रवाह को रोका और इस के पानी के स्टोरेज के लिये जगह अगह रेज़रर्वायर्ज़ यानि जल कुंडों का निर्माण कर पानी का संचय कर लिया. सटिलाइट इमेजरी से यह साफ पता चला कि किस प्रकार बांध का रेज़ेर्वांयर अप्रैल 2019 से लेकर मई 2020 तक पानी से भरा हुआ था.
चीन ने भारत के साथ भी पानी को लेकर खूब राजनीति की है. भारत और चीन के बीच में इस बात को लेकर अनुबंध है कि जो नदियां चीन से शुरु हो भारत की ओर बहती हैं, उनसे संबंधित सारा डेटा चीन को भारत के साथ शेयर करना होगा. लेकिन 2017 की डोकलाम मुठ्भेड़ के बाद चीन ने इस अनुबंध का उल्लंघन किया और यह डाटा भारत सरकार को नहीं सौंपा.
2017 में मांनसून के दौरान ब्रह्मापुत्र नदी में जो भयंकर बाढ आयी थी जिसके कारणवश कितनी जानें गयीं, उनमे से कई जानें बच सकती थीं, अगर चीन ने नदियों से संबंधित डाटा भारत के साथ शेयर किया होता तो. तो इस बाढ के पीछे बहुत हद तक चीन ज़िम्मेदार है.
एक और बडी चिंता की बात भारत के लिये यह है कि तिब्बत की नदियों पर चीन ने अपना आधिपत्य स्थापित कर रखा है. द इंटर्प्रेटर की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 718 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी तिब्बत की इन नदियों से दूसरे देशों की तरफ प्रवाहित होता है और इसमे से 48 प्रतिशत पानी भारत आता है.
तो पानी को भू राजनीतिक हथियार बनाना चीन के लिये कोई नई बात नही है. गलवान मुठ्भेड़ के बाद जिस प्रकार से विश्व के भू राजनीएतीक समीकरण बदले हैं और भारत ने चीन को लेकर कुछ सख्त फैसले लिये हैं, चीन कभी भी अपना बदला लेने के लिये पानी के हथियार का इस्तेमाल कर सकता है. तो भारत को इस फ्रंट पर चौकन्ना रहना होगा.
चीन एक ऐसा देश है जहां से 18 ऐसी नदियों क्का उदगम होता है जो फिर दूसरे देशों में प्रवाहित होती हैं. यह चीन को कुदरत की तरफ से एक बहुत बड़ा लाभ मिला हुआ है जिसे उसने अब अपना भू राजनीतिक हथियार बना लिया है. क्योंकि पूरे विश्व में दूसरा कोई भी ऐसा देश नहीं है जहां से शुरू हुई नदियां इतने देशों की जल की आवश्यकता की पूर्ति करती हों.
https://www.wionews.com/world/water-wars-how-china-weaponises-rivers-314975
https://www.theglobeandmail.com/opinion/china-is-stealthily-waging-a-water-war/article37583969/
https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/india-china-relations-and-geopolitics-water
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