आईएसडी नेटवर्क। कर्नाटक विधानसभा के परिणाम घोषित होने के बाद भाजपा की टॉप लीडरशिप पर सवाल खड़े हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी को अंधाधुंध प्रचार के बाद राज्य में बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 135 सीटों पर विजय प्राप्त की। भाजपा को केवल 66 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। भाजपा की हार के बाद मीडिया और विपक्षी दल आक्रामक हो उठे हैं। 2024 के बड़े चुनावी अभियान पर कर्नाटक के परिणाम विपरीत असर डाल सकते हैं। कर्नाटक की जीत के बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में भाजपा की हार की आशंका व्यक्त की जाने लगी है।
कर्नाटक चुनावों में भाजपा के बुरे प्रदर्शन के साथ इस बात की चर्चा भी हो रही है कि भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में 25 चुनावी कार्यक्रम किये लेकिन उसका सकारात्मक असर मतदाताओं पर नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में 19 सभाएं और छह रोड शो किये। बीदर, विजयपुर, बेलगावी, बेंगलुरु, कोलार, रामनगरम, हासन, मैसूर, चित्रदुर्ग, गुलबर्गा, रायचूर, उत्तर और दक्षिण कन्नड़, बागलकोट, बेल्लारी, तुमकुरु, बागलकोट, हावेरी, शिमोग्गा और विजय नगर में प्रधानमंत्री ने पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बात से चिंतित है कि कर्नाटक में उसके 14 मंत्री चुनाव हार गए।
नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे स्टार प्रचारक होने के बावजूद भाजपा उस कांग्रेस को टक्कर तक नहीं दे सकी, जिसे चुनाव से पूर्व सबसे कमज़ोर पार्टी माना जा रहा था। भाजपा की शर्मनाक हार की समीक्षाएं होने लगी है। वे कारण खोजे जा रहे हैं, जिनके कारण हार हुई है। येदियुरप्पा जैसे मजबूत जनाधार वाले नेता को साइड में बैठाना भाजपा के लिए नुकसानदेह रहा। येदियुरप्पा ने केवल अपने बेटे के चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया। इस कारण लिंगायत समुदाय में नाराजगी देखी गई। ऐसा संदेश गया कि भाजपा येदियुरप्पा को किनारे कर चुनाव जीतना चाहती थी।
दिग्गज नेता जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी का टिकट काट देना भाजपा के लिए अच्छा नहीं रहा। कांग्रेस ने भाजपा से अलग ढंग का चुनाव प्रचार किया। भाजपा धन बल से प्रचार करती रही, जबकि कांग्रेस मतदाताओं के पास पहुँचने में कामयाब रही। भाजपा सरकार पर चालीस प्रतिशत कमीशन के आरोप को कांग्रेस ने सफलतापूर्वक जनता के बीच पहुंचाया। जब भाजपा ने अपना प्रचार शुरु किया तो चालीस प्रतिशत वाले आरोप को झुठलाने के लिए उसने कुछ नहीं किया। भ्र्ष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरी भाजपा ने चुनाव अभियान में मुख्यमंत्री को साथ लिया। ऐसा करना उनके लिए नुकसानदेह रहा। जनता के बीच मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की छवि खराब हो चुकी थी।
प्रधानमंत्री की चुनावी सभाओं के जरिये भाजपा ने जनता को डबल इंजन की ताकत दिखाने का प्रयास किया। हालाँकि डबल इंजन ने कर्नाटक की जनता को क्या लाभ दिया, ये बताने में भाजपा असफल रही। केंद्र के नेताओं पर अधिक भरोसा और स्थानीय नेताओं की अनदेखी करना अच्छे परिणाम लेकर नहीं आया। प्रचार अभियान के बीच भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अहसास हो गया था कि उनका अभियान जनता से नहीं जुड़ पा रहा है। जनता से कनेक्ट होने के लिए भाजपा ने पुनः हिंदुत्व का कार्ड खेलने की कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली बनाकर जनता से कनेक्ट होने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। कांग्रेस लोगों को समझाने में सफल रही कि भाजपा ने बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ने की गलत चाल चल दी है।
इसके बाद मोदी जी ने हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ से भी फायदा उठाने की कोशिश की लेकिन तब तक बाज़ी हाथ से निकल चुकी थी। भाजपा की राज्य सरकार पर बहुत से मंदिर तोड़ने के आरोप लगाए गए थे और ऐसे में बजरंग बली का लाभ लेने की कोशिश से जनता में गलत संदेश चला गया। विगत कुछ वर्ष से भारतीय जनता पार्टी अंतर्विरोधों का सामना कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा लगातार हिन्दुओं की अनदेखी का असर भी कर्नाटक चुनाव में स्पष्ट दिखाई दिया है। धारा 370 और एनआरसी के मुद्दों पर केंद्र सरकार मुंह की खा चुकी है। अब अधिकांश हिन्दुओं के मन में भाजपा के प्रति भरोसा लगातार गिर रहा है।
बजरंग बली के नाम पर भी वोट न मिलना इस बात को दिखा रहा है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा ने अपना जनाधार खोना शुरु कर दिया है। कर्नाटक का डबल इंजन भाजपा के लिए ट्रबल इंजन बन गया और जनता ने ट्रबल शूट कर दिया।