विपुल रेगे। इतिहास खुद को दोहराता है। लोगों और घटनाओं में इतिहास की पुनरावृति होती रहती है। राजश्री प्रोडक्शंस का इतिहास भी स्वयं को दोहरा रहा है। राजश्री प्रोडक्शन सन 1947 से भारत के लिए मनोरंजक फ़िल्में बनाता रहा है। राजश्री की फ़िल्में स्वस्थ मनोरंजन के लिए जानी जाती हैं। अब ये प्रोडक्शन पुनः युवा हो गया है। राजश्री की चौथी पीढ़ी फिल्म निर्माण में उतर आई है। सूरज बड़जात्या के बेटे अवनीश बड़जात्या ने ‘दोनों’ के ज़रिये फिल्म निर्माण में कदम रख दिए हैं।
राजश्री प्रोडक्शन समय के साथ बदला है लेकिन उसका ‘बेस’ जस का तस है। ये प्रोडक्शन भारतीय मूल्यों को कभी नहीं तजता। 15 अगस्त, 1947 काे ताराचंद बड़जात्या ने ‘राजश्री पिक्चर्स’ की नींव रखी थी। ये प्रोडक्शन पिछले 76 साल से पारिवारिक और सामाजिक फिल्मों का निर्माण कर रहा है। जब राजश्री की कमान ताराचंद के बाद उनके बेटे राजकुमार के हाथ में आई तो समृद्धि भी साथ आई। बैनर की फ़िल्में सफल होने लगी। ताराचंद जी का लगाया पौधा वृक्ष का रुप लेने लगा था।
सत्तर के दशक में राजश्री ने बहुत सी अच्छी फ़िल्में बनाई, जो दर्शकों के मन में रच-बस गई। तपस्या (1976), गीत गाता चल (1975), दुल्हन वही जो पिया मन भाये ( 1977), चितचोर (1976), तराना (1979), पिया का घर ( 1972), सुनयना (1979) आदि फिल्मों ने राजश्री प्रोडक्शंस की आधारशिला को मजबूत किया। अस्सी के दशक में राजश्री अपने चरम पर था। सन 1982 में ‘नदिया के पार’ ने उन्हें वह सफलता दिलाई, जो अब तक उनके लिए एक स्वप्न थी। ‘नदिया के पार’ एक बहुत बड़ी सफलता सिद्ध हुई और भारतीय दर्शकों के मन में राजश्री के प्रति विश्वास और मजबूत हो गया। भोजपुरी, हिन्दी और अवधी भाषा में बनी इस फिल्म ने देशव्यापी सक्सेस प्राप्त की।
बस इस फिल्म के बाद राजश्री प्रोडक्शंस के बुरे दिन शुरु हो गए थे। सन 1988 तक राजश्री द्वारा बनाई गई नौ फ़िल्में फ्लॉप रही। इनमे एक ‘सारांश’ भी थी, जिसे टिकट खिड़की पर आंशिक सफलता मिली थी और इसने बहुत प्रशंसा पाई लेकिन व्यावसायिक सफलता नहीं मिल सकी। इस बदले दौर में परिवारवाद को फिल्मों में बनाए रखना अब मुश्किल होता जा रहा था। सत्तर के दशक में ‘शोले’ के सुपरहिट होने के बाद हिन्दी टिकट खिड़की पर फिल्म ट्रेंड्स बदल चुके थे। अब कमान आई सूरज बड़जात्या के हाथ में। फिल्म निर्माण में हाथ जला चुके परिवार को कतई उम्मीद नहीं थी कि युवा सूरज अपने पैतृक काम को सँभालने का निर्णय लेंगे। जब उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’ लिखना शुरु किया, वे असिस्टेंट निर्देशक के रुप में महेश भट्ट के साथ काम कर चुके थे।
इस समय तक राजश्री की माली हालत बहुत खराब हो चुकी थी। सूरज के पास इतनी लागत नहीं थी कि वे स्थापित कलाकारों को लेकर एक सुरक्षित फिल्म बना सके। सूरज ने एक नई टीम के साथ शुरुआत की। हालाँकि फिल्म पूरी होने तक सूरज के पास इतनी लागत नहीं बची थी कि वे इस थियेटर्स में रिलीज कर सके। मन मारकर उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’ को वीडियो सर्किट पर ही रिलीज कर दिया। वीडियो पर रिलीज होने के बाद धीरे-धीरे फिल्म की चर्चा होना शुरु हो गई। इसके गाने रेडियो पर धूम मचाने लगे। इसके बाद थियेटर में रिलीज होकर फिल्म ने इतिहास बना दिया।
इस तरह सूरज ने अपने परिवार के ध्वस्त साम्राज्य को मुश्किलों से निकलकर खड़ा किया। आज सूरज साठ वर्ष के हो चुके हैं। उनकी पिछली फिल्म ‘ऊंचाई’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही थी। सूरज ने आठ फ़िल्में निर्देशित की। इनमे से पांच ब्लॉकबस्टर रही। अब सूरज के बेटे अवनीश बड़जात्या ने पिता की कमान संभाली है। तीस वर्षीय अवनीश अपनी पहली फिल्म ‘दोनों’ से पदार्पण कर रहे हैं। फिल्म में सनी देओल के बेटे राजवीर डेब्यू कर रहे हैं। उनके साथ पूनम ढिल्लो की बेटी पलोमा अपनी पहली फिल्म में दिखाई देंगी।
फिल्म के गीत युवाओं में लोकप्रिय हो रहे हैं। राजवीर और पलोमा को भी पसंद किया जा रहा है। ये नई जोड़ी आगे चलकर स्थापित हो सकती है। इतिहास स्वयं को भिन्न तरीकों से दोहराता है। वर्षों पहले सनी देओल एक प्रेम कथा ‘सवेरे वाली गाड़ी’ में पूनम ढिल्लो के साथ दिखाई दिए थे और आज उनकी संताने ऐसी ही प्रेमकथा से डेब्यू कर रही हैं। अवनीश की फिल्म के ट्रेलर से महसूस हो रहा है कि बड़जात्या परिवार के पारिवारिक मूल्य अवनीश के हाथ में सुरक्षित हैं।