आज के समय में साहित्य की परिभाषा दिन ब दिन बदलती जा रही है. लोग किंडल आदि गैजिट्स पर ई बुक्स भी पढ़्ते हैं, इंटरनेट पर भी पूरी पूरी किताबें डाउनलोड के लिये उपलब्ध रहती हैं. किताबें बाहर जाकर खरीदने के बजाय लोग आंनलाइन आर्डर करना अधिक पसंद करते हैं. लोगों को जिस प्रकार की किताबें पसंद आती हैं, उसका भी एक सेट पैर्टन बनता जा रहा है. अंग्रेज़ी की किताबें खरीदना अब भारतीय लोगों के लिये एक स्ट्टेटस सिम्बल बन गया है, किताब पढ़्ने लायक अंग्रेज़ी आती भी हो या नहीं, वो एक अलग विषय है. लोग अंग्रेज़ी में प्रचलित चिक लिट यानि हल्के फुले उपन्यास ज़्यादा पसंद करते हैं या फिर विश्व प्रचलित अंग्रेज़ी लेखकों की ऐसी किताबें जिनकी बड़े बड़े पब्लिकेशंस द्वारा ज़बर्दस्त मास मार्केटिंग होती है. विदेशों में लिखे जाने वाले घटिया अंग्रेज़ी उपन्यास भी, जो वहां पर नहीं बिकते , भारत के मार्केट में आ शरण पाते हैं. ऐसे में अगर किसी पुस्तक मेला का थीम गांधीजी रखा जाये तो लोगों को, खासकर कि युवा वर्ग को शायद ये कुछ बोरिंग और अप्रासंगिक ही लगेगा. लेकिन नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले ने इस धारणा को बड़ी ही सफलतापूर्वक ध्वस्त किया. 3 से 12 जनवरी तक चले नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के थीम पवेलियन को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वी वर्षगांठ को समर्पित किया गया. और ये पैवेलियन कुछ इस तरीके से डिज़ाइन किया गया कि गांधीजी के साहित्य, उनके जीवन दर्शन को एक कंटेम्पररी ट्च के साथ प्रस्तुत किया गया. और ऐसे प्रस्तुतिकरण ने सभी को खूब लुभाया.
थीम पैवेलियन को किया गया गांधी के जीवन दर्शन के अनुरूप दिज़ाइन
थीम पैवेलियन पर तीन डिज़ाइनरों ने मिलकर कम किया. पूरे पैवेलियन को खादी के कपड़े से तैयार किया गया. यही नहीं, इसकी दीवारों के साथ ही ज़मीन पर बिछे कार्पेट में भी जूट और खादी का मिश्रण रहा. थीम पैवेलियन के प्रवेश द्वार पर कदम रखते ही घांधीजी के समस्त जीवन की झांकी को तस्वीरों द्वारा प्रस्तुत किया. और इन तस्वीरों ने पूरे पैवेलियन का समां बांधा. इन तस्वीरों के पीछे भी गंधीजी की जीवन शैली से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है. इन तस्वीरों को पहले हाथों से कपड़े पर बनाया गया और इसके बाद इनका डिजिटल प्रिंट तैयार किया गयागया. इस पैवेलियन में महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में टांल्सटाय फार्म में इस्तेमाल किये गये चरखे की प्रतिलिपि को भी प्रस्तुत किया गया है.
गांधी पर और उनके द्वारा भारतीय भाषाओं में लिखी गयी पुस्तकों पर भी रहा फोकस
पवेलियन मे गांधी पर और गांधी द्वारा हिंदी, अंग्रेज़ी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं लिखी गयी पुस्तकें उपलब्ध थीं. यहां गांधी के जीवन के प्रस्तुतिकरण की खासियत यह रही कि गांधी के जीवन के सभी आयामों को बड़ी ही स्मारसता से दर्शाया गया. गांधी ने एक प्रकाशक के रूप में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाये एथी, उसके बारे में शायद लोग इतना नही जानते. तो गांधीजी के व्यक्तित्व के इस पहलू पर यहां खासा फोकस रहा. और एक ऐसे समय में जब अंग्रेज़ी की विश्व्यापी वर्चस्वता को चुनौती देने की और भारतीयों के चेतन में भारतीय भाषाओं के प्रति चेतना और जागरूकता पैदा करने की कहीं ज़्यादा आवश्यकता है, पुस्तक मेले का गांधी के साथ विभिन्न भारतीय भाषाओं का आयाम जोड़ना भी बेहद प्रासंगिक लगा.
गांधीवादी दर्शन में है सभी के लिये कुछ न कुछ
यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात एक यह है कि गांधीजी के बारे में कुछ ऐसा है जो उन्हे समय और युग की सीमाओं के परे ले जाता है. उनका व्यक्तित्व इतना अधिक बहुमुखी है कि कलाकार, कवि, फैशन डिज़ाइनर, सामाजिक कार्यकर्ताओं ,विद्यारथियों से लेकर वकील, नेता आदि सभी के लिये ही उनके जीवन दर्शन और कार्य क्षेत्र में कुछ न कुछ अवश्य रहता है. गांधी का जीवन दर्शन और कार्य क्षेत्र इतना व्यापक है कि न तो आप उसे किसी समय सीमा में बांध सकते हैं और न ही किसी विशिष्ट विचारधारा की सीमा में. आतंकवाद से लेकर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन तक और वायु प्रदूषण, स्वचछता की समस्या, भ्रष्टाचारी की समस्या से लेकर सस्टेनेबल विकास की बात तक ले लीजिये, हर मुद्दे में गांधीजी का महत्वपूर्ण दखल है. गांधीजी का जीवन दर्शन और उनकी जीवन शैली एक पूरी कुंजी है आज के समय की उन सभी समस्याओं से बाहर निकलने की जो पश्चिम की आर्थिक और विकास नीतियों ने पूरे विश्व को धरोहर के रूप में द्दी हैं. और यही वजह है कि गांधी भी भी बेहद प्राशंगिक और ‘कूल’ हैं. और इस बात को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला के आयोजकों ने भली भांति समझा.