वामपंथी वेबपोर्टल alt news के संस्थापक प्रतीक सिन्हा एक बार फिर झूठ बोलते पकड़े गए हैं। 23 नवंबर को प्रतीक सिन्हा ने एक ट्वीट किया। इसमें उन्होंने लिखा कि true indiology नामक अत्यंत लोकप्रिय ट्वीटर यूजर ने उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर जो फोटो पोस्ट की थी, वह नकली थी।
प्रतीक ने गूगल पर मौजूद रिवर्स इमेज फीचर का प्रयोग कर इस इमेज का स्त्रोत पता लगाने का प्रयास किया। रिवर्स इमेज फीचर से पता चला कि ये इमेज एक स्टॉक इमेज प्लेटफॉर्म गेट्टी इमेजेस पर अपलोड की गई थी। प्रतीक ने इमेज को नकली बताने से पहले जानने का प्रयास तक नहीं किया कि गेट्टी ने ये दुर्लभ फोटो कहाँ से प्राप्त किया था।
प्रतीक ने बिना जाँच आरोप लगा दिया कि गेट्टी इमेजेस एक धोखा है। ऑप इंडिया वेब पोर्टल ने इस फोटो का असली स्त्रोत खोजने का प्रयास किया और पता चला कि इस फोटो की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। true indiology ने इस फोटो के साथ एक कैप्शन पोस्ट किया। कैप्शन में लिखा गया है ‘बीते हुए कश्मीर का आश्चर्य, सन 1904 में एक हिन्दू संन्यासी डल झील के किनारे बैठे हैं।‘
इतनी अधिक बर्फ़बारी में भी वह नग्नावस्था में बैठे हैं। कड़ाके की ठण्ड भी उन्हें परेशान नहीं कर पा रही है। एक समय था, जब डल झील के किनारे पर ऐसे दृश्य आम हुआ करते थे। प्रतीक सिन्हा के अनुसार इमेज के बारे में गेट्टी इमेजेस ने कहीं भी बर्फ शब्द का प्रयोग नहीं किया है। हालांकि पहली बार इस इमेज को एक किताब में छापा गया था।
इस किताब का नाम ‘कश्मीर: इट्स न्यू सिल्क इंडस्ट्री था। इसके लेखक सर थॉमस वर्डले थे। ये किताब सन 1904 में प्रकाशित हुई थी। किताब के पेज नंबर 376 पर इमेज का टाइटल दिया है। टाइटल में लिखा गया है ‘फ़क़ीर या पवित्र व्यक्ति डल झील के लुंका आइलैंड पर बैठे हुए।’ ये फोटो Geoffrey William Millais नामक फोटोग्राफर ने क्लिक किया था।
ये किताब आसानी से भारत सरकार की ‘इंडियन कल्चर’ नामक वेबसाइट पर उपलब्ध हो सकती है। इसका एक संस्करण ‘गूगल बुक्स’ पर भी उपलब्ध है। प्रतीक सिन्हा के ट्वीट के बाद true indiology इस मामले में सफाई देने के लिए सामने आई। true indiology ने प्रतीक सिन्हा के दावे को एक फेसबुक पोस्ट के द्वारा ख़ारिज कर दिया।
true indiology ने इस इमेज का सोर्स और किताब का कैप्शन प्रस्तुत कर लिखा कि ‘तथ्य ये है कि प्रतीक सिन्हा ने अब तक ये किताब नहीं पढ़ी है और वे कश्मीर के इतिहास और वहां की जलवायु के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। वे साधु अत्याधिक बर्फ़बारी में वहां बैठे थे और ये फोटोग्राफर द्वारा सत्यापित किया गया है। इस फोटोग्राफर द्वारा लिया गया ये फोटो आज से 116 वर्ष पूर्व इस किताब में प्रकाशित किया गया था।
इंटरनेट समुदाय की सिन्हा की फेक पोस्ट पर तीखी प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर प्रतीक की फेक पोस्ट पर लोगों का कहना है कि वे हैरान हैं कि स्वघोषित फेक्टचेकर प्रतीक ने इमेज के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश नहीं की। प्रतीक ने गूगल के रिवर्स इमेज फीचर का प्रयोग कर पता लगाया कि ये इमेज गेट्टी इमेजेस पर अपलोड की गई है।
जब वे इमेज के बारे में और जानकारी एकत्रित नहीं कर सके तो उन्होंने true indiology को फेक न्यूज़ पैडलर घोषित कर दिया। हालांकि कई ट्विटर यूजर्स ने इस इमेज से संबंधित तथ्यों की प्रतीक सिन्हा की जाँच से बेहतर जाँच की। उन्होंने न केवल किताब की लिंक और फोटो के स्क्रीनशॉट्स प्रस्तुत किये बल्कि कई ऐसे साधुओं के वीडियो पोस्ट किये जो बर्फ़बारी में बिना गर्म कपड़ों के ध्यान लगाते दिखाई दे रहे हैं।
हाल्टन आर्काइव से
डल झील के लुंका द्वीप पर बर्फ़बारी में बैठे साधु का फोटो Geoffrey William Millais ने एक शताब्दी पूर्व खींचा था। ये फोटो हाल्टन आर्काइव की सम्पत्ति था। इस फोटो को सन 1996 में गेट्टी इमेजेस द्वारा हॉल्टन से खरीद लिया गया था। आर्काइव को हमेशा से ही इतिहास की जानकारी का महत्वपूर्ण विश्वसनीय स्त्रोत माना जाता है।
इस आर्काइव में तीस लाख ऐतिहासिक फोटो रखे हुए हैं और 1500 से अधिक व्यक्तिगत ऐतिहासिक फोटो कलेक्शन रखे हुए हैं। इन फोटोग्राफ्स के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया सन 2000 में प्रारंभ हुई थी। सन 2003 में गेट्टी इमेजेस ने हाल्टन आर्काइव के फोटोग्राफ्स खरीदकर अपने संग्रह में शामिल करना शुरु कर दिया था। स्व घोषित फैक्ट चेकर प्रतीक सिन्हा ने केवल रिवर्स इमेज फीचर को अपनी जाँच का आधार बना लिया था। उन्होंने उसके आगे जाँच करने की आवश्यकता नहीं समझी।
alt news का फर्जी ख़बरों का इतिहास रहा है
ये पहली बार नहीं है जब alt news के संस्थापक और कर्मचारी इस तरह फेक न्यूज़ फैलाते हुए पकड़ाए हैं। सितंबर में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने alt news के दावों का खंडन किया था कि प्रवासी ट्रेन की चपेट में आकर श्रमिकों की मौत हो गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता अंकुर सिंह ने ट्वीट्स की एक श्रृंखला पोस्ट की थी।
जिसमें बताया गया था कि कैसे AltNews के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरें फैलाने की कोशिश की। जून में AltNews ने एक मुस्लिम आरोपी को बचाने की कोशिश की। केरल में गर्भवती हथिनी की मौत को लेकर भी इसने एक स्टोरी पोस्ट की थी लेकिन सच्चाई सामने आने पर उसे हटा लिया गया था।
बहुत बढिया