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संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही

समलैंगिक विवाह पर सुनवाई | जेंडर की अवधारणा यह नहीं कि आपके जननांग कहां हैं, यह कहीं अधिक जटिल है: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने विवाह समानता मामले में मौखिक रूप से कहा

Courtesy Desk
Last updated: 2023/04/19 at 12:28 PM
By Courtesy Desk 85 Views 6 Min Read
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सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता दिलाने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरु कर दी।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आज की सुनवाई के दरमियान जेंडर के दायरे और मुद्दे कि क्या जेंडर किसी व्यक्ति के जैविक लिंग से परे भी विस्तारित होता है, पर मौखिक चर्चा की। डॉ एएम सिंघवी के ने पीठ के समक्ष कहा कि अगर अदालत को भारत में विवाह समानता प्रदान करनी है, तो इसे सेम-सेक्स मैरिज पर रोक नहीं लगानी चाहिए। और इसके बजाय “शारीरिक लैंगिकता और लिंग स्पेक्ट्रम के साथ दो सहमत वयस्कों” को विवाह का अधिकार प्रदान करें।

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश डॉ सिंघवी ने तर्क दिया-

“ऐसे व्यक्तियों, जिनकी विशेष जैविक विशेषताएं है, के संयोजन की एक पूरी श्रृंखला है। वे केवल पुरुष और महिला नहीं है। एक श्रेणी” सेक्स “है और दूसरी श्रेणी” जेंडर “है। इसलिए एक पुरुष शरीर को महिला मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों में रंग सकता है, और इसक विपरीत भी संभव है।

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अब LGBTQIA++ है। इस “++” में रंगों का एक पूरा स्पेक्ट्रम है। अब यदि आप एक ही व्यक्ति के विवाह को मानते हैं तो आपका मतलब समान-लिंग तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसलिए सही सूत्रीकरण होना चाहिए “शारीरिक जैंडर और सेक्स स्पेक्ट्रम के साथ दो सहमत वयस्क।”

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि जैविक लिंग एक व्यक्ति का लिंग है।

उन्होंने कहा-

“सामाजिक संबंधों की स्वीकृति कभी भी कानून के निर्णयों पर निर्भर नहीं होती है। यह केवल भीतर से आती है। मेरा निवेदन यह है कि विशेष विवाह अधिनियम की विधायी मंशा पूरी तरह से जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच संबंध रही है।”

सीजेआई चंद्रचूड़ ने एसजी को इस बिंदु पर बीच में ही रोक दिया और मौखिक रूप से कहा, “एक जैविक मनुष्य की धारणा पूर्ण है जो अंतर्निहित है।”

हालांकि, एसजी मेहता ने असहमति जताई और कहा- “जैविक मनुष्य का अर्थ है जैविक मनुष्य, कोई धारणा नहीं है।”

इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- “पुरुष की पूर्ण अवधारणा या महिला की पूर्ण अवधारणा बिल्कुल भी नहीं है। यह सवाल नहीं है कि आपके जननांग क्या हैं। यह कहीं अधिक जटिल है, यही बात है। इसलिए जब विशेष विवाह अधिनियम पुरुष और महिला कहता है, तब भी एक पुरुष और एक महिला की धारणा जननांगों पर आधारित पूर्ण धारण नहीं है।”

सीजेआई की टिप्पणी का खंडन करते हुए एसजी मेहता ने अपनी बात कहा-

“जैविक पुरुष का मतलब जैविक जननांगों के साथ एक पुरुष है। मैं उस वाक्यांश का उपयोग नहीं करना चाहता था। यदि धारणा को पुरुष या एक महिला पर निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शक कारक माना जाएगा तो मैं कई कार्य दिखाऊंगा जो आपको को अनायास ही नॉन वर्केबल बना देंगे। अगर मेरे पास एक पुरुष के जननांग हैं हालांकि अन्यथा मैं एक महिला हूं, जैसा कि सुझाव दिया जा रहा है, मुझे सीआरपीसी के तहत क्या माना जाएगा? एक महिला? क्या मुझे 160 बयान के लिए बुलाया जा सकता है? कई मुद्दे हैं। यह बेहतर होगा अगर यह संसद के समक्ष जाए, संसद में प्रतिष्ठित सांसद हैं। संसदीय समितियां उस तरह से कार्य नहीं कर रही हैं जैसे हम संसद के कार्य को देखते हैं। समितियों में सभी दल के सदस्य होते हैं।”

यह भी पढें–समलैंगिक विवाह को केंद्र ने बताया ‘एलीट कॉन्सेप्ट’, सुप्रीम कोर्ट में कहा- इस पर कानून बनाना आपका काम नहीं

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए। उन्होंने अदालत के समक्ष अपनी व्यक्तिगत राय रखते हुए एसजी के समान ही तर्क दिया। शुरुआत में यह कहते हुए कि उन्होंने समलैंगिक समुदाय के लिए समान अधिकारों का समर्थन किया,

उन्होंने कहा- “हम व्यक्तियों की स्वायत्तता में विश्वास करते हैं। मुझे लगता है कि लोग किसी भी तरह के रिश्ते के हकदार हैं। इसका जश्न मनाने की जरूरत है क्योंकि समाज वहीं जा रहा है। आपसे यह कहना था कि यह एक मान लीजिए यह एक वैध विवाह है और यह टूट जाता है और उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया है।

क्या होगा? पिता कौन होगा? आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून के तहत, महिला कौन है? भरण-पोषण किसे मिलेगा? ये उस घोषणा के गंभीर सामाजिक परिणाम हैं। जब दुनिया भर में ऐसा किया जाता है, तो अन्य विधानों को इसी के अनुसार सुधार किया जाता है। यदि आप इसे सुधारों के बिना करते हैं, तो आप दूसरे समुदाय को नुकसान पहुंचा रहे होंगे और वह खतरनाक है। मैं इसके लिए तैयार हूं लेकिन इस अंदाज में नहीं।”

दूसरी ओर सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा- “लिंग और जैविक गुण दोनों सेक्स के अलग-अलग घटकों में योगदान करते हैं … ‘अभिव्यक्ति सेक्स पुरुष या महिला के जैविक सेक्स तक ही सीमित नहीं है, लेकिन उन लोगों को शामिल करने का इरादा है जो खुद को दोनों नहीं मानते हैं’-अनुज गर्ग में इसका रास्ता मिलता है… किसी की लैंगिक पहचान की मान्यता गरिमा के मौलिक अधिकार के केंद्र में है।”

साभार

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TAGGED: cji chandrachud, Justice D Y Chandrachud, LGBTQ, Same sex marriage, Supreme Court, Supreme Court news
Courtesy Desk April 19, 2023
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