अर्चना कुमारी। उच्चतम न्यायालय एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की उस याचिका पर तीन जुलाई को सुनवाई करेगा, जिसमें मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा और इन (आदिवासियों) पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ एनजीओ ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की अवकाशकालीन पीठ ने 20 जून को इस याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा था कि यह कानून व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा और इससे प्रशासन को निपटना चाहिए। एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने दलील दी कि यह आसन दिया गया था कि किसी की जान नहीं जाएगी, लेकिन राज्य में 70 आदिवासी मारे जा चुके हैं।
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किये जाने का विरोध किया और कहा कि सुरक्षा एजेंसियां मौके पर मौजूद हैं। मेहता ने कहा कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग संबंधी मूल मामले की सुनवाई शीर्ष न्यायालय ने 17 जुलाई के लिए निर्धारित की है। इसके बाद, अवकाशकालीन पीठ ने एनजीओ की याचिका पर सुनवाई के लिए तीन जुलाई की तारीख तय की।
‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और मणिपुर के मुख्यमंत्री संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर राज्य में कुकी आदिवासियों के ‘‘जातीय संहार’’ के लिए एक सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढा रहे हैं। एनजीओ ने शीर्ष न्यायालय से केंद्र द्वारा दिए गए ’खोखले आासनों’ पर भरोसा नहीं करने का आग्रह किया और कुकी समुदाय के लोगों के लिए सेना की सुरक्षा मांगी।